BHOPAL. रतलाम के दो गावों में दुधारु पशुओं में घातक लंपी वायरस के लक्षण सामने आने के बाद पशु चिकित्सा विभाग ने प्रदेश में अलर्ट जारी कर दिया है। पशुओं में पॉक्स वायरस से फैलने वाली लंपी बीमारी से संक्रमित पशुओं ( गाय, भैंस) के शरीर खासकर मुंह और गले पर मोटी-मोटी ठोस गठाने उभरने के बाद उनकी त्वचा पर घाव बनने लगते हैं। बीमार पशु खाना-पीना छोड़ देता है और शरीर में बुखार- सूजन बढ़ने से दूध देना भी कम कर देता है। यदि आपके पालतू पशु में भी लक्षण नजर आएं तो उन्हें तत्काल दूसरे पशुओं के अलग कर डॉक्टर को दिखकर इलाज कराना चाहिए। इसमें देरी से संक्रमित पशु की जान भी जा सकती है।
पशुपालन विभाग ने सभी जिलों जारी किया अलर्ट
पशुपालन विभाग ने प्रदेश में इस खतरनाक वायरस के बारे में सभी जिलों को अलर्ट जारी कर इसकी रोकथाम के प्रयास शुरु कर दिए हैं। डायरेक्टर डॉ. आरके मेहिया ने स्पष्ट किया है कि लंपी वायरस से संक्रमित पशु का दूध पीने से किसी इंसान पर असर का अभी कोई मामला सामने नहीं आया है।
ये हैं लंपी वायरस के संक्रमण के लक्षण
डॉ. आरके मेहिया के मुताबिक LSD यानी लंपी स्किन डिसीज (गांठदार त्वचा रोग) पशुओं को होने वाली एक वायरल बीमारी है। ये पॉक्स वायरस से पशुओं में फैलती है। यह बीमारी मच्छर और मक्खी के जरिए एक से दूसरे पशुओं में फैलती है। इस बीमारी के लक्षणों में पशु के शरीर पर छोटी-छोटी गठानें दिखने लगती हैं। जो कुछ दिनों में बड़ी ठोस गांठों में बदल जाती हैं। पशु की त्वचा पर जख्म नजर आने लगते हैं। बीमार पशु खाना-पीना कम कर देता है। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है।
त्वचा पर गठानों के साथ घाव दिखें तो हो जाएं सावधान
इस बीमारी की शुरूआत में पशु को दो से तीन दिन के लिए हलका बुखार रहता है। उसके बाद पूरे शरीर में गठानें (2-3 सेमी) निकल आती हैं। ये गठानें गोल उभरी हुई होती हैं जो चमड़ी के साथ-साथ मसल्स की गहराई तक जाती हैं। मवेशी के मुंह, गले, श्वास नली तक इस बीमारी का असर दिखने लगता है। इससे गले (लिंफ नोड) में सूजन, पैरों में सूजन, दूध देने की क्षमता में कमी होने लगती है। हालांकि ज्यादातर संक्रमित पशु 2 से 3 सप्ताह में ठीक हो जाते हैं। लेकिन दूध के उत्पादन में कई सप्ताह तक कमी बनी रहती है। इस बीमारी में संक्रमण दर 10-20 प्रतिशत और मृत्यु दर 15 प्रतिशत तक होती है । लम्पी वायरस इतना घातक है कि इसे संक्रमित पशु को समय पर इलाज न मिले ते 15 दिन के भीतर उसकी मौत भी हो सकती है।
ये है बीमारी के इलाज की प्रक्रिया
भोपाल के पशु अस्पताल के डॉ. संजीव शर्मा की पशुपालकों को सलाह है कि लंपी बीमारी के लक्षण नजर आते ही बीमार पशु को दूसरे स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए। इसके बाद बिना समय गंवाए पशुचिकित्सक की निगरानी में इलाज शुरू कराना चाहिए। इस बीमारी के इलाज में संक्रमण रोकने के लिए पशु को 5 से 7 दिन तक एन्टीबायोटिक के साथ बुखार औऱ सूजन रोकने की दवाएं दी जाती हैं। त्वचा में घाव होने