MP: मात्र तृतीय पक्ष की आपत्ति पर जानकारी को नहीं रोका जा सकता है- राज्य सूचना आयुक्त

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MP: मात्र तृतीय पक्ष  की आपत्ति पर जानकारी को नहीं रोका जा सकता है- राज्य सूचना आयुक्त

भोपाल. क्या मात्र तृतीय पक्ष की आपत्ति पर जानकारी को रोका जा सकता है। राज्य सूचना आयोग (State Information Commission) के समक्ष एक रोचक अपील प्रकरण आया। इसमें अपीलकर्ता (appellant) आरटीआई आवेदक न होकर तृतीय पक्ष वाणिज्यकर विभाग सतना (Commercial Tax Department Satna) में कार्यरत गजेंद्र कुमार मिश्रा (Gajendra Kumar Mishra) थे। इनके संबंध में जानकारी मांगने के लिए आरटीआई आवेदन दायर किया गया था।

तत्काल RTI आवेदक को जानकारी देने के निर्देश दिए

राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह (State Information Commissioner Rahul Singh) ने तीसरे पक्ष की अपील को खारिज करते हुए वाणिज्यकर विभाग सतना  को अधिकारी की जानकारी तत्काल RTI आवेदक को देने के निर्देश दिए है। साथ ही जानकरी रोकने पर दोषी लोक सूचना अधिकारी भावना शर्मा (Public Information Officer Bhavna Sharma) असिस्टेंट कमिश्नर वाणिज्यकर सतना के विरुद्ध 25 हजार रुपए के जुर्माने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया है। आरटीआई आवेदन में मिश्रा की उपस्थिति पंजी, नियुक्ति आदेश और पदस्थापना संबंधी जानकारी भी चाही गई थी। लोक सूचना अधिकारी ने इसे तृतीय पक्ष की जानकारी मानते हुए गजेंद्र कुमार मिश्रा को धारा 11 के तहत पत्र जारी कर उनका भी अभीमत मांगा। मिश्रा द्वारा उक्त जानकारी को अपनी व्यक्तिगत जानकारी बताते हुए जानकारी देने से मना किया।

इसी को आधार बनाकर लोक सूचना अधिकारी ने जानकारी देने से आरटीआई आवेदक को मना कर दिया। इसके बाद आरटीआई आवेदक ने प्रथम अपील दायर की और प्रथम अपीलीय अधिकारी ने जानकारी को आरटीआई आवेदक को देने के निर्देश जारी की है। प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश से नाराज होकर तृतीय पक्ष गजेंद्र कुमार मिश्रा ने जानकारी रोक लगाने के लिए  सीधे राज्य सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील दिनांक 6 दिसंबर 2021 को दायर की।

राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने तत्काल कार्रवाई करते हुए दिनाक 07 दिसंबर 2021 को ही प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश पर रोक लगाकर अगले दिन 8 दिसंबर 2021 को प्रकरण में सुनवाई की। सुनवाई के दौरान राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने यह स्पष्ट किया कि मात्र तृतीय पक्ष की आपत्ति के आधार पर ही जानकारी को नहीं रोका जा सकता है। धारा 11 मात्र तृतीय पक्ष की आपत्ति बुलाने का बुलाने की प्रक्रिया है और जानकारी को रोकने का प्रावधान मात्र धारा आठ में है। सूचना आयुक्त ने अपने आदेश में यह भी कहा कि यहां लोक सूचना अधिकारी की तरफ से विधि सम्मत कार्रवाई नहीं हुई है। उपस्थिति पंजी, पदस्थापना, नियुक्ति आदेश आदि जानकारी व्यक्तिगत जानकारी के दायरे में नहीं आती है बल्कि धारा 2 के तहत पब्लिक रिकॉर्ड का हिस्सा है। इस पर तृतीय पक्ष आपत्ति लेते हुए कहा की उपस्थिति पंजी उनकी निजी जानकारी है।

आयुक्त सिंह ने इस आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि अधिनियम की धारा 4  (1)b(x) के तहत वेतन की जानकारी स्वतः देने  का प्रावधान है इसके लिए आरटीआई दायर करने की भी जरूरत नहीं है। सिंह ने कहा कि क्योंकि वेतन की गणना का आधार उपस्थिति पंजी होती है इससे उपस्थिति पंजी भी स्पष्ट रूप से पब्लिक रिकॉर्ड की श्रेणी में आता है। सिंह ने अपने आदेश में यह भी कहा कि मात्र तीसरे पक्ष की यह आपत्ति की जानकारी व्यक्तिगत है पर्याप्त नहीं है क्योंकि धारा  8(1)J  में स्पष्ट रूप से यह प्रावधान भी है कि जो जानकारी विधानसभा या संसद को देने से अधिकारी मना नहीं कर सकते हैं वह जानकारी आरटीआई आवेदक को दी जाएगी। सुनवाई के दौरान जब लोक सूचना अधिकारी असिस्टेंट कमिश्नर वाणिज्यकर सतना से पूछा गया कि क्या वे इस जानकारी को विधानसभा को देने से इनकार करेंगे तो अधिकारी ने कहा कि विधानसभा को इस जानकारी को देने से इंकार नहीं कर सकते हैं। 

RTI का मकसद पारदर्शी स्थापित करना है

सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने  अपने आदेश में  यह भी स्पष्ट  किया कि संसद और विधानसभा में भी सांसदों और विधायकों के अटेंडेंस का रिकॉर्ड पब्लिक है जो कि जन सामान्य को वेबसाइट के माध्यम से भी उपलब्ध कराया गया है। वही शासकीय कार्यालय में कार्यरत अधिकारी और कर्मचारी के अटेंडेंस का रिकॉर्ड पब्लिक ना होने या RTI के तहत ना देने कोई आधार नहीं बनता है। वाणिज्यकर विभाग के लोक सूचना अधिकारी द्वारा इस जानकारी को थर्ड पार्टी के रूप में मानकर जानकारी को रोकने की कवायद हास्यास्पद है।

सूचना के अधिकार अधिनियम का मूल मकसद प्रशासनिक स्तर पर एक पारदर्शी एवं भ्रष्टाचार निरोधी व्यवस्था स्थापित करते हुए शासन-प्रशासन को जनता के प्रति उत्तरदाई बनाने का है।  शासकीय कार्यालय में किसी अधिकारी या कर्मचारी को नियमों के अनुसार कार्यालय में उपस्थित होकर होकर कार्य करना होता है। और अगर उनकी उपस्थिति का रिकॉर्ड ही गोपनीय रखा जाए तो बिना कार्यालय आए तनख्वाह उठाने वाले के लिए रास्ता और आसान हो जायेगा। आयोग के समक्ष यह भी स्पष्ट है कि पब्लिक डीलिंग वाले कई विभागों में जब कर्मचारी-अधिकारी जब कार्यालय में उपलब्ध ही नहीं होते हैं तो आम जनता कार्यालय के चक्कर लगा लगा कर परेशान हो जाती है। जाहिर है ऐसी स्थिति में अटेंडेंस रिकॉर्ड RTI के तहत जनता के सामने रखने से शासकीय कार्यालयों में पारदर्शी व्यवस्था के साथ प्रशासनिक कसावट सुनिश्चित होगी।

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