हरीश दिवेकर। बीते हफ्ते मध्य प्रदेश में पहाड़ों जैसी ठिठुरन रही। बाहर घूमते वक्त लोग हाथों को गर्म करते दिखे। अब ठंड कितनी भी पड़ जाए, खबरों की सरगर्मी थोड़ी ही कम होती है। वैसे भी सरकार अभी पंचायत चुनाव की ‘पंचायत’ में उलझी है। एक दांव जो उलटा पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी कर दी, सो अलग। महज डेढ़ दिन में खत्म होने वाला मध्य प्रदेश विधानसभा सत्र, शीतकाल में पूरे 5 दिन चला। नेताओं की भी अपनी राजनीति रही। अंदरखाने की खबरें तो कई हैं, आप तो सीधे अंदर चले आइए...
महाराज के जलजले से जल रहे प्रदेश नेता...
जब से बीजेपी में महाराज की एंट्री हुई है, तब से प्रदेश के कई बड़े नेता अपने आप को असहज महसूस कर रहे हैं। हाल ही में निगम मंडल नियुक्तियों में सिंधिया खेमे को महत्व मिलने के बाद बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां भी किया। वैसे तो बीजेपी को कैडर बेस पार्टी माना जाता है। यहां नेता नहीं, संगठन का बोलबाला होता है, लेकिन जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी टीम के साथ बीजेपी में शामिल हुए हैं, तब से भाजपा के कुछ नेता उनके खेमे को सिंधिया बीजेपी कहने लगे हैं। भले ही बीजेपी के कुछ बड़े नेता महाराज के जलजले से जलते हों, लेकिन उनका जलवा बरकरार बना हुआ है। हाल ही में दिग्विजय सिंह के गढ़ में सिंधिया ने सेंध लगाकर कांग्रेस नेता हीरेन्द्र सिंह को बीजेपी जॉइन करा दी। अंदरखाने की माने तो कांग्रेस नेता को बीजेपी जॉइन कराने से पहले महाराज ने प्रदेश के बड़े नेताओं को बताया तक नहीं।
तुलसी की राजनीति के आंगन में सोनकर
निगम मंडलों में बंटी कुर्सियों में एक कुर्सी इंदौर के युवा नेता सावन सोनकर भी खींच लाए। इन्हें ये लग रहा है कि खींच लाए वो अपने विचार पर पुनर्विचार करें। दरअसल सारा किया धरा कबीना (कैबिनेट) मंत्री तुलसी सिलावट उर्फ पहलवान का है। कहानी कुल जमा यह है कि तुलसी की राजनीति का आंगन सांवेर है और इसी सांवेर में सावन भी बार-बार बरसते हैं। पहलवान पंजा छाप थे, तब तो ठीक था, दोनों आमने-सामने होते थे, लेकिन जब से तुलसी में कमल खिला है, तब से दोनों एक ही पार्टी के हो गए। अगले चुनाव में जब सांवेर के लिए टिकट की लेन-देन होगी, सावन फिर सामने खड़े होंगे। टिकट नहीं मिली तो पीछे खड़े होंगे। पहलवान अच्छे से समझते हैं कि पीछे खड़े होने वाला क्या करता है... सो मामा और महाराज के रास्ते एक कुर्सी सावन की तरफ भी खिसका दी। यूं भी मामा वादे से बंधे थे। सांवेर की चुप्पी के एवज में उन्हें कुछ न कुछ देने के लिए। एक तीर से दो शिकार हो गए। राजनीति में यही तो होता है।
दुखी हैं, पर फूल भेज रहे
मसला यह नही है कि इंदौर विकास प्राधिकरण की कुर्सी उन जयपाल चावड़ा को मिल गई है, जो देवास के रहने वाले हैं। मसला यह है कि इस कुर्सी के लिए कई पूर्व विधायक, हारे हुए विधायक, टिकट के दावेदार विधायक और जो कोई चुनाव नहीं लड़ा, वो सब इंदौर-भोपाल-दिल्ली दौड़ लगा रहे थे। पर्ची खुल गई जयपाल चावड़ा की। कोई और नाम होता तो हो सकता है दो-चार दुस्साहसी नेता मुखालफत में कुछ न कुछ उगल देते, लेकिन नाम संघ से जुड़े नेता का था, सो सारे के सारे चुपा-चुपी खेल रहे हैं। गुस्से में हैं, पर शांत हैं। दुखी हैं, पर खुश दिखकर फूल भेज रहे हैं। बड़बड़ा रहे हैं, पर एकांत में। कुछ तो इतने सदमें में आ गए हैं कि आईडीए बोर्ड की जो करीब दर्जनभर कुर्सियां भरी जाना हैं, उससे भी नाउम्मीद हो गए हैं। कहने वाले कह रहे हैं बोर्ड के सारे नाम दीनदयाल भवन से ना आकर अर्चना कार्यालय से आ जाएं तो चौंकिएगा मत। पार्टी विद डिफरेंस यूं ही थोड़ी कहा जाता है हमें।
