Rewa. राजनीति में भावनावश गायों को बचाने की चर्चा तो हो रही है, लेकिन खलिहान और घर के चौगान से बैल पूरी तरह बेदखल हो गए हैं। मुश्किल यह है कि किसान खेती-किसानी की उस लोक परंपरा का कैसे निर्वाह करें जो हल और बैल से जुड़ी थी।
सतना जिले के नागौद के पास हड़हा गांव के किसान योगेश योगी ने ट्रैक्टर को ही इसका विकल्प बना लिया। जिस तरह किसान पहली जोत से पहले हल-बैल की पुजाई करते थे, वैसे योगेश सपरिवार हर साल ट्रैक्टर पूजते हैं। जब हल बैल थे, तब पहली जोत आषाढ़ में होती थी, लेकिन ट्रैक्टर फसल कटते ही खेत जोतने में लग जाते हैं। किसान योगेश ने अक्षय तृतीया के दिन यह पारंपरिक पूजा की।
ट्रैक्टर पर तंज भी
देशी खेती और देशी बीज बचाने का आंदोलन चला रहे पद्मश्री बाबूलाल दाहिया ने ट्रैक्टर देव की आरती भी लिख डाली। हालांकि, ये आरती ट्रैक्टर की महिमा नहीं, बल्कि बैलों को खेत निकाला देने के लिए ट्रैक्टर पर व्यंग्य है। यह व्यंग्य भरी आरती बैलों की करुण कथा सामने रखती है। आरती कुछ यूं है -
ट्रैक्टर आरती
अब सुनिए ट्रैक्टर आरती
MP के पद्मश्री बाबूलाल दाहिया ने लिखी ट्रैक्टर आरती
ट्रैक्टर से खेती और बैलों खत्म होते उपयोग पर व्यंग्य लिखा
जब हल ही नहीं बचे तो हलधर को कौन याद रखेगा- दाहिया
बीजों को इकट्ठा करने की मुहिम चला रहे हैं दाहिया@PadmaAwards @KamalPatelBJP @OfficialBKU pic.twitter.com/CKtJFS8kdz
— TheSootr (@TheSootr) May 8, 2022
जय ट्रेक्टर देवा ,स्वामी जी ट्रेक्टर देवा।
जिस घर में भी आए, खत्म बैल सेवा।।
बूचड़खाना चलते, आपइ के बूते।
सार भुसहरा दिख रहे, सब रीते रीते।।
जहरीली खेती के, आपइ हो वाहक।
जिससे घर घर आते, रोग ब्याध नाहक।।
हर किसान के घर मे,जल्दी ही आओ।
कर्ज बोझ में लादो, खुशियां लेजाओ।।
जय ट्रैक्टर देवा, स्वामी जय ट्रैक्टर देवा।
जिस घर मे भी आए, खत्म बैल सेवा।।
गोभक्तो की टोली आप से सब हरी।
सब करतूत आपकी, गाय फिरे मारी।।
पर न कोई कर पाया बाल कभी बाका।
डरवाते किसान के, रोज जेब डाका।।
अगर आप प्रभु सज धज,किसी गांव आए।
बीस बैल को बूचड़, खाना पठबाए।।
जय ट्रैक्टर देवा स्वामी जी ट्रैक्टर देवा।
जिस घर मे भी आए, खत्म बैल सेवा।।
ट्रैक्टर जी की आरती, मन चित से गाए।
डीजल सेठ के पैसा, उस घर का जाए।।
‘जब हल नहीं तो हलधर को कौन पूछेगा’
दाहिया बताते हैं कि कृषि के आधुनिक रूप ने हमारे कई लोकपर्वों व परंपराओं पर चोट की है। भारत में कमोबेश सभी त्योहार कृषि से ही जुड़े हैं। ईश्वर और लोकदेवता भी खेती की परंपरा से निकले हैं। कृष्ण शब्द से कृषि निकला तो गोमाता से गोपाल। जब हल ही नहीं बचे तो कल हलधर बलराम को कौन याद रखेगा।