भोपाल. वीरेंद्र कुमार सकलेचा (Virendra Kumar Saklecha) आज यानी 19 जनवरी 1978 को मध्य प्रदेश के दसवें मुख्यमंत्री बने थे। संघ से जुड़े सकलेचा का जन्म 1930 में मंदसौर की जावद तहसील में हुआ। सकलेचा का राजनैतिक कैरियर जितनी तेजी से उपर उठा, उतनी तेजी से नीचे भी आया। जिस सकलेचा में जनसंघ को मजबूत बनाने की क्षमता कुशाभाउ ठाकरे को दिखी थी, उन्हीं सकलेचा को पार्टी में दोबारा इस शर्त पर रखा गया कि कोई पार्टी-पद नहीं दिया जाएगा। आइए जानते हैं प्रदेश के दसवें मुख्यमंत्री के राजनैतिक कैरियर की कहानी...
पारिवारिक जीवन: मध्यप्रदेश के मंदसौर की जावद तहसील के जैन परिवार में सखलेचा का जन्म हुआ था। पिता मंदसौर के बड़े कपड़ा व्यपारी थे। इसके साथ ही आर्य समाज की स्थानीय शाखा के अध्यक्ष भी थे। इसी कारण कच्ची उम्र में संघ के करीब रहे सखलेचा 1940 के समय संघ में शामिल हो गए। सखलेचा पढ़ाई के लिए मंदसौर छोड़ बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) आए थे।
सकलेचा के चाकू से छात्र की मौत: संघ से जुड़े सखलेचा ने BHU से पढ़ाई के साथ-साथ संघ की शाखाएं भी रोज अटेंड करते थे। कॉलेज के ही एक छात्र से लड़ाई होने पर सकलेचा ने उसको चाकू मार दिया, जिससे छात्र की मौत हो गई, पर कोर्ट में वकीलों ने इसे आत्मरक्षा बताकर सकलेचा को निर्दोष साबित कर दिया। अदालत के चक्कर लगाने के बाद सखलेचा ने कानून की पढ़ाई और प्रैक्टिस भी की, पर मन नेतागिरी में ही रम गया। सकलेचा ने संघ से जनसंघ की दूरी रफ्तार से तय की और जल्द ही वकील से राजनेता बन गए।
कुशाभाउ को सकलेचा में दिखीं संभावनाएं: मध्य प्रदेश में जनसंघ का अस्तित्व बनाने वाले कुशाभाउ ठाकरे को सकलेचा में पार्टी के प्रति समर्पण का भाव दिखा था। नतीजतन 1957 में सखलेचा जनसंघ से चुनाव लड़ विधानसभा पहुंचे। 1962 के चुनाव में 41 सीट मिलने पर सकलेचा को जनसंघ की ओर से विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition) बनाया गया। 1966 में जनसंघ के दो विधायकों की सदस्यता जाने के बाद पार्टी के विधायकों में डर के कारण खामोशी छा गई थी, तब सदन में सकलेचा की आवाज बेखौफ गूंजती थी। सकलेचा 1967 में गोविंदनारायण की सरकार के समय उपमुख्यमंत्री (Dy CM) रहे थे।
बतौर मुख्यमंत्री: 18 जनवरी 1978 से 19 जनवरी 1980 तक मुख्यमंत्री (CM) रहे सकलेचा के कार्यकाल ने उस समय बड़ी सुर्खियां बटोरी थीं। CM बनते ही सखलेचा ने 15 हजार ग्राम पंचायतों में चुनाव कराए थे। सभी ग्राम पंचायतों में ग्रामीण सचिवालय खुलवाकर वहां पटवारी, ग्राम सेवक, सहकारी संस्था का समिति सेवक और पंचायत सचिव को एक साथ बैठाकर गांव वालों की मुश्किलें कम की थीं। सकलेचा के कार्यकाल में सरकारी नौकरियों पर संघ वालों की जमकर भर्ती हुई थी। उन्होंने बजट के 60% हिस्से वाले विभागों को अपने पास रखा था। CM रहते सकलेचा ने सरकारी विमान को काठमांडू में उतारा था, जबकि बिना केंद्र की परमिशन के CM सरकारी विमान से भारत के बाहर नहीं जा सकते थे।
2 साल मुख्यमंत्री रहे सकलेचा का कार्यकाल ने जनसंघ को मजबूती दी, वहीं उन पर और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी लगे। इसी कारण जनसंघ का हमेशा मजबूती से पक्ष रखने वाले सकलेचा का इस्तीफा भी जनसंघ ने ही लिया। दोबारा पार्टी में वापसी इस शर्त पर हुई कि कोई पद नहीं मिलेगा। सुर्खियों भरा मुख्यमंत्री का कार्यकाल देने वाले सकलेचा का 1999 में हार्टअटैक से निधन हो गई।