Rewa. देश के लिए इंटरनेशनल इवेंट में मेडल लाने वालों को हर बार हाथों हाथ लिया जाए, ये जरूरी नहीं। इसकी बानगी रीवा में रहने वाली सीता साहू हैं। सीता ने मंदबुद्धि दिव्यांग कोटे से 2011 के एथेंस ओलंपिक में देश के लिए 2 ब्रॉन्ज मेडल जीते। आज उनका परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है। 7 साल पहले नगर निगम ने अतिक्रमण विरोधी मुहिम में समोसे की पुश्तैनी दुकान तोड़ दी। सीता को स्थानीय लोग समोसे वाली लड़की ही बुलाते हैं। अब सीता शादी-पार्टी में खाना बनाने का ऑर्डर लेकर घर चला रही है।
स्कूल में ही कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया
फरवरी 1996 में रीवा के धोबिया टंकी इलाके में सीता पैदा हुई। दिव्यांग थी तो पिता पुरुषोत्तम साहू और मां किरण ने मंदबुद्धि स्कूल में एडमिशन करा दिया। स्कूल में तब हेड मास्टर रहे रामसेवक साहू ने मुझे 'उड़न परी' बोलते हुए एथलेटिक्स के लिए आगे बढ़ाया। स्कूल के दिनों में ही सीता ने जिला, संभाग, राज्य और देश के लिए कई एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में भाग लिया।
ग्रीस जाने का मौका मिला
इसी बीच 14 साल की उम्र में सीता का सिलेक्शन 2011 के एथेंस ओलंपिक में सिलेक्शन हो गया। वे 100 मीटर और 1600 मीटर की दौड़ में तीसरे स्थान पर रहीं और ब्रॉन्ज मेडल जीता। दिव्यांग कोटे से मेडल जीतने की दुनियाभर में चर्चा हुई। 400 मीटर रेस में चौथे स्थान पर रहीं। इसके बाद सीता को स्पेशल सर्टिफिकेट से नवाजा गया।
पुश्तैनी दुकान ढहाई
रीवा का साहू मोहल्ला समोसा हलवाइयों का गढ़ है। यहीं पर सीता के पिता-दादा की 30 साल पुरानी समोसे का ठेला और टपरा था। 7 साल पहले नगर निगम की अतिक्रमण विरोधी मुहिम ने ये टपरा हटा दिया। कहा कि पास में अस्पताल चौराहा होने के कारण रोज जाम लगता है, इसलिए अब यहां ठेला और टपरा नहीं लगेंगे। कुछ महीने बाद पिता और भाइयों ने एक अन्य जगह ठेले में समोसे का व्यापार शुरू किया, लेकिन निगम ने वहां से भी हटा दिया।
घर और दुकान का वादा आज भी अधूरा
मां किरण साहू ने भी दर्द बयां किया। तब कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 5 लाख की इनाम राशि, घर और दुकान देने का वादा किया था, लेकिन हमें सिर्फ 5 लाख रु ही मिले। आज तक घर और दुकान के बारे में किसी ने सुध नहीं ली। केंद्र और राज्य की बीजेपी सरकार से निराशा ही हाथ लगी है। अगर किसी अधिकारी से कहते हैं तो जलील किया जाता है। कहते हैं कि जो कुछ मिलना था, मिल चुका। अब भूल जाओ।
सीता का पूरा परिवार 8X36 के छोटे से मकान में रहता है। मकान का आधा हिस्सा उसके चाचा का है। स्थिति तो ये है कि एक कमरे में 4 लोग आराम से बैठ भी नहीं पाते। सीता के पिता पुरुषोत्तम साहू का 2 साल पहले निधन हो गया। दो भाइयों और छोटी बहन की शादी हो चुकी है। दिव्यांग होने के चलते सीता की शादी नहीं हो पाई।