MP का राज्यसभा चुनाव: रूठों को मनाने की कवायद या चुनावी समीकरण साधने की कोशिश

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Shivasheesh Tiwari
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MP का राज्यसभा चुनाव: रूठों को मनाने की कवायद या चुनावी समीकरण साधने की कोशिश

Bhopal. मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में तीन राज्यसभा (Rajya Sabha elections) सीटों के लिए जोड़ तोड़ शुरू हो गई है। इस बार भी बीजेपी (BJP) से दो और कांग्रेस (Congress) से एक सदस्य राज्यसभा जा सकता है। लेकिन इस बार ये चेहरे कौन होंगे। दोनों ही पार्टियों को अपने खाते में आई सीटों के दम पर कई समीकरण साधने हैं। एक समीकरण आदिवासी (Tribals) या पिछड़े वर्ग को मौका देने का है या किसी युवा चेहरे को उतारने का। बीजेपी के पास दो सीटें हैं लेकिन कांग्रेस के पास सिर्फ एक विकल्प है और नेताओं की फेहरिस्त लंबी है। दोनों ही पार्टियों के लिए सिर्फ इन तीन सीटों के लिए मुफीद उम्मीदवार तलाश पाना आसान नहीं है। सीटें कम हैं लेकिन मगजमारी उतनी ही है, जितनी 230 विधानसभा सीटों के लिए होती है।





दोनों पार्टियों में है चुनाव का डर 





राज्यसभा चुनाव में भले ही एक महीना भी शेष न हो लेकिन पार्टियों में पूरी रस्साकशी जारी है। कहने को चुनाव सिर्फ तीन सीट पर हैं। उसमें से भी दो बीजेपी और एक कांग्रेस के खाते में जाना लगभग तय माना जा रहा है। लेकिन दोनों राजनीतिक दलों के लिए सिर्फ तीन उम्मीदवार तय करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। वजह है सामने मुंह बाय खड़े विधानसभा चुनाव। बीजेपी को डर है कि छोटी सी चूक साल 2018 के विधानसभा चुनाव के नतीजे दोहरा सकती है। इधर कांग्रेस का हाल भी कुछ ऐसा ही है, जो 2018 से बेहतर नतीजों के लिए मेहनत कर रही है। लेकिन पार्टी के अपने ही बात बिगाड़ देते हैं। डर दोनों पार्टियों को है। इसलिए कोशिश ये है कि जितने समीकरण इस एक चुनाव के जरिए सध सकते हैं उतने साध भी लिए जाएं।





बाहरी को राज्यसभा भेजने का प्रेशर





वैसे तो बीजेपी के पास दो सीटें हैं लेकिन एक सीट अक्सर किसी ऐसे कैंडिडेट के नाम हो जाती है जिसका प्रदेश से कोई लेना देना नहीं है। बाहरियों को राज्यसभा के जरिए उपकृत करने का दौर काफी पहले से चल रहा है। फिलहाल इस फेहरिस्त में आप एमजे अकबर और एल मुरूगन का नाम देख सकते हैं। तो क्या चुनावों के मद्देनजर बीजेपी इस बार दोनों उम्मीदवार मध्यप्रदेश से ही उतारेगी या फिर इस बार भी बाहरी को राज्यसभा भेजने का प्रेशर होगा। कांग्रेस के पास तो एक ही विकल्प है। कांग्रेस पुराने चेहरे को ही रिपीट करेगी या फिर नए चुनावी समीकरण को भाव देते हुए कोई नया चेहरा कांग्रेस की ओर से नजर आएगा। 





आदिवासी राजनीति पर नजर





तीन अनार हैं और इन अनारों के मूरीदों की संख्या बहुत ज्यादा है। न सिर्फ मुरीद बल्कि इन्हीं तीन अनारों से पार्टियों को कई मुरादें पूरी करनी हैं। चुनावी मौसम में दोनों में से एक ने भी गलत फैसला लिया तो समझिए कि गई भैंस पानी में। सवाल है कि क्या बीजेपी मंडला के आदिवासी चेहरे संपतिया उइके (Sampatiya Uike) को दोहरा सकती है या फिर उनकी जगह एससी वर्ग से लाल सिंह आर्य (Lal Singh Arya) को मैदान में उतार सकते हैं। लेकिन दूसरी सीट पर कौन होगा जो एमजे अकबर का कार्यकाल पूरा होने के बाद खाली होने वाली है और कांग्रेस को तो जो भी करना है वो एक ही सीट पर करना है। माना जा रहा है कि चुनाव एक कश्मीरी पंडित, ओबीसी वर्ग और एक आदिवासी नेता के बीच में से होना है।





