भोपाल. आज यानी 20 दिसंबर को कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे मोतीलाल वोरा (Moti Lal Vora) का जन्मदिन है। वे 1928 में तत्कालीन जोधपुर स्टेट में पैदा हुए थे। वोरा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री (1985-88, 1989) रहने के अलावा केंद्र में मंत्री, राज्यपाल जैसे पदों पर रहे। लंबे वक्त तक कांग्रेस के कोषाध्यक्ष भी रहे। पिछले साल (2020) ही उनका निधन हुआ। बड़ी बात ये कि 20 दिसंबर को पैदा होने वाले वोरा, जन्मदिन के अगले दिन यानी 21 दिसंबर को दुनिया से चले गए। आज हम आपको उनकी 5 रोचक कहानियां बता रहे हैं...
1. बनना चाहते थे कैबिनेट मंत्री, बन गए सीएम
राजीव गांधी के दौर में वोरा एक ही विधानसभा (मप्र) में 2 बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। नरसिम्हा राव ने उन्हें यूपी का राज्यपाल बनाया और सीताराम केसरी ने उन्हें कांग्रेस का कोषाध्यक्ष बनाया। 1968 में दुर्ग से पार्षद के चुनाव से शुरुआत करने वाले वोरा ने मुख्यमंत्री पद (CM Post) तक का सफर तय किया। मार्च 1985... मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके थे। कांग्रेस को अर्जुन सिंह की अगुआई में 320 में से 251 सीटें मिलीं। 11 मार्च 1985 को अर्जुन सिंह को दोबारा विधायक दल का नेता और मुख्यमंत्री चुन लिया गया। सिंह शपथ लेने के तुरंत बाद मंत्रिमंडल के गठन के संबंध में चर्चा करने के लिए प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष राजीव गांधी के पास दिल्ली गए। सिंह पहुंचे तो राजीव ने उन्हें पंजाब का गवर्नर बनने का आदेश दिया। हां, जाते-जाते ये जरूर कहा- अपनी पसंद के मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष का नाम बता दो। फिर 14 मार्च को पंजाब पहुंच जाओ।
अर्जुन सिंह कमरे से बाहर निकले और जिस प्लेन से आए थे, उसको तुरंत भोपाल वापस भेजा। बेटे अजय सिंह को फोन किया कि तुरंत मोतीलाल वोरा को दिल्ली लाने को कहा। रास्ते में वोरा अजय से खुद को मप्र में कैबिनेट मंत्री पद दिलाने की सिफारिश कर रहे थे। उन्हें क्या पता था कि दिल्ली में मुख्यमंत्री पद उनका इंतजार कर रहा है। एयरपोर्ट से वोरा सीधे मध्य प्रदेश भवन पहुंचे। वहां अर्जुन सिंह, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह उनका इंतजार कर रहे थे। खाने के बाद अर्जुन सिंह, वोरा को लेकर दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पहुंचे। वहां राजीव रूस यात्रा पर जाने को तैयार थे। राजीव ने वहीं वोरा से मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की बात कही। इससे पहले वोरा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर थे। इस फेरबदल के बाद वोरा ने 13 मार्च 1985 को मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
2. जब रात में बाल कटवाने का मन हुआ
मोतीलाल वोरा जब मध्य प्रदेश के सीएम हुआ करते थे, उसी दौरान राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने ग्वालियर जाने का प्लान बनाया। राजीव के दौरे को लेकर प्रशासन ने सारी तैयारियां कर लीं। वोरा भी दौरे से एक दिन पहले उनके स्वागत के लिए ग्वालियर पहुंच गए। सोने से पहले अचानक उनकी नजर अपने बालों पर पड़ी। उनको लगा कि राजीव गांधी जैसे दिग्गज नेता से मिलने से पहले बाल कटवाना (कटिंग) जरूरी है। ये बात उन्होंने अपने सेक्रेटरी केडी कुकरेती से बताई।
जब कुकरेती को ये बात पता चली तो रात के 1 बज रहे थे। परेशानी ये थी कि इतनी रात को नाई कहां से लाया जाए। उन्होंने तुरंत ग्वालियर के SP को फोन घुमा दिया। मामला CM का था, जिस वजह से एसपी ने भी तुरंत कोतवाली फोन किया। इसके बाद पुलिसकर्मी गाड़ी लेकर नाई की तलाश में निकल पड़े। बड़ी मुश्किल से चार नाइयों को जगाकर लाया गया, लेकिन तब तक वोरा जी सो चुके थे। सेक्रेटरी कुकरेती ने सुबह बाल कटवाने की बात कही।
सुबह किसी भी वक्त वोरा, राजीव के कार्यक्रम के लिए निकल सकते थे। मामला सीएम का था, इसलिए सुबह नाई ना मिलते तो समस्या हो सकती थी। ऐसे में पुलिसवालों ने चारों नाइयों को थाने में ही रातभर बैठाए रखा। इस दौरान उनके लिए खाने और चाय की भी व्यवस्था की गई। सुबह मुख्यमंत्री जगे और चारों नाई सर्किट हाउस पहुंचे। कुकरेती ने एक का चयन किया। मुख्यमंत्री के बाल तो नाई ने काट दिए। इसके बाद वो उनके पैरों में गिर पड़ा। साथ में एक फोटो खिंचवाने की बात कही। वोरा को नाई के रातभर थाने में नाई के बैठाए जाने का पता नहीं था, फिर भी उन्होंने हां बोल दिया। अब समस्या थी कि इतनी सुबह फोटोग्राफर कहां से आए। नाई ने चतुराई दिखाई थी, उसने रात में ही फोटोग्राफर जुगाड़ लिया था।
