भोपाल (राहुल शर्मा). मध्य प्रदेश के जिलों में बैठे कलेक्टर्स को राज्य सूचना आयुक्त के आदेश की भी कोई परवाह नहीं है। इसके कारण उनकी कभी भी नपाई भी हो सकती है। दरअसल 19 फरवरी 2021 को एक मामले में फैसला सुनाते हुए राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने यह आदेश दिया था कि प्रदेश के किसी भी पंचायत में होने वाले भ्रष्टाचार की जानकारी और इन मामलों में दोषी पदाधिकारियों को पद से हटाने की कार्रवाई की पूरी सूचना पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की वेबसाइट और जिला प्रशासन की वेबसाइट पर अपलोड की जाए। इसके लिए राहुल सिंह ने अवर मुख्य सचिव सामान्य प्रशासन विभाग को निर्देशित किया था कि आयोग के ऑर्डर की प्रति कलेक्टरों को भेजकर पालन सुनिश्चित कराएं।
इस आदेश के पालन की व्यवस्था के लिए कलेक्टर को 3 महीने का समय दिया गया था, जो 19 मई 2021 को खत्म हो गया। 8 महीने बीत जाने के बाद भी कलेक्टर भ्रष्ट सरपंच-सचिव की जानकारी वेबसाइट पर अपलोड नहीं कर सके हैं। आदेश में साफ तौर पर लिखा था कि वेबसाइट पर भ्रष्ट सरपंच और सचिव या अन्य अधिकारी की पूरी जानकारी देनी थी, लेकिन पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की वेबसाइट पर जो आंकड़े दिए गए, वो सिर्फ संख्यात्मक हैं। कारनामा किन सरपंच और सचिव ने किया, इसकी जानकारी ही नहीं मिल रही है। वहीं जिला प्रशासन की वेबसाइट पर तो यह जानकारी साझा ही नहीं की गई है। इस पूरी कवायद का मुख्य उद्देश्य तो यही था कि एक आम आदमी तक भ्रष्टाचारियों की जानकारी पहुंचे, ताकि अन्य अधिकारी-कर्मचारी सरकारी राशि की बंदरबांट करने से पहले दस बार सोचे।
यह जानकारी करनी थी अपलोड: राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने आदेश के साथ एक प्रारूप जारी किया था, जिसके तहत जानकारी को पब्लिक प्लेटफॉर्म पर साझा करना था। इस प्रारूप में 6 कॉलम है। इसमें ग्राम/जनपद/जिला पंचायत की जानकारी है। किस धारा के तहत की गई कार्रवाही और आदेश की प्रति अपलोड करने के साथ-साथ अगर एफआईआर की गई है तो उसकी जानकारी का भी कॉलम है। वहीं, विभाग की वेबसाइट यह जानकारी आंकड़ों में तो दी गई, पर PDF अपलोड नहीं की गई, लिहाजा मामले की जानकारी ही नहीं मिल रही। उधर, जिलों की प्रशासनिक वेबसाइट पर तो कुछ है ही नहीं।
सूबे में 3300 भ्रष्ट-सरपंच सचिव, पर नाम खोज नहीं पाएंगे: पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की वेबसाइट के अनुसार, सूबे में 3300 से ज्यादा भ्रष्ट सरपंच-सचिव हैं, जिनके ऊपर पंचायत राज अधिनियम की धारा 40 और 92 के तहत केस दर्ज है, पर आप इनके नाम खोज नहीं पाएंगे। इनके आंकड़े वेबसाइट पर ऐसी जगह रखे हैं, जहां आम व्यक्ति को इन्हें खोजने में खासी मशक्कत करनी होगी। भ्रष्ट सरपंच-सचिव के नाम की सूची वेबसाइट पर इतनी आसान जगह पर होनी थी कि एक ग्रामीण आसानी से इसे खोज ले। यहां ये बात भी गौर करने वाली है कि भ्रष्ट सरपंच-सचिव की जानकारी का विकल्प धारा 40 और 92 के अंतर्गत दिया गया है।
