भोपाल. मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती अपनी जमीन मजबूत करने में लगी हैं। इसकी वजह साफ है कि उमा इस वक्त ना तो सांसद हैं और ना ही विधायक। उमा ने मध्य प्रदेश में शराबबंदी के लिए आंदोलन करने की बात कही, आंदोलन शुरू भी किया, लेकिन इसमें कुछ निकला नहीं। अंदरखाने यह बात पकी कि दिल्ली दरबार की तरफ से उन्हें इसे रोकने के लिए आदेश मिला था। इसके बाद 11 अप्रैल को उमा रायसेन किले स्थित सोमेश्वर धाम पहुंचीं, पूजा की और मंदिर के ताले खुलने तक अन्न त्याग की बात कही।
कांग्रेस के 10 साल के शासन (दिग्विजय सिंह- 1993 से 2003) के बाद 2003 में उमा ने ही बीजेपी की मध्य प्रदेश में सत्ता में वापसी कराई थी। तब बीजेपी को ऐतिहासिक जनादेश (230 में से 173 सीटें) मिला था। उमा ने दिसंबर 2003 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, अगस्त 2004 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने। 30 नवंबर 2005 को शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने। कमलनाथ के 18 महीने का कार्यकाल छोड़ दें तो शिवराज लगातार काबिज हैं। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उमा अपनी मजबूत दावेदारी पेश करना चाहती हैं।
केंद्रीय मंत्री रहीं, फिलहाल कुछ नहीं
उमा अटल सरकार (1999-2004) में तीन अलग-अलग पोर्टफोलियो पर मंत्री रहीं। 7 नवंबर 2000-25 अगस्त 2002 तक युवा मामले और खेल मंत्री रहीं। 26 अगस्त 2002 से 29 अगस्त 2003 तक खनन मंत्री रहीं। 26 अगस्त 2002 से 29 जनवरी 2003 तक कोयला मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद मध्य प्रदेश आईं और बीजेपी को सत्ता दिलाई।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल (2014-19) में 16 मई 2014 से 3 सितंबर 2017 तक जल स्रोत, नदी विकास और गंगा पुनरुद्धार मंत्री रहीं। 3 सितंबर 2017 से 24 मई 2019 तक पेयजल और सफाई मंत्री रहीं। 2019 में उन्होंने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा। अभी वे ना तो सांसद हैं और ना ही विधायक।
उमा के आंदोलन
वो मामला जिसकी वजह से उमा को CM पद छोड़ना पड़ा
उमा भारती को 23 अगस्त 2004 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके पीछे वजह बना था- उमा का 15 अगस्त 1994 को कर्नाटक के हुबली (कर्नाटक) में तिरंगा फहराना। इस पर हुबली की एक अदालत ने दंगा भड़काने समेत कुल 13 केस दायर किए गए थे। इसमें से ही एक 10 साल पुराने मामले में उमा के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था। हुबली के जिस ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने के लिए उमा पर केस हुआ था, उस मैदान पर हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय के लोग अपना हक जताते थे।
1994 के स्वतंत्रता दिवस के दौरान मैदान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने को लेकर हुबली ईदगाह प्रबंधन ने रोक लगा दी थी। इसके जवाब में उमा की अगुआई में ईदगाह मैदान में बीजेपी के हजारों कार्यकर्ता तिरंगा फहराने पहुंच गए थे। इस दौरान वहां फैली हिंसा में कई मौतें हुईं। इस घटना के 10 साल बाद एक मामले में अदालत ने उमा के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया। कर्नाटक पुलिस की एक टीम वॉरंट लेकर भोपाल पहुंची। बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में उमा भारती को इस्तीफा देना पड़ा था।
उस दौरान उमा ने कोर्ट में पेश होने की घोषणा करते हुए कहा था कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया, तिरंगा फहराना राष्ट्रीय स्वाभिमान की बात है और इसके लिए वे कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं।
राम मंदिर आंदोलन का अहम हिस्सा
उमा राम जन्मभूमि आंदोलन (अयोध्या राम मंदिर) का अहम हिस्सा थीं। उनके तेजतर्रार भाषणों ने आंदोलन को गति दी। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने के दौरान बीजेपी, संघ के कई बड़े नेताओं के साथ वहां उमा भी मौजूद थीं। अयोध्या मामले की जांच कर रहे लिब्रहान आयोग ने उमा को लोगों को भड़काने का आरोपी बताया था। हालांकि, उमा ने इस बात से इनकार किया था, लेकिन ये भी कहा था कि उन्हें उस बात अफसोस नहीं है और वे विवादित ढांचा ढहाने की ‘नैतिक जिम्मेदारी’ लेती हैं।
एक बार उमा ने कहा था कि बीजेपी को राम जन्मभूमि आंदोलन से किनारा नहीं करना चाहिए। बीजेपी राम मंदिर आंदोलन की लहर के कारण दो बार सत्ता में आई। लिहाजा बीजेपी को खुद को मुद्दे से नहीं हटाना चाहिए। मैं बीजेपी में थी और हूं। उस दिन (6 दिसंबर 1992) मैं वहां मौजूद थी। मैं हर चीज भुगतने को तैयार हूं, जेल भी जाने को तैयार हूं।
मध्य प्रदेश में शराबबंदी की पैरोकारी, पर कई यू-टर्न
- सितंबर 2020 : ऐलान किया कि शराबबंदी जरूरी है। बीजेपी शासित राज्य ऐसा करें। मध्य प्रदेश से इसकी शुरूआत हो। बाद में बवाल मचा, तो यू-टर्न लिया। कहा कि ऐसा जनजागरण से ही संभव है।
धार की भोजशाला पर भी विवाद, पर हल नहीं
मध्य प्रदेश के धार स्थित भोजशाला भी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के आधीन है, लेकिन यहां हर मंगलवार को हिंदू धर्म के लोगों को पूजा पाठ की अनुमति है और मुस्लिम धर्म के लोगों को शुक्रवार को नमाज की। 1034 में राजा भोज ने इसकी स्थापना की थी और यहां मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई थी। 1401 से 1531 पर मालवा में मुगलों की स्वतंत्र सल्तनत की स्थापना हुई थी और 1456 में महमूद खिलजी ने यहां मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया। भोजशाला को लेकर हिंदू और मुस्लिम संगठनों के अपने अपने दावे है।
हिंदू संगठन भोजशाला को सरस्वती का मंदिर मानते हैं और मुस्लिम इसे जामा मस्जिद कहते हैं। भोजशाला में विवाद की स्थिति अक्सर बसंत पंचमी पर बनती है, वो भी तब, जब शुक्रवार को वसंत पंचमी पड़ती है। इस दौरान दोनों समुदाय पूजा के लिए यहां पहुंचते है। आखिरी बार ऐसी स्थिति 2013 में बनी थी, जब वसंत पंचमी, शुक्रवार को पड़ने के चलते माहौल बिगड़ा था। बहरहाल, विवाद बरसों पुराना है, लेकिन इसका कोई हल निकल नहीं सका है।