हिंदी दिवस विशेष: अटल विवि में 74 कोर्स, पढ़ाने वाले सिर्फ 29, ये सभी गेस्ट फैकल्टी

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हिंदी दिवस विशेष: अटल विवि में 74 कोर्स, पढ़ाने वाले सिर्फ 29, ये सभी गेस्ट फैकल्टी

राहुल शर्मा, भोपाल। 14 सितंबर यानी हिंदी दिवस...हर बार की तरह इस बार भी अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय (Atal Bihari Hindi Vishwa Vidyalaya) में सेमिनार की रस्मअदायगी होगी। हिंदी को बढ़ावा देने 2011 में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में देश के पहले और एकमात्र हिंदी विवि की स्थापना हुई। इस विवि की स्थापना को 10 साल हो गए हैं, पर कोई उपलब्धि नहीं है। कहने को 29 विभाग में 74 कोर्स चल रहे हैं, पर उन्हें पढ़ाने के लिए सिर्फ 29 गेस्ट फैकल्टी है। साफ है कि एक फैकल्टी एक से ज्यादा विषयों को पढ़ा रही है। इससे भी बढ़कर यह कि मध्य प्रदेश सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक हिंदी विवि में हिंदी दिवस पर सरकार के मंत्री, नेता तो बड़ी-बड़ी घोषणा करते हैं, पर वे इसे लेकर कितने गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सरकार 10 साल में विवि में एक भी नियमित फैकल्टी की नियुक्ति नहीं कर सकी। यूनिवर्सिटी की पढ़ाई 100% गेस्ट फैकल्टी के भरोसे ही है।

AICTE नहीं दे रहा मान्यता, UGC की ग्रांट भी नहीं

अटल विवि में नियमित फैकल्टी (Permanant Faculty) नहीं है, इसलिए ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्नीकल एजुकेशन (AICTE) इसके कोर्स को मान्यता नहीं दे रही। इसी वजह से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन- UGC) की ग्रांट भी विवि को नहीं मिल रही। नियमित फैकल्टी नहीं होने से अध्ययन मंडल का गठन ही नहीं हो पाया, जिसके कारण यहां कभी हिंदी को लेकर शोध हुए ही नहीं। 

10 साल बाद समझ आया कि जगह कम है

यूनिवर्सिटी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में करवाना था। 2016 में इंजीनियरिंग कोर्स में 4 ब्रांच शुरू हुई, पर एडमिशन 12 भी नहीं हो पाए। नियमित फैकल्टी नहीं होने से AICTE ने कोर्स को मान्यता देने से मना कर दिया और 2017 में ही कोर्स बंद हो गया। अब इसे लेकर कुलपति प्रो. खेम सिंह डेहरिया कहते हैं कि इन कोर्स के संचालन के लिए जगह कम है, यूनिवर्सिटी कैंपस से लगी 51 एकड़ जमीन के लिए सरकार से मांग की है। 

सरकार से 2.75 करोड़ ग्रांट, वेतन पर ही खर्च हो रहे 2 करोड़

हिंदी विश्वविद्यालय को सरकार का सफेद हाथी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। हिंदी विवि के संचालन के लिए सरकार से करीब 2.75 करोड़ ग्रांट मिलती है। एडमिशन और अध्ययन केंद्र संचालन के फीस के रूप में यूनिवर्सिटी को पैसे मिलते हैं, पर यह बहुत ज्यादा नहीं है। कुलपति, कुलसचिव, फाइनेंस ऑफिसर, डेपोटेशन पर आए एक अधिकारी समेत परामर्श के लिए नियुक्त हुए लोगों के वेतन पर ही लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं। वहीं 29 गेस्ट फैकल्टी और 80 से ज्यादा नॉन टीचिंग स्टॉफ को भी सैलरी दी जा रही है। यह सब मिलाकर सालाना करीब 2 करोड़ रुपए होते हैं, हालांकि उपलब्धि कुछ नहीं है।

ये हैं यूनिवर्सिटी के हाल...

  • फिशरीज को छोड़कर कोई लैब नहीं, फिशरीज की लैब में भी उपकरण नहीं मिले। 

  • इंडोर स्टेडियम को स्टोर रूम की तरह इस्तेमाल कर रहे।
  • फिलहाल ट्रांसपोर्ट की भी व्यवस्था नहीं, यूनिवर्सिटी खुली तो 650 स्टूडेंट के लिए सिर्फ एक बस।
  • यूनिवर्सिटी के अभी भी बड़े-बड़े दावे...

    • 6 महीने के अंदर हिंदी भाषा प्रयोगशाला बनाएंगे, 35 लाख की स्वीकृति मिल गई है।  

  • अटल पीठ की स्थापना होगी। विशेषज्ञों की समिति गठित करेंगे।
  • प्लेसमेंट सेल बनाई जाएगी, 4 हजार छात्रों को रोजगार देंगे। 
  • अटल जी के नाम पर दिसंबर में शोध पत्रिका का विमोचन। 
  • दावा- 6 प्रोफेसर समेत कई नियुक्तियां जल्द

    अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विवि के वाइस चांसलर प्रो. खेम सिंह डेहरिया कहते हैं कि नियमित फैकल्टी नहीं होने से शोध (Reserch) नहीं हो पा रही, इसी कारण यूजीसी ग्रांट भी रुकी है। आरक्षण के कारण प्रक्रिया अटकी थी। कुछ दावे आपत्ति भी हैं, जिनका निराकरण कर रहे हैं। जल्द ही 6 प्रोफेसर और 18 सहायक प्राध्यापकों (Assistant Professor) की नियुक्ति होगी। इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई के लिए सरकार से 51 एकड़ जमीन मांगी है। लेटर भी लिखा है। जल्द ही इस दिशा में भी काम होगा। 

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