Bhopal. प्रदेश (Madhya Pradesh) की राजनीति में ऐसा पहले कांग्रेस (Congress) में हुआ करता था जब क्षत्रप नेता अपने-अपने पट्ठों के लिए सबकुछ दाँव पर लगाकर भिड़ जाया करते थे। यही नजारा अब बीजेपी (BJP) में देखने को मिल रहा है। रीवा के महापौर (Mayor) के टिकट को लेकर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा (State President VD Sharma) और पूर्व मंत्री और वरिष्ठ विधायक राजेन्द्र शुक्ल (Rajendra Shukla) में कुछ ऐसी ही टसल सुनने को मिल रही है।
राजेन्द्र के हर कदम पर अड़चन
प्रदेश में 2003 में राजेन्द्र शुक्ल जब से विधायक (MLA) और इसके बाद बीजेपी सरकार में मंत्री बने तब से पिछले कार्यकाल तक वे विंध्य की राजनीति में बीजेपी के शुभंकर माने जाते थे। कमोवेश उनके हर निर्णय पर संगठन की भी सहमति रहती थी। पिछले नगर निगम चुनाव (municipal elections) की ही बात करें तो रीवा (rewa) से ममता गुप्ता (Mamta Gupta) और सतना (Satna) से ममता पांडेय (Mamta Pandey) को जिस तरह महापौर का टिकट मिला उससे सभी चौंके। दोनों ही नेत्रियां पार्टी में दूसरे-तीसरे पंक्ति की थीं। ऐसे में पार्टी में तमाम विरोध और खींचतान के बीच राजेंद्र शुल्क इनके नाम पर सहमति कायम कराने और जिताने में सफल रहे। लेकिन इस बार महापौरी की टिकट तय कराने में खासा पसीना आ रहा है। संभाग की एक मात्र घोषित सतना महापौर की टिकट के लिए योगेश ताम्रकार (Yogesh Tamrakar) का टिकट (Ticket) तय होने में उनकी भूमिका चुनाव समिति के सदस्य तक ही सीमित रही। वीडी शर्मा ने रणनीतिक तौर पर उन्हें घर (रीवा) में ही घेर कर सीमित कर दिया। वे यहां अब तक अपनी पसंद के उम्मीदवार पर सर्वसम्मति नहीं बनवा पाए क्योंकि उनके बढ़ाए हर नाम पर कोई न कोई खुरपेंच निकल जाता है।
वीडी ने कुछ ऐसे बिछाई बिसात
प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार (Kamal Nath Government) गिरने के बाद बनी प्रदेश बीजेपी की कोर कमेटी में शिवराज (Shivraj Singh Chauhan) ने राजेन्द्र शुक्ल को शामिल तो कर लिया लेकिन इसके बाद से ही घेराबंदी ऐसी बनी कि चौहान के लाख चाहने के बाद भी शुक्ल की एंट्री कैबिनेट में नहीं हो पाई। वीडी ने जब संगठन का विस्तार किया तो सबसे पहला झटका रीवा जिला बीजेपी में अपने शागिर्द अजय सिंह को बैठाकर दिया। अब तक अपने हिसाब से जिलाध्यक्ष तय करते आ रहे राजेन्द्र शुक्ल को कानों-कान इसकी भनक तक नहीं लगी। इसके बाद प्रदेश पदाधिकारियों में शरदेंदु तिवारी, राजेश पांडेय, प्रज्ञा त्रिपाठी (Pragya Tripathi) को शामिल कर सांगठनिक दृष्टि से भी घेर दिया।
वीडी कैम्प की प्रग्या पर राजेन्द्र का वीटो
संभागीय चुनाव समिति (Divisional Election Committee) ने सीट समान्य होने के बावजूद प्रज्ञा त्रिपाठी का नाम बहुमत के साथ एक नंबर पर आगे बढ़ाया। इस नाम पर राजेन्द्र शुक्ल का ऐसा वीटो लगा कि प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव प्रभारियों की लिस्ट में प्रज्ञा का नाम आ गया। प्रज्ञा को हनुमना नगरपरिषद का चुनाव प्रभारी बनाने का मतलब यह कि वीडी कैम्प की सबसे बड़ी दावेदार का नाम महापौरी की दौड़ से बाहर। यदि आरएसएस अपनी ओर से किसी नाम को नहीं बढ़ाता तो शेष बचे उन्हीं नामों के बीच चयन की माथापच्ची होनी है जो स्वभाविक तौर पर गए हैं।
बनिया वर्ग को साधना बीजेपी की रणनीतिक मजबूरी
रीवा महापौर के लिए बीजेपी के भीतर से उभरे करीब आधा दर्जन से ज्यादा नाम हैं। ये सभी के सभी ब्राह्मण वर्ग से हैं जबकि यहां बीजेपी की रणनीतिक मजबूरी यह है कि वो बनिया वर्ग से किसी को टिकट दे। इसकी वजह ये है कि अभी विधायक औऱ सांसद दोनों ब्राह्मण हैं और संगठन अध्यक्ष ओबीसी। इस बीच घूमफिरकर एक नाम पुनः चर्चाओं के केन्द्र में है वह है पूर्व महापौर वीरेंद्र गुप्ता का। वीरेन्द्र ने पिछली बार अपनी पत्नी की दावेदारी की थी पर सफल नहीं हुए। वीरेंद्र के अलावा दूसरा कोई प्रभावी नाम इस वर्ग से नहीं है। संघ के कहने पर संतोष अवधिया के नाम पर विचार किया जा सकता है। इससे पहले चर्चाओं में आए नामों में व्यंकटेश पांडेय, प्रबोध व्यास, विवेक दुबे, कैलाश कोटवानी सिर्फ चर्चाओं तक ही सीमित रह जाएंगे। यदि वीरेन्द्र या संतोष के नाम पर भी सहमति न बनी तो नया नाम उसी तरह चौंकाने वाला होगा जैसा कि पिछली बार ममता गुप्ता का था।