सागर. भारत जुगाड़ुओं का देश कहा जाता है। इस बार ये सागर में देखने को मिला। पाकिस्तान ने एक डिवाइस (Device) भेजने के लिए इनकार किया तो सागर के डॉ. सर्वेश जैन ने देशी जुगाड़ से डिवाइस एपिड्रम (epidrum) बना ली और वो भी 10 रुपए के खर्च में। हालांकि, इसे बनाने में उन्हें दो साल लगे। अब वे इस डिवाइस की मदद से मरीजों का सफल इलाज कर रहे हैं। डॉ. सर्वेश सागर बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में फिजीशियन हैं। डॉ. सर्वेश के मुताबिक, डिवाइस रीढ़ की हड्डी समेत अन्य दर्द से जुड़ी बीमारियों में इंजेक्शन देने के काम आती है।
आखिर क्यों नहीं मिल पाई डिवाइस?
डॉ. सर्वेश बताते हैं कि 2016 में सिंगापुर की कंपनी को एपिड्रम मंगवाने के लिए कॉन्टैक्ट किया था। कंपनी की ओर से उन्हें पाकिस्तान के कराची स्थित ब्रांच की जानकारी मिली। इसके बाद उन्होंने कराची ब्रांच में संपर्क किया और एपिड्रम की मांग की, लेकिन कराची से भारत-पाक के बीच उस समय चल रहे संबंधों का हवाला देते हुए डिवाइस भेजने से मना कर दिया।
भारत ने नहीं बनाई जाती
डॉ. सर्वेश के मुताबिक, एपिड्रम डिवाइस भारत में नहीं बनाई जाती, सिंगापुर की कंपनी तैयार करती है। उस समय इसकी कीमत 100 डॉलर (करीब 7300 रु) थी, हालांकि अब इस डिवाइस की कीमत 600 से लेकर 1600 रुपए तक है। अब डॉ. सर्वेश इसे बड़े पैमाने पर तैयार करने की योजना बना रहे हैं, ताकि महंगी एपिड्रम से मरीजों को राहत मिल सके।
क्यों होता है डिवाइस का इस्तेमाल?
कमर दर्द के मरीजों के इलाज के लिए एपिड्रम का इस्तेमाल होता है। यह डिवाइस मरीज की रीढ़ की हड्डी में एपिड्यूरल स्पेस में सुई पहुंचने का संकेत देती है। इसके बाद मरीज को इंजेक्शन दिया जाता है। इसके अलावा एनेस्थिसिया देने में भी उपयोग किया जाता है।
जुगाड़ से बनाई गई डिवाइस का उपयोग कई बार किया जा सकता है। एक बार उपयोग करने के बाद डिवाइस को साफ करके रखे और करीब 6 घंटे बाद दोबारा उपयोग में ले सकते हैं, जबकि सिंगापुर में बनने वाली एपिड्रम को एक बार ही उपयोग किया जा सकता है। डॉ. सर्वेश ने सर्जिकल ग्लव्स की उंगली, फेवीक्विक और प्लास्टिक थ्री वे (इसमें तीन रास्ते होते है) को मिलाकर एपिड्रम बनाई है।