अंग्रेजों के जमाने का ‘कलेक्टर’ नहीं रहेगा, सिंह साहब द ग्रेट, तेज MLA की चुप्पी

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Atul Tiwari
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अंग्रेजों के जमाने का ‘कलेक्टर’ नहीं रहेगा, सिंह साहब द ग्रेट, तेज MLA की चुप्पी

हरीश दिवेकर। माघ खत्म होने को है और मध्य प्रदेश में शीतलहर चल रही है। ये मौसम है, जो कब बदल जाए, कोई कुछ नहीं कह सकता है। 5 राज्यों में चुनाव चल रहे हैं, लेकिन हवा यूपी ने ही बनाई है। इधर, कर्नाटक से निकला हिजाब मध्य प्रदेश और सुप्रीम कोर्ट तक चला गया। एमपी के मंत्री ने तो तेजी दिखाते हुए ड्रेस कोड लागू करने का बयान दे डाला। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नकेल कसी तो मंत्री जी को बयान बदलना पड़ा। वहीं, प्रदेश में एक जिले के कांग्रेसी विधायक ने जासूसी कराने की बात कही और एसपी साहिबा पर आरोप लगा दिए। अंदरखाने की ही सही, खबरें इधर भी पक रही हैं, आप तो सीधे अंदर चले जाइए। 





अंग्रेजों के जमाने के कलेक्टर का पदनाम बदलेगा: अब शिव बाबू को भी अंग्रेजों के जमाने का पदनाम कलेक्टर जम नहीं रहा है। अंतत: वे भी कमल बाबू की राह पर चल पड़े हैं। हाल ही में हुई एक बैठक में उन्होंने आला अफसरों से कहा, ये क्या नाम है कलेक्टर... ऐसा लगता है कि पैसा कलेक्ट करने वाले हो गए। लगे हाथ फरमान दे दिया कि जल्दी से कोई अच्छा सा नाम ढूंढा जाए...। कुछ अफसरों ने बताया कि अंग्रेजों के जमाने में कलेक्टर रेवेन्यू वसूली करते थे, इसलिए कलेक्टर नाम दिया गया था। शिव बाबू भी तपाक से बोल पड़े- हां सही है, काम तो करते नहीं, बस पैसा ही कलेक्ट करते हैं। इसके पहले कमल बाबू ने कलेक्टर का नाम बदलने की कवायद की थी। उन्होंने आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष आईसीपी केशरी की अध्यक्षता में पांच आईएएस अफसरों मलय श्रीवास्तव, मनीष रस्तोगी, विशेष गढ़पाले, प्रीति मैथिल की कमेटी बनाई थी। कमेटी ने जिला प्रशासक यानी डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेटर करने का सुझाव दिया था, लेकिन शिव बाबू के फिर से सत्ता में आने पर सलाहकारों ने उनसे इस फैसले को रद्द करवा दिया था। अब शिव बाबू ने अफसरों को कलेक्टर पदनाम के साथ राजस्व विभाग का नाम भी बदलने का फरमान दे दिया है। अब देखते हैं कि कलेक्टरों का नया नाम क्या होता है।





