मालवा के 26 ब्लॉक में जितना पानी जमीन के नीचे जा रहा, उससे ज्यादा निकाल रहे

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Aashish Vishwakarma
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मालवा के 26 ब्लॉक में जितना पानी जमीन के नीचे जा रहा, उससे ज्यादा निकाल रहे

राहुल शर्मा, भोपाल. मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के लिए मशहूर कहावत है, मालव माटी धीर गंभीर, पग पग रोटी, डग-डग नीर यानी मालवा की माटी में जगह-जगह पर पानी मिल जाता है। लेकिन स्थिति अब खतरनाक हो चली है। हालत यह है कि अब भी नहीं चेते तो वो दिन दूर नहीं जब मालवा का अस्तित्व ही खतरे में होगा। उद्योग और कृषि के लिए पानी मिलना तो बहुत दूर की बात है, यहां पीने के पानी तक के लाले पड़ जाएंगे। जानकार बताते हैं कि यदि हालात नहीं सुधरे तो भविष्य में लोगों का मालवा क्षेत्र से पलायन तय है।





केंद्रीय भूजल बोर्ड की 2020 की ग्राउंड वॉटर रिसोर्स असेसमेंट रिपोर्ट के अनुसार, सूबे के 26 ब्लॉक ऐसे हैं जो ओवर एक्सप्लॉइटेड कैटेगरी में है। इसका मतलब है कि यहां ग्राउंड वॉटर जितना रीचार्ज (जमीन के अंदर पानी जाना) नहीं हो रहा, उससे ज्यादा हर साल पानी निकाला जा रहा है। इस स्थिति में भविष्य में यहां जमीन के अंदर का पानी खत्म हो जाएगा, जिससे इस क्षेत्र को पानी की भारी किल्लत का सामना करना होगा। ये सभी ब्लॉक मालवा क्षेत्र के हैं। 





3 जिलों में खतरे की घंटी: ओवर एक्सप्लॉइटेड यानी अति शोषित कैटेगरी में जो 20 ब्लॉक शामिल किए गए हैं, उनमें इंदौर, उज्जैन, देवास, रतलाम, धार, नीमच और मंदसौर शहर शामिल हैं। यहां खतरे की घंटी बज रही है। वहीं, इस कैटेगरी में नलखेड़ा, सुसनेर, पानसेमल, सोनकच्छ, बदनावर, नालछा, देपालपुर, इंदौर अर्बन, सांवेर, सीतामउ, जावद, आलोट, जावरा, पिपलोदा, कालापीपल, मोहन बरोदिया, शुजालपुर, बड़नगर और घट्टिया ब्लॉक को शामिल किया गया है। 





केंद्रीय भूजल बोर्ड ने 4 कैटेगरी में बांटा राज्य का ग्राउंड वॉटर...





कैटेगरी 1- सेफ यानी सुरक्षित: इस कैटेगरी में वह ब्लॉक शामिल किए गए, जो ग्राउंड वॉटर रिचार्ज से 70% से कम पानी ले रहे हैं। इसमें सूबे के 232 ब्लॉक शामिल हैं। यानी यहां फिलहाल चिंता की बात नहीं है। 





कैटेगरी 2- सेमी क्रिटिकल: इस कैटेगरी में वे ब्लॉक शामिल किए गए, जो ग्राउंड वॉटर रिचार्ज से 70 से 90% तक पानी उपयोग कर रहे हैं। इसमें सूबे के 50 ब्लॉक शामिल है। यहां बोर्ड आर्टिफिशियल रिचार्ज की अनुशंसा करता है।





कैटेगरी 3- क्रिटिकल: इस कैटेगरी में वे ब्लॉक शामिल किए गए जो ग्राउंड वॉटर रिचार्ज से 90 से 100% तक पानी निकाल रहे हैं। इसमें सूबे जबलपुर, छिंदवाड़ा, आष्टा जिलों के 8 ब्लॉक शामिल हैं। इन ब्लॉक में जितना पानी ग्राउंड वॉटर को रिचार्ज कर रहा है, उतना ही उपयोग भी हो रहा है। यह ब्लॉक कभी भी अति शोषित कैटेगरी में आ सकते हैं, इसलिए यहां तुरंत आर्टिफिशियल रीचार्ज की जरूरत है।





कैटेगरी 4- ओवर एक्सप्लॉइटेड यानी अति शोषित: यह सबसे विस्फोटक स्थिति है। इसमें वे ब्लॉक हैं जो ग्राउंड वॉटर रिचार्ज से 100% से ज्यादा पानी उपयोग कर रहे हैं। मतलब ये ब्लॉक जमीन के अंदर के पानी को लगातार उपयोग कर खत्म करते जा रहे हैं। इस कैटेगरी में मालवा के 26 ब्लॉक है। यहां बिना देर किए आर्टिफिशियल रीचार्ज की जरूरत है।  





