Bhopal. प्रदेश की नगर निगमों में महापौर पद का चुनाव सीधे जनता से कराने के बीजेपी सरकार के ऐलान से सभी पार्टियों में नेताओं के चेहरे खिल गए हैं। सरकार के इस फैसले से बीजेपी ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के भी कई नेताओं की उम्मीदें हरी हो गईं हैं। ये नेता भोपाल, इंदौर, उज्जैन, ग्वाालियर, जबलपुर, रीवा, सतना, सागर, छिंदवाड़ा जैसे प्रदेश के 16 प्रमुख शहरों की नगर निगम में महापौर की ताकतवर कुर्सी हासिल करने की हसरत लंबे समय से पाले हुए हैं। शहरों की राजनीति में सक्रिय नेताओं ने नगरीय निकाय के चुनाव के बारे में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और राज्य निर्वाचन आयोग की तैयारी का ऐलान होते ही महापौर के टिकट के लिए दावेदारी और लॉबिंग शुरू कर दी है। द सूत्र की टीम ने खास रिपोर्ट के जरिए प्रदेशभर से उन नेताओं के नाम जुटाए हैं जो बड़े शहरों का प्रथम नागरिक (महापौर) बनने के चुनाव में टिकट के प्रमुख दावेदारों की दौड़ में शामिल हैं।
भोपाल: महापौर के लिए बीजेपी से राजो मालवीय, मालती राय, कांग्रेस से विभा पटेल और संतोष कंसाना का नाम
पिछला महापौरः आलोक शर्मा (बीजेपी)
बीजेपीः भोपाल में महापौर का पद ओबीसी महिला उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। इस लिहाज से बीजेपी की तरफ से पार्टी की प्रदेश प्रवक्ता राजो मालवीय ओबीसी के चेहरे के रूप में बड़ी दावेदार हैं। ये पहले भी भोपाल नगर निगम में महापौर पद का चुनाव लड़ चुकी हैं। पूर्व में राज्य महिला आयोग की सदस्य की जिम्मेदारी भी संभाल चुकीं हैं। इनके अलावा बीजेपी की पूर्व पार्षद सीमा यादव, तुलसा वर्मा, मालती राय भी राजधानी में प्रथम नागरिक का दर्जा पाने के लिए महापौर पद के संभावित उम्मीदवारों की फेहरिस्त में शामिल हैं।
कांग्रेसः महापौर पद के लिए कांग्रेस में ओबीसी महिला के रूप में दो दावेदारों के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे हैं। प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष विभा पटेल और पूर्व पार्षद संतोष कंसाना इस दौड़ में आगे हैं। वर्तमान में कांग्रेस के पास महापौर पद के लिए विभा पटेल ही एक जाना पहचाना और स्थापित चेहरा है। वे पूर्व में भोपाल की महापौर चुनीं जा चुकी हैं। इसके बाद वे गोविंदपुरा सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुकीं हैं।
इंदौर: बीजेपी से रमेश मेंदोला के अलावा लंबी कतार, कांग्रेस से संजय शुक्ला इकलौता नाम
पिछला महापौरः मालिनी गौड़ (बीजेपी)
प्रदेश में मेयर का सबसे बड़ा चुनाव इंदौर नगर निगम का होता है। यहां 18.35 लाख वोटर्स अपना मेयर चुनते हैं। ये इकलौता शहर है, जहां दो दशक से लगातार बीजेपी का मेयर है। कैलाश विजयवर्गीय ने सन 2000 में देश में सर्वाधिक वोटों से जीतने वाले मेयर की उपाधि हासिल की थी। उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता सुरेश सेठ को हराया था। वे निर्दलीय लड़े थे और कांग्रेस उन्हें समर्थन देने के मुद्दे पर दो-फाड़ हो गई थी। उसके बाद से कांग्रेस यहां मेयर तो क्या, परिषद तक बनाने को तरस गई है। हालांकि इस बार कांग्रेस ने विधायक संजय शुक्ला को काफी पहले मेयर का उम्मीदवार घोषित कर लड़ाई को रोचक और बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण बनाने की कोशिश की है । बीजेपी ने कभी खुलकर अपने पत्ते नहीं खोले, लेकिन महापौर पद के दावेदारों ने टिकट हासिल करने के लिए जमावट और लॉबिंग शुरू कर दी है।
