बैतूल. होली के दिन शायद ही कोई हो, जो रंगों से दूर रहता हो। लेकिन मध्य प्रदेश के बैतूल जिले का डहुआ गांव होली पर सन्नाटा पसरा रहता है। यहां 100 साल से होली पर मातम होता है। होली पर यहां ना तो रंग गुलाल उड़ता है और ना ही पकवान बनाए जाते हैं। होली की बधाई तक नहीं दी जाती।
गांव में होली मनाना गुनाह: बैतूल के इस गांव में होली पर रंगों को हाथ लगाना भी गुनाह समझा जाता है। होली पर गांव में आम दिनों की तरह चहल- पहल भी नहीं होती। गलियों में सन्नाटा पसरा रहता है। 2100 की आबादी वाले डहुआ गांव में होली पर मातम में डूबे रहने की भी कहानी है।
कहते हैं कि 100 साल पहले गांव के प्रधान नड़भया मगरदे की होली खेलते हुए मौत हो गई थी। उस दिन हर कोई होली की मस्ती मे डूबा हुआ था। परंपरानुसार, होली खेलने गांव के बड़े, बुजुर्ग एक कुएं पर इकट्ठा हुए और मस्ती में डूब गए। रंग खेलने के बाद कुएं में कूदकर नहाने का सिलसिला भी चला। प्रधान भी कुएं में कूदे, लेकिन बाहर नहीं निकले। लोगों ने तलाशा तो प्रधान की लाश मिली। उस घटना के बाद आज तक गांव में किसी ने होली नहीं मनाई। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष अशोक कड़वे बताते हैं कि 65 साल की उम्र में उन्होंने कभी गांव में होली नहीं खेली। बुजुर्ग बताते हैं कि यह सिलसिला 100 साल से भी ज्यादा सालों से चल रहा है।
गांव में 40 साल पहले ब्याह कर आईं गीता कड़वे बताती हैं कि उन्होंने गांव में कभी होली मनाते नहीं देखा। चार साल पहले कुछ लोगों ने कोशिश की थी, लेकिन उस दिन फिर मगरदे परिवार में किसी की मौत हो गई। युवा अंकित बताते हैं कि लड़कों का मन तो होली मनाने को करता है, लेकिन गांव की परंपरा तोड़ने की जुर्रत कोई नहीं करता। वैसे वे लोग होली के 5वें दिन पंचमी का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं।