भोपाल. ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में सिंध नदी शांत हो गई है, लेकिन चारों तरफ तबाही का मंजर है। अचानक आई बाढ़ से लोग जान बचाने के लिए घरों पर ताला जड़कर चले गए थे। अब जब लोग लौटकर आए हैं तो घर मिट्टी के ढेर में बदल चुका है। मिट्टी के ढेर में लोग अनाज तलाश रहे हैं। चंबल संभाग में सिंध नदी पर बने सभी पुल बाढ़ में बह गए हैं। एक पुल टूटने से लोगों को 70 किमी घूमकर जाना होगा।
80 किमी दूरी अब 150 किमी हो गई
दतिया के सेंवढ़ा तहसील के सनकुआं घाट पर बना पुल भी बाढ़ में टिक नहीं पाया। महज 40 साल पुराने पुल के 4 पिलर टूट गए। लोग यहां से ग्वालियर आना-जाना करते थे। पुल के टूटने से ग्वालियर और सेंवढ़ा कस्बे की दूरी 70 किलोमीटर बढ़ गई है। अब तक सेंवढ़ा से ग्वालियर 80 किमी दूर था, पुल टूटने के बाद अब दूरी 150 किमी हो गई है। अंचल के छोटे-बड़े बाजारों की अर्थव्यवस्था ग्वालियर पर निर्भर है। इसमें सेंवढ़ा बाजार भी शामिल है।
लोग दाने-दाने को मोहताज
डूब क्षेत्र में आने वाले लोग दाने-दाने को मोहताज हैं। दतिया किले की तलहटी और नदी के किनारे पर बसे करीब 250 घरों को बाढ़ लील गई। इन लोगों को तो इतना वक्त भी नहीं मिला, वो घर से बाहर निकल पाते। पानी इतनी तेजी से आया, घर से निकलते-निकलते में पानी कमर से ऊपर पानी आ चुका था। लोग घर का सामान छोड़कर किले के ऊपरी हिस्से में जान बचाने के लिए पहुंचे।
अब टूटे घरों में गृहस्थी की तलाश
नदी से करीब 80 मीटर दूर रहने वाली एक महिला बाढ़ का पानी उतरने के बाद घर लौटीं। उनके मकान का एक हिस्सा मिट्टी का ढेर बन गया था। गिरे हुए घर में घर-गृहस्थी का सामान ढूंढा, पर क्या मिलता। उन्होंने बताया, जब पानी आया तो ताला लगाकर भागी थी। कच्चा हिस्सा टूटकर गिर गया। जब लौटकर आई, तो टीवी, फ्रीज समेत सब सामान खराब हो गया।
सड़ चुका अनाज सुखा रहे
बाढ़ की चपेट में आने से सालभर के लिए गरीबों के घर में रखा गेहूं, चावल, दाल समेत अन्य अनाज नष्ट हो चुका है। लोग अब टूटे हुए मकानों में अनाज निकाल रहे हैं। सड़ चुके अनाज को सुखा रहे हैं, ताकि भूख मिटाने के लिए कुछ तो काम आ सके।