हरीश दिवेकर। मध्य प्रदेश का मौसम खुशगवार हो गया है, लेकिन राजनीतिक हलकों सरगर्मी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 21 नवंबर को आनन-फानन में दो शहरों में कमिश्नर सिस्टम का ऐलान कर दिया। इससे सरकार में नंबर 2 यानी गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा कुछ हैरान हुए। इधर, दो सीनियर पुलिस अफसर और करीबी दोस्त प्रदेश पुलिस प्रमुख के लिए दावेदारी ठोक रहे हैं। एक बड़े साहब हनी के ट्रैप से निकलना चाहते हैं। कई चर्चाएं हैं, आप तो बस सीधे अंदर आ जाइए...
गृह मंत्री को सोशल मीडिया से मिली जानकारी
मुख्यमंत्री शिवराज ने रविवार सुबह भोपाल-इंदौर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम को लागू करने का बयान देकर ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी। चौंकाने वाली बात यह रही कि गृह मंत्री नरोत्तम को भी इस बात की जानकारी सोशल मीडिया से लगी। IPS लॉबी पिछले दो दशकों से इसे लागू करवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए थी, लेकिन IAS लॉबी के आगे वे सफल नहीं हो पा रहे थे। लखनऊ में DGP कॉन्फ्रेंस में पुलिस कमिश्नर सिस्टम की तारीफ क्या हुई, मामा ने तत्काल प्रभाव से यहां लागू करने की घोषणा कर दी। मामा के इस ऐलान के बाद खाकी खुशियां मना रही है, वहीं आईएएस के सोशल मीडिया ग्रुप पर इस समय बड़ी बहस छिड़ी हुई है। सारा दबाव आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष आईसीपी केसरी ओर मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस पर बन रहा है। अंदरखाने की मानें तो इस मामले में दोनों अफसरों ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं।
DGP बनने के लिए जिगरी दोस्तों में हेल्दी कॉम्पिटीशन
प्रदेश को जल्द ही नया पुलिस प्रमुख (DGP) मिलने वाला है। ऐसे में DGP पद के लिए दो सीनियर आईपीएस सुधीर सक्सेना और पवन जैन जोरदार तरीके से अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं। बड़ी बात ये कि दोनों ही 1987 बैच के अफसर हैं। दोनों में नौकरी की शुरुआत से खुब घुटती है। सुधीर सक्सेना दिल्ली बैठकर डीजीपी बनने की लॉबिंग कर रहे हैं तो पवन जैन प्रदेश स्तर पर अपनी तैयारी। अच्छी बात तो यह है कि दोनों ने तय कर रखा है कि डीजीपी बनने के लिए अपने-अपने प्रयास तो करेंगे लेकिन एक दूसरे की लाइन नहीं काटेंगे। इनके लिए कहा जा सकता है। ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, पद छोड़ देंगे लेकिन साथ नहीं छोड़ेंगे।
हनी ट्रैप वाले साहब चाहते हैं पुनर्वास
हनी ट्रैप कांड में उलझे साहब सरकार में पुनर्वास के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं। साहब रिटायरमेंट के कुछ समय पहले हनी-मनी के जाल में उलझ गए थे। उनके जानने वाले कहते हैं कि साहब इस खेल के पुराने खिलाड़ी थे, लेकिन रिटायर होते होते वे फंस ही गए। हालांकि, रिटायरमेंट के बाद कुछ समय तक साहब ने एकांतवास भी काटा, लेकिन वे अपने आपको सत्ता के गलियारों से दूर नहीं रख पा रहे हैं। यही वजह है कि साहब ने एक आयोग में अध्यक्ष पद के लिए आवेदन किया है। इस पद के लिए अब तक कुल 6 आवेदन आए हैं, जिनमें 4 रिटायर IAS, 1 रिटायर IPS और 1 रिटायर IFS शामिल हैं।
मंत्री जी का बंगला प्रेम चर्चा में
सत्ता-संगठन में एक मंत्री का बंगला प्रेम चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल, मंत्री जी इंदौर, जबलपुर के दौरे पर जब भी जाते हैं तो वे रेस्ट हाउस की बजाए वन विभाग के बंगले में ठहरना ज्यादा पसंद करते हैं। मंत्री के बंगला प्रेम को देखते हुए विभाग के अफसरों ने उन्हें खुश करने के लिए लाखों रुपए खर्च करके बंगलों को चकाचक करवा दिया। इंदौर के साहब ने तो बंगले में 80 हजार का झूमर और शानदार इंटीरियर तक करवाया। हालांकि, कागजों में ये बंगले मंत्री के नाम आवंटित नहीं है, ऐसे में सब कुछ मौखिक आदेश पर हो रहा है। अंदरखाने की मानें तो रेस्ट हाउस में मंत्री की गोपनीयता नहीं रहती, कौन मिलने आ रहा है, ये बातें सार्वजनिक हो जाती हैं, इसलिए मंत्री विभाग के बंगले में ठहरना ज्यादा पसंद करते हैं। इससे मामला गोपनीय बना रहे, सार्वजनिक हो गया तो हंगामा हो जाएगा।
मैं भी मंत्री ही हूं जी!
