बक्सवाहा हीरा खदान: पानी ही नहीं, संकट की जद में बाघों के बसेरे भी आएंगे

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बक्सवाहा हीरा खदान: पानी ही नहीं, संकट की जद में बाघों के बसेरे भी आएंगे

हरीश दिवेकर, भोपाल। बक्सवाहा की हीरा खदान से जुड़ी हमारी स्पेशल रिपोर्ट की पिछली किस्त में आपने पढ़ा कि यदि हीरा खदान के प्रस्ताव को मंजूरी मिलती है तो बुंदेलखंड में पानी का संकट गहराएगा। मगर यह संकट सिर्फ पानी तक ही नहीं है, बाघों के लिए मशहूर पन्ना टाइगर रिजर्व पर भी इसका सीधा असर पड़ने जा रहा है।

छिन सकता है टाइगर स्टेट का दर्जा

बक्सवाहा की हीरा खदान से महज 19 किमी दूर है पन्ना टाइगर रिजर्व। बाघों की संख्या के मामले पिछले 13 साल में शून्य से शिखर पर पहुंचे पन्ना टाइगर रिजर्व की सक्सेस स्टोरी बताने की नहीं, इस पर नाज करने की जरूरत है। 2018 में हुई बाघों की जनगणना के मुताबिक, पन्ना टाइगर रिजर्व में 55 बाघ थे, लेकिन कुनबा दो सालों में बढ़ा है। अब यहां 75 बाघ बताए जाते हैं। मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का जो दर्जा हासिल है, उसमें पन्ना की भी भागीदारी है। हीरा खदान के कारण सीधा असर बाघों पर पड़ने जा रहा है। जाहिर है इसका सीधा असर टाइगर स्टेट के दर्जे पर भी आ सकता है।

मुख्यमंत्री का बाघ बचाने का संकल्प मगर

29 जुलाई को वर्ल्ड टाइगर डे के मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने टाइगर को बचाने और बढ़ाने का जो संकल्प लिया, वह तो अच्छा है, मगर इसके बावजूद पन्ना के बाघों पर खतरा मंडरा रहा है।

संकट के दो बड़े कारण

बक्सवाहा प्रोजेक्ट में टाइगर रिजर्व की करीब 5500 हेक्टेयर जमीन डूब क्षेत्र में आ रही है। इसके चलते टाइगर रिजर्व का एरिया कम होगा। इधर, केन-बेतवा लिंक परियोजना का भी बड़े पैमाने पर विरोध है। भले ही 2019 में प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी गई, लेकिन प्रोजेक्ट में कई खामियां हैं। सुप्रीम कोर्ट का भी इस तरफ ध्यान खींचने की कोशिश हुई है। बक्सवाहा की हीरा खदान को लेकर सरकारी रिपोर्ट भले ही ये कहती हो कि ये नोटिफाइड वाइल्ड लाइफ एरिया नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों ने यहां बाघ घूमते देखा है। ये उनकी आवाजाही का नैसर्गिक क्षेत्र है।

बड़ा सवाल: अपना इलाका छोड़ बाघ कहां जाएंगे?

मूल मुद्दा ये है कि पन्ना टाइगर रिजर्व का क्षेत्र कम हो रहा है तो बाघ अपना मूवमेंट कहां करेंगे? जाहिर तौर पर दूसरे जंगल की तरफ। बक्सवाहा का जंगल इसके लिए मुफीद माना जा रहा है, हालांकि वन विभाग समेत तमाम लोगों की राय है कि जहां खदान को मंजूरी दी गई है उससे बाघों के कॉरिडोर पर असर नहीं पड़ेगा। जब खदान को मंजूरी मिलेगी तो बड़ी-बड़ी मशीनों का इस्तेमाल कर हीरा निकाला जाएगा। मशीनों की आवाज से बाघ उस क्षेत्र में दाखिल ही नहीं होगा। बहरहाल अब जब खदान को मंजूरी मिलेगी और कई सारे हालात पैदा होंगे तो उसका सामना सरकार को ही करना होगा।

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