कांग्रेसः इंदौर में महापौर पद के लिए कांग्रेस की ओर से विधायक संजय शुक्ला तयशुदा उम्मीदवार हैं। पिछली बार चुनावों की घोषणा होते ही उन्होंने मैदानी तैयारी भी शुरू भी कर दी थी। वे इस बार भी तैयार हैं। उम्मीदवारी के सवाल पर उनका कहना है कि मेयर का चुनाव डायरेक्ट हो या पार्षदों के जरिए। पार्टी कहेगी तो पार्षद का चुनाव लड़कर भी मेयर बनने के लिए तैयार हूं। दरअसल वे पिछले चुनाव में बीजेपी के दो बार के विधायक सुदर्शन गुप्ता को हराने के बाद कांग्रेस के लिए बड़ी संभावना बनकर उभरे हैं। उन्होंने इंदौर विधानसभा-1 की सीट बीजेपी से 15 साल बाद छीनी है।
बीजेपीः इंदौर में बीजेपी से महापौर पद के लिए रमेश मेंदोला का नाम पहली पंक्ति के उम्मीदवारों में शामिल है। इंदौर मेयर पद के लिए 2005 में जब बीजेपी ने कृष्णमुरारी मोघे को उम्मीदवार बनाया था, तब भी रमेश मेंदोला का नाम प्रमुख दावेदारों की सूची में शामिल था।
रमेश मेंदोला क्यों- इंदौर शहर से तीन बार के विधायक हैं। उनका नाम प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले विधायक के रूप में शुमार हैं। पार्टी के लिए कुक्षी, सांवेर, महेश्वर से लेकर झाबुआ तक के विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने और अधिकांशतः जीत सुनिश्चित कराने वालों में मेंदोला पार्टी के सेफ्टी वॉल्व कहे जाते हैं। जहां कोई कुछ नहीं कर पाता, वहां पार्टी मेंदोला पर दांव चलती है। 'जनबल के विधायक' हैं और जरूरत पड़ने पर कांग्रेस के संजय शुक्ला के धनबल का मुकाबला भी करने में सक्षम हैं। चूंकि शिवराज मंत्रिमंडल में जगह पाने से दो बार चूक गए हैं, इसलिए संभावना है कि पार्टी उसकी भरपाई के लिए इंदौर में महापौर के प्रतिष्ठित पद के लिए मेंदोला पर दांव पर लगाए। वैसे वे खुद कभी दावेदारी नहीं जताते, लेकिन अपने 'हनुमान' के लिए उनके 'राम' (कैलाश विजयवर्गीय) भोपाल-दिल्ली एक कर देते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही होने की संभावना जताई जा रही है।
सुदर्शन गुप्ता क्यों - इंदौर से महापौर पद के दावेदारों में एक नाम पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता का भी है। नरेंद्र तोमर और शिवराज सिंह चौहान के नजदीकी संबंधों पर राजनीति चलाने वाले गुप्ता यूं भले ही दावेदार हों, लेकिन मैदान में उनका दावा कमजोर हो सकता है। इसकी सबसे बड़ी वजह उनका पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के संजय शुक्ला से हारना है। उनका कार्यक्षेत्र भी इंदौर-1 नंबर विधानसभा तक ही सीमित है, जबकि महापौर का चुनाव पूरे इंदौर नगर निगम क्षेत्र 18.35 लाख मतदाता करेंगे। वैसे भी पार्टी किसी हारे हुए उम्मीदवार पर दांव लगाएगी, इसकी संभावना कम ही है। बीजेपी की अंदरूनी राजनीति के जानकारों की राय में पार्टी महापौर के लिए या तो जीते उम्मीदवार को लड़ाएगी या एकदम नए को।