इंदौर जिले के एक नेता जबसे मंत्रित्व को प्राप्त हुए हैं, रुक ही नहीं रहे। किसी भी मंत्रालय में ट्रिन-ट्रिन कर देते हैं। बीते दिनों एक अनुयायी के कहने पर दूसरे मंत्रालय के मंझोले अफसर को इधर से उधर करने के लिए घंटी लगा दी। इधर से फोन गया तो उधर बड़े अफसर ने हूं.. हां.. जी सर..कर देता हूं सर.. तो कहा लेकिन किया कुछ नहीं। दरअसल, जिस अफसर को यहां-वहां करने का आदेश दिया था वो अपने क्षेत्र के मंत्री के टेके से ही वहां बैठा था। फिर हुआ यूं कि मंत्री जी के फोन पर दूसरे मंत्री की घंटी बज गई। भैया, आप मंत्री हो, आपका पूरा सम्मान है, लेकिन मेरे क्षेत्र में दखल मत दीजिए। आपको कोई काम है तो मुझे आदेश दें। सीधे फोन नहीं किया करें। भैय्याजी क्या कहते, आगे से ध्यान रखूंगा के अलावा। और सुनिए। जिस अफसर के लिए दोनो मंत्री एक दूसरे को सुनने-सुनाने का उपक्रम कर रहे थे, उसका इन दोनों मंत्रियों के विभागों से लेना-देना ही नहीं है। उसके मूल मंत्री तो सागर जिले में बैठे हैं। खैर... फोनबाजी का असर ये हुआ कि अब भैय्याजी को उन मंत्री के इलाके में फीता भी काटना होता है तो आयोजकों से पूछ लेते हैं-आपके क्षेत्र के मंत्री को बुलाया या नहीं। जवाब अगर नहीं में मिलता है तो ये भी कह देते हैं- मैं नहीं आऊंगा। ठीक ही तो है। बातें कौन सुने।
मेहमान, मेजबान...दोनों हम ही हैं
उज्जैन जिले में एक बड़ा जलसा हुआ। इतना बड़ा कि कालांतर में उसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तक शिरकत करते रहे हैं। लेकिन इस बार अजीब हालात बने। जलसे वालों को दीप प्रज्ज्वलन के लिए दो हाथों को तरसना पड़ा। कहा तो गया था कि प्रदेश के मुखिया जी ही पधार रहे हैं, लेकिन वो अफवाह निकली। बाद में दीप तो जला लेकिन उन्हीं मंत्री जी के शुभ हाथों से, जिनका विभाग खुद ही मेजबान था। ऐसा भी नहीं कि जिले में नेताओं का सूखा है। जिस दिन लौ प्रज्ज्वलित होना थी, उस दिन और उस समय शहर में कम से कम दर्जनभर नेता, मंत्री एक बड़ी शादी में दावत का आनंद ले रहे थे, लेकिन जलसे के आतिथ्य का सौभाग्य किसी को नहीं मिला। दरअसल, जिन्हें जिम्मेदारी दी गई थी, उन्होंने आयोजन इतना अस्त-व्यस्त कर दिया कि उसे दुरुस्त करने में मंत्रीजी को खुद पार्टी बनना पड़ा। इसका दर्द मंत्रीजी के संबोधन में भी छलका, जब उन्होंने आयोजन के मुखिया से कह दिया- आपके विभाग के लोगों को ही बुला लेते तो मंच और पंडाल की गरिमा रह जाती। खैर... सुना है बाद में बात संभल गई। अब सब कुशल-मंगल है।
दोउ दीन से गए माननीय...
कमलनाथ का हाथ छोड़ कमल थामने वाले पूर्व विधायक इन दिनों काफी परेशान हैं। अंदरखानों की माने तो उनसे कहा गया था कि यदि वे चुनाव हारेंगे तब भी उन्हें सरकार के किसी निगम मंडल में बैठाया जाएगा। लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। इन्हीं दुखी आत्मओं में एक पूर्व विधायक ऐसे भी हैं, जो कहते फिर रहे हैं कि दोउ दीन से गए...! दरअसल, इनके परिवार में शादी में भी बड़े नेता नहीं पहुंचे। उन्हें लग रहा है कि नई पार्टी में उन्हें कोई तवज्जो नहीं मिल रही और पुरानी का दरवाजा वो खुद बंद करके आ गए।