कहीं का तीर, किसी का निशाना: तीर कोई और चलाए, पर निशाना आपका लग जाए तो इसे क्या कहेंगे। अहोभाग्य!! कुछ ऐसा ही इंदौर की पांच नंबर विधानसभा में चल रहा है। किस्सा-कहानी यह है कि इस विधानसभा में जमीन से जुड़े लोगों ने बीते सालों में कानून की जमकर खुदाई की। बोले तो, जिसने जहां चाहा वहां कॉलोनी काटी, संस्थाओं की जमीन हड़प ली और जमीन के लिए वो सब किया, जिसके लिए कानून मना करता था। दो साल पहले प्रकट हुए कलेक्टर मनीष सिंह। इंदौर के पुराने खिलाड़ी हैं। 22 साल में इंदौर की सातवीं कुर्सी संभाल रहे हैं। शहर के गली-चौबारों से लेकर यहां के एक-एक जादूगर और उनके जादू को जानते हैं। जमीनों की फाइलों की खुदाई की तो कई जादूगर जेल गए, कई भागते फिर रहे हैं और कई शरण में आकर सुधर गए हैं। जिन्होंने ने दो पीढ़ी, तीन पीढ़ी पहले प्लॉट लिए थे पर माफिया कब्जा नहीं दे रहे थे उन्हें भी जमीन, मकान, कागजात सब मिलने लगे। लोग कलेक्टर को दुआएं दे रहे हैं और उससे ज्यादा दुआएं दे रहे हैं 5 नंबरी विधायक महेंद्र हार्डिया उर्फ बाबा। दरअसल, ज्यादातर मामले उनकी ही विधानसभा के हैं और वो चाहकर भी जनता की मदद नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि जादूगरों के हाथ कानून से भी लंबे हो चले थे। सिंह गर्जना के बाद बाबा का काम भी आसान हो गया। जनता उनकी भी जय-जयकार कर रही है। अब सिंह साहब को तो चुनाव लड़ना नहीं है। भला किसका हुआ बाबा का ना। किसी का तीर, किसी का निशाना, इसे ही तो कहते हैं।





फटे में टांग अड़ाने वाले विधायक की चुप्पी सवाल: इंदौर के तेजतर्रार विधायक उर्फ पूर्व मंत्री होते हैं जीतू पटवारी। हर फटे में हाथ-टांग सब अड़ा देते हैं। जहां फटा न हो, वहां भी फंस जाते हैं। राजनीति की रफ्तार इतनी तेज कर ली थी कि लग रहा था भोपाल से सीधे ओलंपिक खेलने जाना है। पता नहीं क्या हुआ कि अब मौके-मौके पर ही बोल रहे हैं, जहां जरूरी हो, वहीं मुंह खोल रहे हैं। कहने वाले कह रहे हैं, इंदौर में राहुल बाबा के जो दो-तीन करीबी हैं, उनमें भैया भी हैं। वहीं से ईंधन लेकर दौड़ भागकर कर रहे थे, लेकिन प्रदेश के पुराने नेताओं ने जब बीच-बीच में टोल लगाकर इनकी गाड़ी रोकना शुरू की, तो उन्हें समझ आ गया कि ठंडा करके खाने में ही भलाई है। सो अभी फू-फू कर रहे हैं। दूसरा यह भी प्रादेशिक नेता होने की होड़ में भैया लोकल से कटते जा रहे थे। अपनी विधानसभा राऊ से बुरी-बुरी खबरें आ रही थीं, सो तत्काल सावधान होकर यहां भी कदम ताल शुरू कर दी। राऊ ऐसा ही है। प्रदेश में ज्यादा घूमों तो हराकर इतना फ्री कर देते हैं कि फिर प्रदेश ही घूमते रहो। राऊ आने की जरूरत ही ना पड़े। कभी बीजेपी के विधायक रहे जीतू जिराती के साथ ऐसा ही हुआ था। अचानक विधायक बने, अचानक युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बन गए। प्रादेशिक नेता हो गए। अब राऊ के नहीं हैं। पहले हारे, फिर टिकट कट गया। अब प्रदेश में ही घूम रहे हैं। पटवारी को याद है यह।   





पंडितजी से साहब नाराज: चले थे चौबे जी बनने, दुबे जी बनकर लौट आए। ऐसा ही कुछ मामला प्रदेश के एक प्रमुख सचिव, अरे! अपने पंडितजी, के साथ हो गया। इन्होंने सूबे के मुखिया को खुश करने के लिए सैलानियों को दी जाने वाली सुविधाओं का एक सब्जबाग का प्रजेंटेशन बड़े ही लगन और जतन से तैयार किया था। पंडितजी इस बात से आश्ववस्त भी थे कि बैठक में उनकी पीठ जरुर थपथपाई जाएगी। लेकिन कहते हैं कि जैसा सोचो, होता नहीं है। बैठक में जैसे ही पंडितजी ने अपना प्रजेंटेशन शुरू किया, वैसे ही प्रशासनिक मुखिया का पलटवार शुरू हो गया। पंडितजी को लगा कि अगली स्लाइड में शायद मामला संभल जाए, लेकिन बात और बिगड़ती चली गई। आखिर में पंडितजी बेमन से अपना डेरा-डंगर उठाकर मीटिंग से बाहर आ गए।





