इंदौर. संसद के मॉनसून सत्र के दौरान मोदी सरकार की मंत्री ने सदन में कहा था कि कोरोना काल में देश में ऑक्सीजन की कमी से मौत का कोई आंकड़ा नहीं है। इस पर राजनीतिक दलों समेत लोगों ने खासी नाराजगी जताई थी। अब कोरोना दौर में ऑक्सीजन की कमी को लेकर मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का बयान आया है। 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के कार्यक्रम में नरोत्तम ने कहा कि कोई कल्पना कर सकता है कि ऑक्सीजन की वजह से भी लोग मर सकते हैं, लेकिन मरे…। नरोत्तम के इस बयान ने नई बहस छेड़ दी है।
तो सरकार ने माना कि ऑक्सीजन की कमी से जान गईं
मोदी के जन्मदिन पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेशभर में 17 सितंबर से 7 अक्टूबर 2021 तक ‘जनकल्याण और सुराज अभियान’ चलाया है। इसी कड़ी में 17 सितंबर को इंदौर शिक्षा विभाग ने मल्हाराश्रम स्कूल में पौधरोपण कार्यक्रम किया। इस दौरान नरोत्तम ने पेड़ों की अहमियत समझाई और परोक्ष (Indirect) रूप से स्वीकारा कि ऑक्सीजन की कमी से मौतें हुई हैं। उन्होंने कहा कि पेड़ों के महत्व को आने वाली पीढ़ी को बताएं तो ही हम समाज के साथ न्याय कर पाएंगे।
जो मुफ्त मिला, उसकी कद्र नहीं की
नरोत्तम ने आगे ये भी कहा कि हम अभी जो सांस ले रहे हैं, वो खुली हवा से ले रहे हैं, वो ऑक्सीजन ही कहलाती है। कोई कल्पना कर सकता है कि उस ऑक्सीजन की वजह से भी लोग मर सकते हैं, लेकिन मरे। इसलिए कि हमने वृक्षों के महत्व को नहीं समझा। हमें जो चीज निशुल्क (Free) मिली, उसका महत्व समझा ही नहीं। हम मान लेते हैं कि यह तो मिलना ही चाहिए, यह हमारा अधिकार ही है। अभी (इशारा कोरोना काल पर) हमने देखा कि लोगों को जिंदा रखने के लिए ऑक्सीजन प्लेन से, ट्रकों से आ रही है। ऐसे में अब लोगों का ध्यान गया हो कि ये पेड़ कितने जरूरी हैं।
पहले घर में पेड़ लगाते थे, अब काट रहे
नरोत्तम के मुताबिक, हमारे पूर्वज वृक्षों पूजा ऐसे ही नहीं करते थे। हर घर के बाहर तुलसी लगी होती थी, लेकिन हमने हटा दिया। हमारे यहां साल में एक दिन होता था, जब बड़ (बरगद) की पूजा होती थी, पीपल की पूजा होती थी। ये वो पेड़ हैं, जो 24 घंटे ऑक्सीजन देते हैं, इसलिए घर के बाहर लगाते थे, ताकि जो व्यक्ति आए और बैठे तो पॉजिटिव एनर्जी मिले। पौधे भी पर्याप्त मात्रा में होते थे, लेकिन हमने काट दिए।
हमें ज्ञान देने वाले बहुत ज्ञानी आ जाते हैं
मप्र के गृह मंत्री ने ये भी कहा कि श्राद्ध में हम रोटियां निकालकर कौओं को खिलाते हैं। अब कुछ लोग हमारी परंपराओं की आलोचना करते हैं। होली पर कहते हैं फिजूल का पानी बहा रहे हो। दीपावली पर कहते हैं, फालतू प्रदूषण फैला रहे हो। ये बंधन सिर्फ हिन्दू त्यौहारों के लिए आते हैं, बाकी किसी धर्म पर कोई बंधन नहीं। अन्य त्योहारों पर कोई कहता है कि खून बह रहा है, नर बलि दे रहे हैं, पशु बलि दे रहे हैं वगैरह वगैरह…। हममें से ही बहुत सारे विद्वान पैदा हो जाते हैं, जो हमें सिर्फ ज्ञान देते हैं और ऐसा ज्ञान देते हैं, सुधार का बीड़ा इन्होंने ही उठाया है। हमारे पूर्वजों ने तो हमारी संस्कृति, सभ्यता और विज्ञान का सम्मिश्रण किया है।