भोपाल। मध्य प्रदेश के करीब 4.50 लाख पेंशनर्स के लिए राज्य से छत्तीसगढ़ के अलग होने के समय तय किया गया एक नियम बड़ी फांस साबित हो रहा है। दोनों राज्यों के लिए धारा 49 के नाम से बनाए गए इस नियम की फांस के कारण पेंशनर्स को महंगाई राहत (डीआर) के मामले में 21 साल से भेदभाव का दंश भुगतना पड़ रहा है। इस अव्यावहारिक नियम की वजह से प्रदेश के पेंशनर्स का अटका डीआर लंबे इंतजार के बाद मिल पाया है। दरअसल धारा 49 के अनुसार पेंशनर्स से जुड़े मामलों में दोनों राज्यों की सहमति जरूरी होती है। इस अनिवार्यता के कारण ही पेंशनर से संबंधित मामलों में सहमति नहीं बन पाने के कारण समय पर निर्णय नहीं पाते। पेंशनर्स एसोसिएशन ने अब इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से धारा 49 की फांस से निजात दिलाने की गुहार लगाई है।
धारा-49 को खत्म करने पर नहीं बन सकी सहमति
साल 2000 में राज्य के विभाजन के समय राज्य पुनर्गठन की सिफारिशों के अनुसार धारा 49 बनाई गई थी, जिसके अनुसार यह तय किया गया कि दोनों राज्यों के पेंशनर्स के मामलों का निराकरण आपसी सहमति से किया जाएगा। यह धारा वर्ष 2000 से पहले के नियुक्त हुए कर्मचारियों के रिटायर होने के मामले में लगातार आड़े आ रही है। सेवानिवृत्त अधिकारी कर्मचारी पेंशनर्स महासंघ के प्रदेश महामंत्री खुर्शीद सिद्दीकी बताते हैं कि दोनों राज्यों की इस पर सहमति नहीं बन पाई है, जिसके कारण मामला अटका हुआ है।
डीआर के मामले में हर बार फंसता है पेंच
दरअसल मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ के नया राज्य बनने के बाद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच ये समझौता हुआ था कि जितने भी पेंशनर्स होंगे उन्हें मिलने वाली राशि का 76 फीसदी मध्यप्रदेश और 24 फीसदी छत्तीसगढ़ सरकार देगी। यह फार्मूला उस समय जनसंख्या के अनुपात के बंटवारे के आधार पर हुआ था। लिहाजा डीए जब भी बढ़ता है तो तीन चौथाई राशि मध्यप्रदेश को देनी होती है चाहे पेंशनर छत्तीसगढ़ का ही क्यों ना हो।
महीनों अटक जाता है पेंशनर्स का भुगतान
- छत्तीसगढ़ में 1 जुलाई 2021 से डीए में 5 फ़ीसदी की बढ़ोतरी कर दी जिससे वहां के पेंशनर्स का कुल डीए 17 फ़ीसदी हो गया। जबकि मध्यप्रदेश ने 1 अक्टूबर 2021 से 8% डीए बढ़ा दिया, जिससे एमपी में पेंशनर्स का डीए 12 फीसदी से बढ़कर 20 फीसदी हो गया। चूंकि पेंशनर्स के मामले में दोनों सरकारों को एक दूसरे की मंजूरी लगती है, लिहाजा इसी अंतर की वजह से दोनों राज्यों के फाइनेंस का गणित गड़बड़ा गया। ढाई महीने बाद हाल ही में 14 दिसंबर 2021 को इसके भुगतान के आदेश हुए।
दोनों सरकारें अटकाकर रखती हैं मामला
सेवानिवृत्त अधिकारी-कर्मचारी पेंशनर्स महासंघ के प्रदेश महामंत्री खुर्शीद सिद्दीकी ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार मध्यप्रदेश से स्वीकृति मांगती है तो ये रोककर रख लेते हैं और यदि मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ को स्वीकृति के लिए भेजते हैं तो वे फाइल रोककर रख लेते हैं। हमने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया है और मांग भी है कि वे मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार को ये निर्देश दें कि वे पेंशनर्स के साथ ऐसा भेदभाव ना करें।
21 साल बाद भी धारा 49 का बहाना
मध्य प्रदेश पेंशनर्स महासंघ के प्रांताध्यक्ष एलएन कैलासिया ने कहा कि 21 साल हो गए छत्तीसगढ़ का गठन हुए। 21 साल बाद भी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार धारा-49 का बहाना कर हर बार पेंशनर्स को लटकाती है। हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में पत्र लिखकर धारा 49 की बाध्यता से निजात दिलाने की मांग की है क्योंकि पेंशनर्स अपने जीवन यापन के लिए पूरी तरह से पेंशन पर ही निर्भर है। लेकिन यदि सरकार महीनों तक डीआर लटकाकर रखेंगे तो उनका जीवन निर्वाह कैसे हो पाएगा।
धारा-49 विलोपित करने अशासकीय संकल्प पेश
धारा-49 के कारण आ रही दिक्कतों को देखते हुए मंदसौर के बीजेपी विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया ने विधानसभा के प्रमुख सचिव को धारा-49 हटाने के संबंध में अशासकीय संकल्प प्रस्तुत किया है। यदि विधानसभा के प्रमुख सचिव इसे स्वीकार कर चर्चा कराते हैं तो फिर सहमति से इसे केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। धारा को विलोपित (Obsolete) करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया ने द सूत्र को बताया कि पेंशनर्स लंबे समय से इसकी मांग कर रहे हैं। आज पेंशनर्स से जुड़े मामलों में छत्तीसगढ़ की स्वीकृति लेनी पड़ती है, जिसमें काफी वक्त लग जाता है। छत्तीसगढ़ के गठन को 21 साल हो गए। अब मध्य प्रदेश को इस मामले में संवैधानिक अधिकार मिलना चाहिए। विषय बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए अशासकीय संकल्प पेश किया है।
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