SAGAR. 12 वर्षों तक अतिथि शिक्षक के तौर पर स्कूलों में सेवा दी। 2019 में नियम बदले तो नौकरी चली गई। बेरोजगार होते ही परिवार के पालन-पोषण की चुनौती खड़ी हो गई। इसके बाद एमए, बीएड पास बेरोजगार युवा ने घर में अंडा-मुर्गा और किराने की छोटी सी दुकान खोल ली। दुकान का नाम रखा 'अतिथि शिक्षक अंडा-मुर्गा दुकान'। यह दर्द है सागर से 45 किमी दूर स्थित ग्राम बरकोटी कलां में रहने वाले भरत अहिरवार की।
भरत अहिरवार बताते हैं कि उनका जन्म गरीब परिवार में हुआ, वे आज भी कच्चे मकान में रहते है। पिता ने मजदूरी कर पढ़ाया। उनका सपना था कि बेटा पढ़कर कुछ बनेगा। मैं बड़ा हुआ और एमए, बीएड तक की पढ़ाई की। पढ़ाई के बाद शिक्षक बनना चाहता था। वर्ष 2008 से 2019 तक जिले के अलग-अलग स्कूलों में अतिथि शिक्षक के तौर पर सेवाएं दी। लेकिन 2019 में अतिथि शिक्षक नियुक्ति का नियम ही बदल गया। स्कोर कार्ड जनरेट किए गए, जिसमें मेरी नियुक्ति नहीं हो पाई, मैं बेरोजगार हो गया।
आर्थिक तंगी आई तो खोल ली दुकान
भरत बताते हैं कि परिवार में पत्नी, तीन बच्चे और माता-पिता हैं। परिवार को पालने की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर है। लेकिन नौकरी जाने के बाद आर्थिक तंगी शुरू हो गई। बच्चों की पढ़ाई, परिवार का पेट भर पाना मुश्किल होने लगा। तभी गांव में ही दुकान खोली। दुकान का नाम रखा अतिथि शिक्षक अंडा-मुर्गा दुकान। यह नाम इसलिए रखा क्योंकि मैं अतिथि शिक्षक था और अब बेरोजगार हो गया। दुकान से दिन में करीब 150 रुपए की आय होती है। पत्नी बीड़ी बनाने का काम करती है।
जीव हत्या करने पर होता है अफसोस
बेरोजगार भरत ने अंडा-मुर्गा की दुकान तो खोल ली, लेकिन इस दुकान को चलाने में उसे घृणा होती है। भरत ने कहा कि जीव की हत्या करने में अफसोस होता है। जीवन बनाने के लिए पढ़ाई की थी। अंडा-मुर्गा की दुकान चलाने नहीं, लेकिन क्या करूं, परिवार चलाने के लिए सबकुछ करना पड़ रहा है। मेरी रीढ़ की हड्डी की सर्जरी हो चुकी है। जिस कारण मेहनत का काम नहीं कर पाता। सरकार से गुजारिश है कि अतिथि शिक्षकों के भविष्य और उनके बच्चों के भविष्य को देखते हुए कोई ठोस कदम उठाए, ताकि उन्हें खाने की लाले न पड़े।