सीआर बिगाड़ी तो रिटायरमेंट​ बिगड़ा: पुलिस के दो आला अफसरों का विवाद चर्चा का विषय बना हुआ है। तू-तू डाल-डाल तो मैं पात-पात वाली कहावत पर ये अफसर एक दूसरे को पटकनी देने में लगे हुए हैं। हालत ये है कि रिटायरमेंट के बाद भी इनकी जंग जारी है। हम बात कर रहे हैं स्पेशल डीजी से रिटायर हुए महान भारत सागर और एडीजी मनीष शंकर शर्मा की। पहल सागर ने की। उन्होंने शर्मा की सीआर खराब की। इसके बाद जंग शुरू हो गई। सागर के रिटायर होने के बाद शर्मा के चहेतों ने उनकी पुरानी फाइलें खोलकर लोकायुक्त में मामला दर्ज करवा दिया। मामला इतना बढ़ा कि सरकार ने अब डीओपीटी से सागर की विभागीय जांच करने की अनुमति मांगी है। उधर, शर्मा भी सीआर सुधरवाने के लिए परेशान है। मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाले रैफरल बोर्ड में गुहार लगाई थी, लेकिन राहत नहीं मिली। अब शर्मा ने राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाया है। 





बीजेपी के सांसद-विधायक में खींचतान: खंडवा में बीजेपी के सांसद और विधायक की पटरी नहीं बैठ रही। हालत यह है कि बीजेपी के सीनियर विधायक ने सीएम तक से सांसद की शिकायत की है। दरअसल, उपचुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने ज्ञानेश्वर पाटिल अपने संसदीय क्षेत्र में जबर्दस्त एक्टिव हैं। उनकी सक्रियता के चलते विधायक को अपनी लोकप्रियता खतरे में नजर आ रही है। खंडवा शहर के बाइपास का मुद्दा विधायक वर्मा लंबे समय से उठा रहे हैं, उन्होंने इसका रोडमैप भी तैयार करवा लिया था, लेकिन फंड की कमी से विधायक इसका काम शुरू नहीं करवा पाए। इधर सांसद पाटिल एक्टिव हुए और उन्होंने केंद्र से इसके लिए पैसा मंजूर ​करवा लिया। क्षेत्र में इसका श्रेय भी खुद लूट लिया। अब विधायक परेशान हैं, 2023 के चुनाव में उन्हें इसका लाभ कैसे मिलेगा। अब सांसद-विधायक एक साथ मंच शेयर करने से कतरा रहे हैं। 





प्रशासनिक मुखिया से युवा IAS नाराज: ये पहली बार सुनने में आ रहा है कि प्रशासनिक मुखिया के खिलाफ 2009 से 2014 बैच के कुछ युवा आईएएस लामबंद हो रहे हैं। इन युवा अफसरों का मानना है कि प्रशासनिक मुखिया अभिभावक की तरह होता है, वो प्रोटेक्ट करता है। ऐसा पहली बार देखने में आ रहा है, जब प्रशासनिक मुखिया ही युवा आईएएस अफसरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। दरअसल, इन अफसरों की सीआर पर साहब ने कैंची चला दी। इससे कुछ आईएएस अफसरों को भविष्य में नुकसान होने की संभावना है। मंत्रालय में पदस्थ इन युवा अफसरों का कहना है कि जब उनके तत्कालीन बॉस ने उन्हें सीआर में बेहतर रैंकिंग दी है तो प्रशासनिक मुखिया ने ऐसा क्या देख लिया कि उनकी सीआर पर कैंची चला दी।



शिवराज सिंह चौहान BOL HARI BOL SHIVRAJ SINGH CHOUHAN बोल हरि बोल Jitu Patwari जीतू पटवारी मप्र मुख्यमंत्री IAS Manish Singh Indore Collector इंदौर कलेक्टर खंडवा MP CM Indore MLA इंदौर विधायक आईएएस मनीष सिंह ज्ञानेश्वर पाटिल Gyaneshwar Patil