सवाल यह उठता है कि क्या ग्रामीणों को पता है कि धारा 40-92 क्या होती है? क्या विभाग सीधे भ्रष्ट सरपंच-सचिव की जानकारी नहीं लिख सकता था, ताकि एक सामान्य ग्रामीण भी इसे समझ सके। खैर...यदि कोई काफी मशक्कत के बाद इस सूची तक पहुंच भी जाता है तो उसे सिर्फ संख्यात्मक डेटा ही मिलेगा, केस से संबंधित फाइल डाउनलोड ही नहीं होगी और चार-पांच दिन की मेहनत के बाद फाइल अपलोड हो जाती है तो सामान्य पीडीएफ फाइल न होकर यह एएसएचएक्स फार्मेट में होने से नहीं खुलेगी। सवाल यह कि क्या एक ग्रामीण इतना टेक्नीकल होगा कि वह इन सभी समस्याओं से जूझकर भ्रष्टाचारियों की जानकारी जुटा सके। सवाल यह भी कि कहीं यह भ्रष्टाचारियों की करतूत पर पर्दा डालने की कोशिश तो नहीं।
वेबसाइट पर यहां मिलेगी थोड़ी बहुत जानकारी: जिला प्रशासन की वेबसाइट पर तो जानकारी ही अपलोड नहीं की गई है। वहीं पंचायत विभाग की वेबसाइट www.prd.mp.gov.in पर जो थोड़ी बहुत जानकारी है, उस तक पहुंचने के लिए आपको रिपोर्ट वाले विकल्प पर क्लिक करना होगा। यहां आपको विभागीय रिपोर्ट के विकल्प पर क्लिक करना होगा, जिसके बाद आपके होम स्क्रीन पर 5 विकल्प खुल जाएंगे। आपको 5वें विकल्प अन्य रिपोर्ट के दूसरे विकल्प पर जाना है, यहां आपको धारा 40 और 92 के अंतर्गत दर्ज केसों की जानकारी मिलेगी।
आंकड़ों में की जमकर हेराफेरी: विभाग की वेबसाइट पर जो आंकड़े दिए गए हैं, वह भी भरोसेमंद नहीं है, उनमें भी आंकड़ों में हेराफेरी की गई। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की वेबसाइट पर 1 जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2021 तक की जानकारी देखने पर पता चलता है कि इस 2 सालों में पंचायती राज अधिनियम की धारा 40 के अंतर्गत भ्रष्ट सरपंच सचिव के कुल 60 मामले थे, जबकि धारा 92 के अंतर्गत कुल केस 655 दर्ज किए गए थे, लेकिन दूसरे कॉलम में दोनो धाराओं के कुल केसों की संख्या 200 बताई और निपटारे के भी 200 केस बता दिए गए। जबकि, इसी सूची में भोपाल के धारा 92 के 5 केस पेंडिंग बताए जा रहे हैं। कुल मिलाकर आंकड़ों में ही जमकर जादूगरी की गई, इसलिए द सूत्र भी इन आंकड़ो की पुष्टि नहीं करता।
मंडला-बुरहानपुर ने उड़ाया आदेश का मजाक: यदि सीधी जिले की बात छोड़ दी जाए तो प्रदेश के किसी भी जिले ने आदेश का ठीक तरह से पालन नहीं किया। सीधी ने आदेश के पालन में बाकायदा 51 पेज की पीडीएफ अपलोड की, जिसमें भ्रष्ट सरपंच सचिव की संपूर्ण जानकारी है। वहीं मंडला ने सिर्फ 9 केस की जानकारी दी जिसमें सिर्फ जनपद और पंचायत का नाम भर है। किस सरपंच-सचिव ने क्या किया, कितने का भ्रष्टाचार किया, ऐसी कोई जानकारी ही नहीं दी। कुछ यही हाल बुरहानपुर के है। वहीं भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर और इंदौर के जिला प्रशासन की वेबसाइट पर तो कोई जानकारी ही अपलोड नहीं की गई, जबकि 1 जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2021 तक पंचायत विभाग की वेबसाइट के अनुसार धारा 92 के तहत भोपाल में 5, इंदौर में 1, ग्वालियर में 12 और जबलपुर में 4 केस पेंडिंग है। यानी इनकी जानकारी जिला प्रशासन की वेबसाइट पर दर्ज होनी थी, जो नहीं की गई।