भाईजान को करोगे सलाम तभी मिलेगा बड़ा ठेका
राजनीतिक दल वोट बैंक के लिए भले ही हिंदू-मुस्लिम करती हों, लेकिन जब बात चांदी काटने की हो तो फिर हम सब भाई-भाई वाला नारा बुलंद हो जाता है। ऐसा ही मामला सरकार का चेहरा चमकाने वाले विभाग में नजर आ रहा है। इस महकमे में भाईजान का खासा दखल है। हालात ये हैं कि जब तक भाईजान का फोन नहीं आएगा, तब तक वजनदार फाइल आगे नहीं बढ़ती। हम आपकी सुविधा के लिए बता दें भाईजान के अब्बू सालों से मुख्यमंत्री निवास के कामों के ठेके लेते आ रहे हैं। सरकारें बदली, मुख्यमंत्री बदले लेकिन भाईजान के अब्बू का ठेका बरकरार रहा। भाईजान अपने अब्बू से दो कदम आगे निकले, उन्होंने एक विभाग के मलाईदार कामों को अपने हाथों में ले लिया यानी अब इस विभाग में जो भी बड़े ठेके लेना चाहता है, उसे पहले भाईजान को सलाम करना जरूरी है, नहीं तो काम नहीं मिलेगा। इस विभाग में अखिल भारतीय सेवा के तीन बड़े अफसर जरूर पदस्थ हैं, लेकिन इन्हें केवल छोटे-मोटे काम करने की ही आजादी है। बड़े काम की फाइल तो भाईजान का फोन आने के बाद ही आगे बढ़ती है।
मंत्री को रास नहीं आ रहा विंध्य
शिवराज कबीना के प्रभावशाली मंत्री को विंध्य रास नहीं आ रहा। हालांकि मंत्री ने खुद ही मुख्यमंत्री से आग्रह करके विंध्य के खनिज संपदा बहुल्य वाले जिले का प्रभार लिया था। लेकिन जब से मंत्री जी इस जिले के प्रभारी बने हैं, तब से उन्हें स्थानीय बीजेपी नेताओं ने भाव देना बंद कर दिया। हालात ये हैं कि मंत्री जी जब भी प्रभार वाले जिले में पहुंचते हैं, उनकी अगवानी के लिए स्थानीय नेता नहीं पहुंचते। मंत्री जी ने स्थानीय नेताओं के सामने इस बात को लेकर नाराजगी भी जाहिर की, लेकिन स्थिति नहीं बदली। हाल ही में मंत्री जी रेल से पहुंचे तो उनका स्वागत करने केवल उनके विभाग के अफसर पहुंचे, नेताओं के नाम पर एक महिला नेत्री जरूर मौजूद थीं।
मंत्रालय में चुनाव विवाद से जीएडी को राहत
मंत्रालय कर्मचारी संघ का चुनाव विवाद में उलझने के बाद कर्मचारी नेता भले ही एक दूसरे को पटखनी देने की बात कहकर डींगे हाक रहे हों, लेकिन इस पूरे खेल के असली खिलाड़ी मंत्रालय के वो आला अफसर हैं, जो मंत्रालय कर्मचारी संघ की आए दिन की मांगों से परेशान थे। कारण यह कि उनकी सुनवाई न होने पर मंत्रालय कर्मचारी संघ मुख्य सचिव से लेकर किसी भी बड़े अफसर के कमरे के बाहर नारेबाजी कर देते थे। अफसर मौके की तलाश में थे कि संघ को कमजोर कैसे किया जाए। मंत्रालय कर्मचारी संघ चुनाव को लेकर नेताओं में उपजे आपसी विवाद के बाद अफसरों को मौका मिल गया। अफसरों ने दो संगठनों को 15 दिन में अलग-अलग चुनाव कराने की अनुमति देकर पूरा चुनाव ही उलझा दिया।
द-सूत्र ऐप डाउनलोड करें :
द-सूत्र को फॉलो और लाइक करें:
">Facebook | Twitter | Instagram | Youtube