MP के मजदूर कर्नाटक में बंधक: प्रशासन ने कराया रेस्क्यू, इतने मजदूर वापस लौटे

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MP के मजदूर कर्नाटक में बंधक: प्रशासन ने कराया रेस्क्यू, इतने मजदूर वापस लौटे

खंडवा, मध्यप्रदेश के खंडवा (Khandwa) जिले के आदिवासी मजदूरों का कर्नाटक से रेस्क्यू( Rescue from Karnataka) कराया गया है जिन्हे गन्ना किसानों ने बंधक बना कर रखा था। सभी 16 मजदूर वनमंत्री विजय शाह की हरसूद विधानसभा (Harsud Assembly) क्षेत्र के देवलीकला ग्राम  रहने वाले है। जो काम की तलाश में कर्नाटक के बीजापुर गए थे जहां उन्हे प्रताड़ित किया जा रहा था। शिकायत मिलने पर खंडवा जिला कलेक्टर ने रेस्क्यू टीम भेजकर सभी मजदूरों को मुक्त कराया। 



कर्नाटक में बंधक बनाए गए 16 मजदूर: देवरीकला गांव (Devrikala Village) के 16 मजदूरों को अच्छी मजदूरी दिलाने का लालच देकर स्थानीय दलाल कर्नाटक  के बीजापुर (bijapur) ले गया था , इन्हें कहा गया था कि गुड़ की पेकिंग करना है, लेकिन ठेकेदार लक्ष्मण का दावा झूठा निकला। वहां मजदूरों को वहां गन्ना कटाई पर लगा दिया। इस काम की उन्हे मजदूरी नहीं दी जा रही थी। जिसके बाद इन्होंने हेल्पलाइन नम्बर के माध्यम से मजदूरों के लिए काम करने वाली संस्था जन साहस से मदद मांगी।



बंधक बना के किया जा रहा था प्रताड़ित: मजदूरों को वापस लाने बाली जन साहस (Jan Sahas ) सामाजिक संस्था (Social Organization) की पायल दांगोडे का कहना है कि, देवीकलां गांव के 16 मजदूर कर्नाटक के बीजापुर मजदूरी करने गए थे। जहां गन्ना किसानों (sugarcane farmers) ने उन्हें बंधुआ मजदूरी (forced labour) पर रख लिया था। किसान उनसे अपने खेत के अलावा दूसरे किसानों के खेत में भी गन्ना कटाई के लिए भेजने के लिए प्रताड़ित करने लगे। जिसकी जानकारी किसानों ने अपने परिवारों को फोन दी थी। 



जिला प्रशासन ने कराया रेस्क्यू: परिजनों की शिकायत पर जिला कलेक्टर अनुपसिंह (Collector Anup Singh) ने कर्नाटक के बीजापुर से जिला प्रशासन (district administration) से चर्चा की। इसके बाद पुलिस और प्रशासन की एक टीम बीजापुर भेजी गई। मौके पर पहुंची टीम ने बंधक बनाए गए मजदूरों को छुड़वाया। मंगलवार 4 जनवरी को सभी मजदूरो को वापस खंडवा लाया गया। 



वापस लौटे आदिवासियों ने बयां किया दर्द: बंधुआ मजदूरी से मुक्त होकर लौटे मजदूरों ने बताया कि । हमसे धमका कर काम कराया जा रहा था और मजदूरी भी नहीं मिल रही थी। काम के बाद हमे कमरे में बंद कर दिया जाता था। घर वापस जाने की बात करने पर हमें खाना नहीं दिया जाता था। 


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