कलेक्टरों पर लग सकता है जुर्माना: राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने आदेश में यह भी साफ किया था कि 3 महीने बाद अगर किसी व्यक्ति द्वारा यह शिकायत की जाती है कि उक्त जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है तो आयोग धारा-18 के तहत लोक प्राधिकारी जिले के कलेक्टर को जिम्मेदार मानते हुए उनके विरुद्ध जुर्माने की कार्रवाई करेगा। जिसके चलते 31 मार्च 2021 को पंचायत राज संचालनालय की संचालक निधी निवेदिता ने जिला पंचायत के सभी सीईओ को भी आदेश जारी कर दिया था, लेकिन डेडलाइन 19 मई 2021 को खत्म हो जाने के बाद भी यह जानकारी अपलोड नहीं हो सकी, जिन्होंने की वो भी किसी खानापूर्ती से कम नहीं है।
क्या है धारा 42 और धारा 92: पंचायत विभाग के कामों में किसी भी प्रकार की सरकारी राशि में गबन करने पर मध्य प्रदेश के सभी पंचायतों में अगर कोई पदाधिकारी या जनप्रतिनिधी दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ मध्य प्रदेश के पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम की धारा 40 और 92 के तहत कार्रवाई की जाती है। धारा-40 पंचायत के पदाधिकारियों को हटाने के संबंध में है। जबकि धारा 92 के तहत गबन की गई सरकारी राशि की वसूली का प्रावधान है।
जानकारी सार्वजनिक होती तो यह होता असर: पंचायत स्तर पर अक्सर राजनीतिक दबाव के चलते भ्रष्टाचार के मामले सिर्फ फाइलों तक सीमित होकर रह जाते थे। यदि यह जानकारी सही तरीके से पब्लिक प्लेटफॉर्म पर आती तो पंचायतीराज व्यवस्था में कसावट के साथ-साथ भ्रष्टाचार निरोधी पारदर्शी व्यवस्था भी सुनिश्चित होती। अगर आदेश का सही तरीके से पालन किया जाता तो कम्प्यूटर की एक क्लिक के जरिए आम आदमी इस कार्रवाई को देख सकता।
इस शिकायत के बाद लिया था फैसला: रीवा जिले के सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने 2019 में पंचायत विभाग में हो रही कार्रवाई को प्राप्त करने के लिए RTI दाखिल की थी। इसके बाद भी उन्हें यह जानकारियां नहीं मिल पाई। इसके बाद शिवानंद ने रीवा जिले एवं अन्य जिलों में भी इस तरह की जानकारी उपलब्ध नहीं होने की बात राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह को ट्वीट कर बताई। जिसके बाद राज्य सूचना आयोग ने मामले का संज्ञान लिया और पंचायत विभाग की जानकारी सार्वजनिक करने का फैसला लिया।
जिम्मेदारों का गैर जिम्मेदाराना रवैया: द सूत्र ने इस मामले की जानकारी के लिए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव सह आयुक्त उमाकांत उमराव और पंचायत राज के संचालक आलोक सिंह से मोबाइल पर संपर्क करना चाहा, पर संपर्क नहीं हो सका। इसके बाद वॉट्सऐप मैसेज भी किए पर कोई जवाब नहीं आया। आलोक सिंह ने तो मैसेज देखा भी लेकिन रिप्लाई नहीं किया। मतलब उन्हें इस बारे में कुछ नहीं कहना है।