Satna. फलों के राजा आम से भी मध्य प्रदेश की खास पहचान है। बाग से लेकर बाजार तक देशी और विदेशी प्रजाति के आमों से गमक रहे हैं। उत्पादन साढ़े सात लाख टन से ऊपर पहुंच गया है और देश के टॉप टेन आम उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश शुमार हुआ है। दक्षिण में नर्मदा और उत्तर में गंगा के कछार से घुली मिठास के चलते आम की मांग देश ही नहीं, बल्कि मध्य पूर्व एशिया तक से आ रही है। हालांकि, इस साल मौसम की मार ने किसानों को निराश किया है, आम के उत्पादन में 50% तक गिरावट की आशंका है।
आम सबसे पुराने फलों में से एक है। बगीचे सामाजिक प्रतिष्ठा और समृद्धि का आधार होते थे। यही वजह है कि प्रदेश में आम की एक हजार से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। अब राज्य आम की व्यावसायिक खेती की भी दौड़ में शामिल हुआ है। आम उत्पादक किसान देश-दुनिया की पसंदीदा प्रजातियों को तैयार कर रहे हैं। मध्य प्रदेश की मिट्टी में ऐसे तत्व मौजूद हैं, जिनमें विदेशी आम भी ना केवल पनप रहे हैं, बल्कि अच्छी उपज भी दे रहे हैं। इसी का उदाहरण है- जबलपुर में संकल्प सिंह परिहार द्वारा दुनिया का सबसे महंगा मियाजकी किस्म का तैयार किया गया आम है। दावा है कि एक आम की कीमत पौने तीन लाख रुपए तक है। मियाजकी जापान मूल की प्रजाति का आम है। ऐसा ही आलीराजपुर में पैदा होने वाली दुर्लभ प्रजाति का नूरजहां आम है, जिसे फलों की रानी कहा जाता है। यह अफगानिस्तान मूल की किस्म है।
इनसे है शान
मध्यप्रदेश की जलवायु फलों के लिए इतनी अनुकूल है कि हर तरह की किस्म आसानी से तैयार हो रही है। अल्फांसो को लेकर चाहे भले महाराष्ट्र या दक्षिण भारत के राज्यों की चर्चा होती हो, पर मध्य प्रदेश भी पीछे नहीं है और अच्छे स्वाद और मिठास वाले अल्फांसो यहां तैयार हो रहे हैं। इसके साथ ही सुंदरजा, बॉम्बे ग्रीन, उत्तर प्रदेश के मूल वाली लंगड़ा, दशहरी, चौंसा, मल्लिका, फजली, आम्रपाली जैसी प्रजातियां भी अच्छा उत्पादन दे रही हैं।
सुंदरजा और तोतापरी की बात ही अलग है
विंध्य के सुंदरजा और बैतूल के तोतापरी का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है। इन आमों की दुनियाभर में मांग है। अरब, कुवैत, दुबई सहित मध्य पूर्व एशिया के कई देशों तक इनकी मांग और पहुंच है। सुंदरजा विंध्य के एक खास इलाके (कैमोर वैली) में ही पाया जाता है। इसकी प्रसंस्करण क्षमता किसी भी फल से डेढ़ गुना ज्यादा है।
दुर्लभ किस्मों को मिला ठिकाना
प्रदेश की धरती में देश और दुनिया की दुर्लभ किस्म के आमों को भी ठिकाना मिला है। इनमें नूरजहां, मियाजकी, अफगानिस्तान की खास प्रजाति अम्रपुरी भी शामिल है। धार जिले के आम उत्पादक किसान जगदीश और रामेश्वर अगलेचा बंधुओं ने इसे अपना जुनून बना लिया और खास किस्मों में विराट आम नेपाल, हिमसागर, मालदा आम हिमाचल प्रदेश, फजली आम इलाहाबाद, लंगड़ा व दशहरी, रामकली लखनऊ, सम्राट परी आम गुजरात, अमृता मल्लिका आम पंचवटी, बॉम्बे ग्रीन कोकिला, हल्दीघाटी, काला पहाड़, आम्रपाली, सिंदूर, पराग, मलगोवा, रत्नागिरी, सिरौली, चारोली, खट्टा गोला और भी अन्य किस्मों के आम तैयार कर दिए।
25 प्रतिशत को ही मिल रहा बाजार
प्रदेश में आम की परंपरागत खेती होने और उसके लिए उपयुक्त बाजार नहीं मिलने से 75% का उपयोग नहीं हो पा रहा। Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority (एपीडा) ने खुद स्वीकार किया कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बाजार में केवल प्रदेश का 25% आम ही खप पाता है। अगर प्रसंस्करण इकाइयां लग जाएं तो किसानों को इसका फायदा मिलेगा। स्लाइस, पल्प, आम पापड़, अमचूर बनाने के लिए प्रोत्साहन की कमी के चलते बड़ी मात्रा में आम बर्बाद चला जाता है।
मौसम की मार और रोग का साया
एक अनुमान के मुताबिक, प्रदेश में आम का रकबा 50 हजार हेक्टेयर से ज्यादा है। उत्पादकता अच्छी होने से उत्पादन साढ़े सात लाख टन तक पहुंच चुका है। लेकिन इस साल गर्मी समय से पहले शुरू हो जाने और रोग लगने जाने नुकसान हुआ है। खासतौर से देसी प्रजाति के आम का उत्पादन गिरा है।
यह है ताकत
- आम का रकबा - 50 हजार हेक्टेयर
( नोट- आंकड़े एपीडा के 2019-20 के हैं। )