आज यानी 17 फरवरी 1968 को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू ने अंतिम सांस ली थी। काटजू का जन्म 17 जून 1887 मध्य प्रदेश के रतलाम के जावरा में हुआ था। काटजू दिग्गज वकील थे, जिन्होंने आजाद हिंद फौज के तीन अफसरों (शाहनवाज खान, गुरदयाल सिंह ढिल्लो, प्रेम सहगल) का केस लाल किले में जाकर लड़ा था। काटजू मध्य प्रदेश के तीसरे मुख्यमंत्री थे, हालांकि पहले फुल टाइम CM बने थे। काटजू 70 साल की उम्र में उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाला था। आइए जानते है उनके जीवन से जुड़े कुछ ऐसे किस्से...
जब देश के पहले राष्ट्रपति ने मनाया काटजू कोः 1937 में ब्रिटिश सरकार ने पूरे देश में चुनाव कराए थे। उस वक्त उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। यूपी के मुख्यमंत्री गोविंदवल्लभ पंत बने थे। उनकी कैबिनेट में सभी मंत्रियों की जगह तय हो गई थी, लेकिन कानून मंत्री को लेकर मामला अटक गया। कानून मंत्री किसे बनाया जाए इस विषय पर विचार विमार्श होने लगे। ऐसे में उस वक्त के मशहूर वकील और कानून के जानकार कैलाश नाथ काटजू का कानून मंत्री के लिए नाम दिया गया, लेकिन वे यह पद लेने के लिए तैयार नहीं थे। ऐसे में नेहरू ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद (पहले राष्ट्रपति) को काटजू को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई।
राजेंद्र बाबू की घंटों बातचीत के बाद आखिरकार वकील साहब मान गए और उत्तर प्रदेश सरकार में कानून मंत्री का पद ग्रहण किया। बात यहीं पर खत्म नहीं होती। काटजू ने अपनी पासबुक राष्ट्रपति के सामने रख दी, उसमें उस वक्त 13 लाख रुपए थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद दंग रहे गए। वकील साहब बोले- ये मैं इसलिए दिखा रहा हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि कल को मैं मंत्री पद से हटूं तो लोग कहें कि देखो मंत्री जी ने कितनी संपत्ति जुटा ली।
यूपी के मंत्री को नेहरू ने बनाया मप्र का सीएमः मध्य प्रदेश में रविशंकर शुक्ल के बाद सीएम के कई दावेदार थे। पहले, तखतमल जैन, वे एमपी बनने से पहले मध्य भारत के प्रधानमंत्री रह चुके थे। दूसरे, सेठ गोविंद दास, जो उस वक्त प्रदेश कांग्रेस के मुखिया थे। तीसरे भगवंत राव मंडलोई जो शुक्ल के अचानक निधन के चलते 21 दिन के कार्यवाहक सीएम रहे। तब तक गोविंद दास और तखतमल अपने हिस्से की कोशिशें कर चुके थे। उन्हें लगा कि हम जब बनेंगे तब बनेंगे, इस जूनियर (मंडलोई) को निपटाओ। विंध्य के प्रधानमंत्री रहे कद्दावर कांग्रेसी नेता शंभू भी उनके साथ हो लिए।
इसी बीच इंदौर में 6, 7 और 8 जनवरी को अखिल भारतीय कांग्रेस का अधिवेशन शुरू हुआ। गोविंद, तखत और शंभू की तिकड़ी अधिवेशन के दौरान ही मौलाना आजाद के पास पहुंची। आजाद ने कहा, नेहरू से मिलो, नेहरूजी के पास पहुंचे तो कहा गया, पंत जी से मिलो। पंत मिलने पर बोले, मुझे क्या, नेहरूजी जिसका नाम कहेंगे, मुझे स्वीकार है। ऐसे में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने करीबी कैलाशनाथ काटजू को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। 1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की, तो काटजू को दोबारा मुख्यमंत्री की कमान सौंपी और वह नेहरू की उम्मीद पर खरें उतरे। काटजू पहले ऐसे सीएम बने जिन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। इससे पहले काटजू 31 जनवरी 1957 से 14 मार्च 1957 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे। बाद में 5 साल के लिए 14 मार्च 1957 से 11 मार्च 1962 तक सीएम रहे।
काटजू की एक शर्त से बना बिड़ला मंदिरः कैलाशनाथ काटजू चाहते थे कि भोपाल की अरेरा हिल्स की पहाड़ी के सौंदर्यीकरण के लिए एक विशाल मंदिर बनाया जाए। इसके लिए उन्होंने पहाड़ी पर जमीन अलॉट की और एक ट्रस्ट भी बनाया। वे चाहते थे कि भोपाल में बनने वाला यह मंदिर इतना सुंदर और भव्य होना चाहिए, जिसकी पहचान पूरे भारत में हो। उसी वक्त कुछ ऐसा हुआ, जिसने सबको हैरान कर दिया। दरअसल, भारत के प्रसिद्ध और औद्योगिक बिड़ला घराने ने मध्य प्रदेश में निवेश की इच्छा जताई। काटजू ने बिड़ला परिवार के निवेश की बात तो मान ली, लेकिन उन्होंने बिड़ला परिवार के सामने एक ऐसी शर्त रखी, जिसे वे लोग मना नहीं कर पाए। काटजू ने बिड़ला परिवार से कहा कि वे मध्य प्रदेश में निवेश एक शर्त पर कर सकते हैं, जब भोपाल में एक भव्य मंदिर बनवाएं। मुख्यमंत्री काटजू की इस शर्त को बिड़ला परिवार ने मान लिया और 3 साल में अरेरा हिल्स की पहाड़ियों पर भव्य मंदिर (बिड़ला मंदिर) बनाया गया।