प्रदेश में राज्यसभा की 11 सीटें है, जिनमें से 8 सीटें भाजपा और 3 सीटें कांग्रेस के पास है। इनमें से ही 3 सीटें 29 जून को खाली हो रही है। इसमें बीजेपी के एमजे अकबर और संपतिया उइके और कांग्रेस से विवेक तन्खा है। विधायकों के मौजूदा संख्या बल के अनुसार 2 सीटें भाजपा और 1 कांग्रेस को ही मिलने की संभावना है।





एससी को साधने का प्रयास





इन सीटों पर दोनों ही दल उम्मीदवारों का चयन आने वाले 2023 के चुनाव को देखते हुए जातिगत और सामाजिक आधार पर कर सकते है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलित, ओबीसी चेहरे को मौका दे सकते है। इसमें नए चेहरे को लेकर चर्चा ज्यादा हो रही है। बीजेपी के खाते में राज्यसभा की 2 सीटें आएगी। ऐसे में चर्चा है कि बीजेपी आदिवासी और ओबीसी चेहरे को उतार कर चौंका सकती है। वर्तमान सदस्य संपतिया उइके को आदिवासी वर्ग से से होने का लाभ मिल सकता है, लेकिन पार्टी उनको बदल सकती है। अभी बीजेपी की तरफ से एससी मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य का नाम चल रहा है। इसके अलावा जयभान सिंह पवैया, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का नाम भी चर्चा में है। इसके अलावा एमजे अकबर की जगह किसी राज्यसभा सदस्य केंद्रीय मंत्री को दोबारा सदस्य बनाया जा सकता है।





कांग्रेस ओबीसी को राज्यसभा भेज सकती है







वहीं, कांग्रेस की एक सीट पर विवेक तन्खा को दोबारा राज्यसभा भेजने को लेकर चर्चा है। तन्खा कश्मीरी पंडित के साथ ही कानून के बड़े जानकार है। इससे पहले विवेक तनखा के कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के दल जी23 में भी शामिल माने गए। हालांकि हाल ही में हुए नव संकल्प मंथन शिविर में इस दल से भी गिले शिकवे दूर करने की कोशिश हुई है। लिहाजा तन्खा का पलड़ा भारी नजर आता है। हालांकि प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर मामला गरमाने के बाद कांग्रेस भी किसी ओबीसी चेहरे को राज्यसभा भेज सकती है। इसमें अरुण यादव का नाम सबसे ऊपर चल रहा है। अरुण यादव हाल ही में दिल्ली में सोनिया गांधी से भी मुलाकात की थी। हालांकि आदिवासी वर्ग के नेताओं के नाम पर भी विचार किए जाने की चर्चा भी आम है। लेकिन इन दिनों अरूण यादव की नजदीकियां कमलनाथ से भी बढ़ी हैं। यकीनन इसका लाभ मिल सकता है। चुनावी रस्साकशी और भोपाल से लेकर दिल्ली तक भागमभाग राजनेताओं ने एक सीट के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है। आलाकमान के लिए भी फैसला आसान नजर नहीं आता। वक्त कम बचा है और सही फैसला लेना जरूरी है। देखना ये है कि क्या कांग्रेस में रूठों को मनाने की कवायद होती है या चुनावी  समीकरण साधने की। दूसरी तरफ ये भी देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी अपने किस एजेंडे को इस चुनाव से पुख्ता करती है।





डॉ रामकृष्ण सिंगी की कविता की चंद लाइनें याद आती हैं-





जाने कितने उभर रहे तनाव, जातिवाद से सब रंजित फिजाएं धूप छांव





टकराव के विषाणु फैल रहे, हर शरह, बस्ती, गांव





कैसा हो रहा है ये चुनाव।



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