भिंड. यहां के दबोह कस्बे में 5 अनाथ बच्चे दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर हैं। बच्चों के माता-पिता को कोरोना लील गया। अब इन बच्चों को देखभाल करने वाला कोई नहीं है। ये लोग भीख मांगकर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं। सबसे बड़ी बच्ची की उम्र 7 साल है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना से अनाथ हुए बच्चों के भरण-पोषण और पढ़ाई-लिखाई का खर्च उठाने का ऐलान किया था, लेकिन इन बच्चों को ये भी नसीब नहीं। वजह ये है कि इन बच्चों के पास दस्तावेज नहीं है, जिससे साबित कर सकें कि वे मध्यप्रदेश के हैं और कोरोना से उनके माता-पिता की मौत हुई और वे सरकारी मदद के हकदार हैं।
पिता रिक्शा चलाता था
दबोह के अमाहा गांव में रहने वाला राघवेंद्र वाल्मीकि रिक्शा चलाकर परिवार का भरण पोषण करता था। फरवरी में कोरोना से राघवेंद्र की मौत हो गई। इसके बाद अंतिम संस्कार के लिए राघवेंद्र की पत्नी गिरिजा 5 बच्चों के साथ गांव आई। इसके बाद वो भी फिर से उरई चली गई। मई में कोरोना से गिरिजा की भी मौत हो गई। थोड़ी-बहुत देखभाल के बाद रिश्तेदारों ने भी बच्चों को छोड़ दिया है। परिवार की सबसे बड़ी बेटी 7 साल की निशा है। उससे छोटा बाबू राजा (5), फिर मनीषा (3), अनीता (2) और सबसे छोटा बच्चा गोलू (8 महीने) का है।
पूर्व मंत्री ने सिर्फ 2 हजार की मदद की
21 अगस्त को पूर्व मंत्री डॉ गोविंद सिंह ने अमाहा गांव पहुंचे। गांव के कुछ लोगों ने इन बच्चों के बारे में बताया। सिंह ने बच्चों की मदद करने का फैसला लिया। हालांकि, उन्होंने सिर्फ 2 हजार रुपए दिए। सरपंच बैकुंठी देवी के बेटे शैलेंद्र और गांव के सचिव अशोक पाराशर से 10-10 हजार रुपए दिलाए। यही नहीं, विधायक निधि से 20 हजार रुपए दिए जाने की बात कही। 8 महीने के बच्चे के लिए गांव के एक युवक से दूध दिए जाने की बात कही।
रहने के लिए मकान तक नहीं
बच्चों के पास रहने के लिए मकान नहीं है। इन बच्चों का परिवार चाचा और दादा गांव से बाहर रहते हैं। गांव में बच्चे टीन शेड के नीचे रहने को मजबूर हैं। गोविंद सिंह ने बच्चों के रहने के लिए घर की व्यवस्था कराए जाने की जिम्मेदारी ली है।
बच्चों के पास कोई दस्तावेज नहीं
गांव के सचिव अशोक पाराशर के मुताबिक, बच्चों के माता-पिता उरई रहते थे। मध्यप्रदेश का कोई भी दस्तावेज इनके पास नहीं है। इन बच्चों का आधार कार्ड भी नहीं है। हालांकि, अब दस्तावेज तैयार कराए जा रहे हैं। आधार कार्ड भी बनवाया जा रहा है। वहीं, सरपंच के बेटे शैलेंद्र का कहना है कि गांव में लोगों के सहयोग से इन बच्चों का ख्याल रखा जा रहा है। कागजी दस्तावेज तैयार होने पर शासन से मदद के लिए आवेदन कराएंगे।