8 जिलों में पानी में बढ़ रहा खारापन: केंद्रीय भूजल बोर्ड की 2020 में एक और चौकाने वाली रिपोर्ट सामने आई। इसके मुताबिक, प्रदेश के आगर मालवा, आलीराजपुर, भिंड, इंदौर, नीमच, रतलाम, सागर और सीहोर जिले के कुछ हिस्सों में पानी में खारापन तेजी से बढ़ रहा है। खारा पानी न तो पीने के उपयोग का होता है और न ही इसका उपयोग खेती के लिए किया जा सकता है। पानी ज्यादा खारा हो जाए तो नहाने तक में इसका उपयोग नहीं किया जा सकता। सुसनेर, जोबट, अतर, मेहगांव, मनासा, नरवार, तराना और महिदपुर में तो खारापन निर्धारित मात्रा 3000 MoH प्रति सेमी से ज्यादा मिला, यानी ये पानी इस्तेमाल लायक नहीं है। 





जगह-जगह बोर होने से भी जलस्तर में गिरावट: मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां नियमानुसार एक बोर होने के बाद 300 मीटर के दायरे में दूसरा बोर नहीं किया जा सकता, लेकिन इन नियमों को ठेंगा दिखाया जा रहा है। ट्यूबवेल खनन की अनुमति कस्बों में नगर पंचायत, जिलों में नगर पालिका और बड़े शहरों में नगर निगम से मिलती है, गर्मी के मौसम में बोरिंग पर प्रतिबंध लग जाने के बाद ये अनुमति एसडीएम से लेनी होती है। बिना अनुमति के ट्यूबवेल खनन करने से जुर्माना तो लगता ही है, साथ ही खुदे हुए बोर को बंद भी किया जा सकता है। ये नियम सिर्फ कागजों में सिमटा रहता है और धड़ल्ले से जगह-जगह बोर हो जाते हैं। 





केंद्रीय भूजल बोर्ड के नियम में तो दो बोर के बीच निश्चित दूरी का कोई पैमाना ही नहीं है। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के क्षेत्रीय प्रबंध पदम कुमार जैन के अनुसार 24 सितंबर 2020 को इसे लेकर केंद्र ने नई गाइडलाइन जारी की, जिसके अनुसार अब वे सभी इंडस्ट्री, माइनिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर यूनिट जो पानी का 10 किलो लीटर प्रतिदिन उपयोग कर रही हैं, उन्हें बोर्ड से एनओसी लेना होगी, इसके लिए फीस भी देनी होगी। लेकिन नियम में निश्चित दूरी का कोई उल्लेख नहीं है। बोर्ड सभी को एनओसी देगा, चाहे वह बोर कुछ मीटर की दूरी पर ही क्यों न हो। 





इन स्थितियों से निपटने के ये हैं उपाय...





1. आर्टिफिशियल रिचार्ज: इसके जरिए जमीन के अंदर के पानी की मात्रा या स्तर को बढ़ा सकते हैं। इसमें तालाब निर्माण, छोटे-छोटे स्टॉप डेम, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग जैसी व्यवस्था शामिल हैं। 





2. रसायन का हो कम उपयोग: पानी में खारापन उद्योग से निकलने वाले केमिकल पानी और खेती में हो रहे रसायन के ज्यादा उपयोग के कारण होता है। जिन क्षेत्र में पानी में खारापन ज्यादा है, वहां जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए। वहीं, जिन उद्योगों में ETP/STP प्लांट लगे हैं, जहां लगातार मॉनीटरिंग हो कि वे काम कर भी रहे हैं या नहीं। 





स्थिति कंट्रोल करने का दावा: केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के क्षेत्रीय प्रबंधक पदम कुमार जैन ने बताया कि हम मध्य प्रदेश में नेक्यूम यानी नेशनल प्रोजेक्ट फॉर एक्यूफर मैनेजमेंट स्टडी कर रहे हैं। इसमें 29 जिलों में यह स्टडी पूरी भी हो गई है। शेष जिलों में यह जल्द पूरी कर ली जाएगी। इस स्टडी की सहायता से जिन 26 ब्लाकों में स्थिति चिंताजनक है, वहां ग्राउंड वॉटर रिचार्ज में सहायता मिलेगी। इस स्टडी में पता लगाया जाता है कि ग्राउंड वॉटर का स्तर क्या है, वह किस नेचर का है, किस तेजी से घट रहा है या बढ़ रहा है या स्थिर है और उसके रिचार्ज के क्या विकल्प हो सकते हैं। इसके अलावा बोर्ड ने पूरे प्रदेश का एक मास्टर प्लान तैयार किया है, जिसका पायलट प्रोजेक्ट छतरपुर में पिछले साल से शुरू हो चुका है। इस प्रोजेक्ट में आर्टिफिशियल रिचार्ज से ग्राउंड वॉटर को रिचार्ज किया जाता है। प्रोजेक्ट सक्सेस होने पर इसे सबसे पहले मालवा के 26 ब्लॉक में लागू किया जाएगा।



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