पर मक्खी-मच्छर को दूर रखने वाली एंटीसेप्टिपक ऑइंटमेंट लगाई जाती है। संक्रमित पशु को पर्याप्त मात्रा में तरल और हल्का खाना व हरा चारा देना चाहिए। पशुपालक हाइजीनिक कंडीशन रखें यानी बीमारी पशु को साफ-सुथरी और सूखी जगह पर रखें ताकि कोई भी सेकंडरी इंफेक्शन ग्रोथ न कर पाए। वे स्पष्ट करते हैं कि ये बीमारी जानलेवा नहीं है लेकिन लापरवाही के कारण घातक हो सकती है। यदि इस बीमारी से किसी पशु की मौत होती है तो मृत पशु का शव जैव सुरक्षा मानक के अनुसार डिस्पोज किया जाना चाहिए।
रतलाम के दो गांवों में आए संक्रमण के मामले
प्रदेश में हाल ही में रतलाम जिले में इस वायरस की पुष्टि हुई थी। जिले के दो गांवों में पशु चिकित्सा विभाग ने राज्यस्तरीय टीम भेजी है। ये टीम लंपी वायरस के संदिग्ध पशुओं के सैंपल लेकर राज्य प्रयोगशाला भेजेगी। सैंपल यहां से भोपाल के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिसीज (NIHSAD) में जांच के लिए भेजे जाएंगे। इसके साथ ही संदिग्ध लक्षणों वाले पशुओं के आसपास के इलाके का सर्वे भी किया जाएगा।
राजस्थान में तेजी से फैल रहा है रोग
राजस्थान के 33 में से 20 जिलों में लंपी वायरस फैल चुका है। करीब 60 फीसदी राजस्थान में गायें इस संक्रामक बीमारी की चपेट में हैं। यदि कुल दुधारू पशुओं की बात करें तो यहां 90 प्रतिशत गायें और 10 प्रतिशत भैंसें संक्रमित हुई हैं। यदि कोई भी पशु इस वायरस से संक्रमित होता है तो बीमारी के लक्षण 7 दिन में दिखने शुरू हो जाते हैं।
राहत की बात......पहली स्वदेशी वैक्सीन तैयार, जल्द होगी उपलब्ध
मप्र के अलावा राजस्थान में भी इस बीमारी का प्रकोप देखा जा रहा है लेकिन अब इस संबंध में राहत देने वाली खबर सामने आई है। हरियाणा के केंद्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने लम्पी के खिलाफ स्वदेशी वैक्सीन तैयार कर ली है। उत्तराखंड, राजस्थान समेत कई राज्यों में ट्रायल हो चुका है। कृषि मंत्रालय ने वैक्सीन के इमरजेंसी यूज की मंजूरी दे दी है। अगले सप्ताह तक वैक्सीन बाजार में आ जाएगी। वैक्सीन बीकानेर वेटरनरी यूनिवर्सिटी से पीजी करने वाले अलवर निवासी डॉ. नवीन की अगुवाई में हरियाणा में 51 सेंटरों पर तैयार की गई है। यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. एसके गर्ग ने बताया, वैक्सीन तैयार हो गई है। प्रदेश की 6 गोशालाओं में ट्रायल की सहमति दी है। गायों में वैक्सीनेशन जल्द शुरू होने की उम्मीद है।
पशुओं को 1 साल तक पूरी तरह सुरक्षित रखेगी वैक्सीन
देश में 2019 में ओडिशा के पशुओं में पहली बार लंपी वायरस का असर सामने आया था। तब पशुचिकित्सा वैज्ञानिकों ने वहां से सैंपल लिए थे। इसके बाद ही इस बीमारी का वैक्सीन तैयार करने का काम शुरु हुआ था। एक साल पहले ही वैक्सीन का 90 फीसदी काम पूरा हो गया था लेकिन अप्रूवल प्रोसेस पूरा नहीं हुआ था। दावा किया जा रहा है कि वैक्सीन एक साल के लिए पशु को पूरी तरह सुरक्षित रखेगी। हालांकि, अभी वैक्सीन के नाम का खुलासा नहीं किया गया है।