3. गांधी परिवार के बेहद करीबी, राव से भी खास रहे
एमपी की राजनीति से हटकर वोरा फिर से दिल्ली में संगठन में एक्टिव थे। राजीव के बाद नरसिम्हा राव का दौर आया तो उनकी पूछ बढ़ गई। राव को अर्जुन की काट के लिए जो हथियार चाहिए थे, वे वोरा मुहैया कराते। फिर राव ने उन्हें 26 मई 1993 को यूपी का गवर्नर बनाकर भेजा। ये महत्वपूर्ण इसलिए क्योंकि उनके तीन साल के कार्यकाल में लंबा समय राष्ट्रपति शासन का रहा. यानी गवर्नर ही बॉस था।
1996 में वोरा राज्यपाल से हटे तो फिर एमपी की सियासत में लौटे। 1999 के चुनाव छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव (तब अविभाजित MP) सीट से जीते। दिल्ली पहुंचे तो पाया कि राव-केसरी युग बीत चुका है। अब सोनिया बॉस हैं। वोरा ने राजीव के दिनों की वफादारी याद की और सोनिया कोटरी में भी एंट्री पा ली। सोनिया को भी ऐसे ओल्ड गार्ड की जरूरत थी, जिसकी जरूरत से ज्यादा राजनीतिक महत्वाकांक्षा ना हो। वोरा वैसे ही व्यक्ति थे। 1999 के लोकसभा चुनाव में रमन सिंह के हाथों हारने के बाद उन्हें पुनर्वास की जरूरत थी। सोनिया ने 2002 में उन्हें राज्यसभा भेज दिया।
2000 में जब छत्तीसगढ़ बना तो सीएम के दावेदारों में अजीत जोगी और श्यामाचरण के साथ उनका भी नाम उछला, मगर एक सियासी अफवाह की तरह। वोरा करीब दो दशक तक पार्टी के कोषाध्यक्ष और गांधी परिवार के खास रहे। बढ़ती उम्र का हवाला देकर राहुल ने 2018 में उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त किया।
4. अर्जुन का आज्ञाकारी
वोरा जब मुख्यमंत्री बने तो उनकी जगह पर दिग्विजय सिंह को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। ये सब अर्जुन सिंह के कहने की वजह से हुआ था। वोरा उस वक्त प्रदेश अध्यक्ष थे। कहते हैं कि अर्जुन की विदाई का मन राजीव ने पहले ही बना लिया था। उन्हें नई जिम्मेदारी देने की बात भी कह दी थी। तभी अर्जुन के कहने पर राजीव ने उन्हें (वोरा को) 10 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की छूट दी, ताकि ये न लगे कि उन्हें एमपी की राजनीति से बाहर किया जा रहा है। वोरा के मुख्यमंत्री बनने के बाद मंत्रिमंडल बनाने की बारी आई। यहां अर्जुन सिंह की चली। वोरा कुछ नहीं कर पाए। इसे इस वाकये से समझें। जब अर्जुन सिंह ने दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तब कुछ वरिष्ठ नेता भी मंत्री पद की शपथ लेते नजर आए। इस पर वोरा ने दोस्तों से टिप्पणी की- ‘जाने क्यों ऐसे भ्रष्ट लोगों को अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में रखे हुए हैं। इनके बारे में बहुत शिकायतें हैं। यदि मैं मुख्यमंत्री होऊं तो ऐसे लोगों को हरगिज जगह न दूं। इससे पार्टी की बदनामी होती है।’ और फिर हफ्ते भर के अंदर वही मंत्री वोरा की परिषद का हिस्सा बन रहे थे।
5. जिसे माल बेचना होगा, खुद आएगा
1972 के चुनाव के बाद भी इंदिरा दरबार से यानी दिल्ली से भेजे गए पीसी सेठी ने फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वोरा जल्द उनके करीब आ गए। इसका इनाम भी मिला। सेठी ने वोरा को राज्य परिवहन निगम का उपाध्यक्ष बनाया। इसके अध्यक्ष सीताराम जाजू थे। परिवहन के अफसरों ने तब बड़े शहरों के दौरों का एक कार्यक्रम तैयार किया। जाजू की उम्र हो गई थी और वोरा उनके भरोसेमंद भी हो चुके थे, सो उन्होंने इस कार्यक्रम को मंजूरी दी और खुद जाने की बजाय वोरा का नाम प्रस्तावित कर दिया। अब वोरा का स्टाइल देखिए, उन्होंने सारा कार्यक्रम ही रद्द कर दिया।
अधिकारियों को बुलाया और बोले- ‘जब मैं एक छोटी ट्रांसपोर्ट कंपनी चलवाता था, तब मोटरपार्ट्स विक्रेता मेरे चक्कर लगाया करते थे। अब तो इतना बड़ा प्रतिष्ठान हाथ में है तो भला मैं क्यों जाऊं महानगरों का दौरा करने? जिसे अपना माल बेचना होगा, वह खुद मेरे पास चलकर आएगा।’ ऐसा नहीं कि वोरा सिर्फ डायलॉग मारने तक रहे। कुछ सेठी का मैनेजमेंट था तो कुछ वोरा की मेहनत, रोडवेज डिपार्टमेंट ने पहली बार मुनाफा कमाया था। फिर इमरजेंसी आई और उसके बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार। राज्य में चुनाव हुए तो कांग्रेस के श्यामाचरण शुक्ल सरीखे सिटिंग सीएम समेत कई दिग्गज हार गए। मगर वोरा कांग्रेस विरोधी लहर में भी दुर्ग से 54% वोट पाकर जीते।
द-सूत्र ऐप डाउनलोड करें :
द-सूत्र को फॉलो और लाइक करें:
">Facebook | Twitter | Instagram | Youtube