MP के भोपाल में 26 साल में तीसरा सबसे ज्यादा तापमान, राजगढ़ और खजुराहो 45° पार

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Atul Tiwari
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MP के भोपाल में 26 साल में तीसरा सबसे ज्यादा तापमान, राजगढ़ और खजुराहो 45° पार

Bhopal/New Delhi. पूरे उत्तर भारत में इस समय गजब की गर्मी पड़ रही है। कई इलाकों में टेम्परेचर 45 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया है। 28 अप्रैल यानी गुरुवार को राजधानी भोपाल में पारा 43.3 डिग्री पर पहुंच गया। यह 26 साल में तीसरा सबसे ज्यादा तापमान है। 1996 में अप्रैल में भोपाल में 44.4 डिग्री और 2019 में 43.5 डिग्री सेल्सियस टेम्परेचर पहुंच गया था। वहीं, राजगढ़ में दिन का तापमान 45.7 डिग्री और खजुराहो-नौगांव में 45.6 डिग्री दर्ज किया गया। मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि अगले 5 दिन यूपी, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान (6 राज्यों) में हीट वेव की स्थिति रहने की बात कही है। मध्य प्रदेश में मौसम विभाग ने 29 अप्रैल को सागर, ग्वालियर एवं चंबल संभाग, उज्जैन, छिंदवाड़ा, रायसेन, राजगढ़, नर्मदापुरम, खंडवा, खरगोन, धार, रतलाम, शाजापुर, मंदसौर और नीमच में लू का यलो अलर्ट जारी किया है।



चंद्रपुर में दिन सबसे गरम, मंडला की रात सबसे ठंडी



महाराष्ट्र का चंद्रपुर देशभर में सबसे गरम रहा। वहां दिन का तापमान 45.8 डिग्री दर्ज किया गया। मध्य प्रदेश के मंडला में रात देशभर में सबसे ठंडी रही। वहां रात का तापमान 19.5 डिग्री दर्ज किया गया। घने जंगलों के कारण अन्य शहरों की तुलना में मंडला में तेजी से अर्थ रेडिएशन हुआ। यानी वहां आसमान साफ होने से दिन में हुई तपिश रेडिएशन के जरिए तेजी से आसमान की ओर वापस लौटी। इस वजह से रात का तापमान ज्यादा नहीं बढ़ सका।



इसलिए पड़ रही गर्मी



आर्कटिक सागर (उत्तरी ध्रुव) तेजी से गर्म हो रहा है। साउथ चाइना सी भी गरम हो रहा है। हालांकि, पश्चिमी हिंद महासागर का पश्चिमी हिस्सा ठंडा हो रहा है। इसका कारण ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) है।

पूर्वी एशिया में मार्च से मजबूत जेट स्ट्रीम सिस्टम बना है। मार्च-अप्रैल अब तक सबसे गर्म रहे।

भारत-पाकिस्तान में हीट वेव पैटर्न हाल के दशकों में सबसे लंबे समय चला।



आगे क्या होगा?




  • जमीनी-समुद्री तापमान बढ़ने से दुनिया में आंधी, तूफान, तेज बारिश और सूखे का प्रकोप बढ़ेगा। 


  • जमीन की नमी सूखेगी। उपजाऊ क्षमता धूल बनकर सूखे के साथ हवा में उड़ेगी या बारिश में बह जाएगी। इसका असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा। 

  • आर्कटिक से हिमालय तक ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे, बाढ़ का खतरा बनेगा। बारिश ना होने पर सूखे का प्रकोप बढ़ेगा। इससे खाद्यान्न और जलसंकट पैदा होगा।


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