बीजेपी से जीतू जिराती, मधु वर्मा भी दौड़ में शामिल- बीजेपी में टिकट चाहने वालों की फेहरिस्त लंबी है। मालिनी गौड़ शहर में सफाई अभियान की संस्कृति के कारण सफल मेयर के रूप में गिनी जाती हैं, लेकिन उनका पार्टी में विरोध भी है। एक ही परिवार में सारे टिकट क्यों जाएं जैसे तर्कों के साथ। उनके विधानसभा टिकट तक पर इस बार सवाल खड़े हो रहे हैं। बीते 6 चुनाव से (मेयर सहित सात) इंदौर-4 चार विधानसभा के टिकट गौड़ परिवार को ही मिले हैं, ऐसे में इस बात की संभावना कम ही हैं कि वे दोहराई जाएंगी। वैसे वे सीएम की गुड लिस्ट में हैं। जीतू जिराती राऊ से विधानसभा टिकट पाने से वंचित रह गए थे, इसलिए अपना दावा मान रहे हैं। उनके कैलाश विजयवर्गीय के साथ-साथ सीएम शिवराज सिंह चौहान के साथ भी गहरे संबंध हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि एक तो वे अर्धग्रामीण विधानसभा से आते हैं, दूसरा उनके साथ अभी भी शहरव्यापी पहचान कायम करने का संकट बरकरार है। मधु वर्मा जरूर पूरे शहर में पहचाने जाते हैं। वे राऊ का चुनाव करीबी मुकाबले में कांग्रेस के जीतू पटवारी से हारे, लेकिन इंदौर विकास प्राधिकरण में बतौर अध्यक्ष जो काम उन्होंने इंदौर में करवाए वे आज भी याद किए जाते हैं।
उज्जैन: कांग्रेस से महेश परमार, दीपक मेहर का नाम, बीजेपी में दावेदारों की लंबी कतार
पिछली महापौर- मीना जूनवाल (बीजेपी)
उज्जैन में महापौर पद के लिए कांग्रेस विधायक महेश परमार सबसे तगड़े दावेदार हैं। यूं तो वे उज्जैन के करीब तराना विधानसभा से विधायक हैं, लेकिन उनकी सक्रियता उज्जैन शहर में ज्यादा है। उनका उज्जैन में बैरवा और बलाई समाज का खासा दखल भी है। परमार बलाई समाज से आते हैं और पिछले चुनाव में उन्होंने विपरीत परिस्थितयों में बीजेपी के कद्दावर नेता (अब सांसद) अनिल फिरोजिया को हराया था। इससे अचानक वे चर्चा में आ गए। उनके अलावा दीपक मेहर भी दावेदारों की सूची में शामिल हैं।
बीजेपी में कतार लंबी- बीजेपी में महापौर पद के लिए पूर्व सांसद चिंतामण मालवीय, सुरेश गिरी (संगठन के भरोसे), मुकेश टटवाल, वेदप्रकाश जीनवाल दावेदार हैं। इनमें से अधिकांश बैरवा समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। उज्जैन में बीते बीस सालों में ज्यादातर मेयर की कुर्सी पर बैरवा समाज का नुमाइंदा ही काबिज रहा है। निवर्तमान मेयर मीना जूनवाल (बीजेपी) भी उसी समाज से हैं। उज्जैन में बीस सालों में सिर्फ एक ही एक बार कांग्रेस की मेयर (सोनी मेहर) रहीं, बाकि मदनसिंह लालावत, रामेश्वर अखंड आदि मिलाकर बीजेपी के मेयर ही रहे हैं।
ग्वालियर: सत्तर के दशक से मेयर पद से दूर है कांग्रेस, इस बार कांग्रेस- बीजेपी से ये प्रमुख दावेदार
पिछला महापौर- विवेक शेजवलकर (बीजेपी)
ग्वालियर-चंबल संभाग में अभी दो नगर निगम और नगर पालिकाओं की संख्या 12 से ज्यादा है । ग्वालियर नगर निगम करीब 117 साल पुरानी है। इसकी स्थापना तत्कालीन सिंधिया शासक जीवाजी राव सिंधिया ने की थी । इसकी खास बात ये है कि सत्तर के दशक के बाद से इसकी परिषद पर जनसंघ यानी वर्तमान बीजेपी का ही कब्जा रहा है। वर्तमान सांसद विवेक नारायण शेजवलकर इसके आखिरी महापौर थे। नए संविधान संशोधन के बाद हुए चुनाव में दलित समाज से अरुणा सैन्या, पूरन सिंह पलैया, पिछड़े वर्ग से समीक्षा गुप्ता और सामान्य वर्ग से दो बार विवेक नारायण शेजवलकर महापौर बन चुके हैं। पहले को छोड़कर बाकी ने सीधे मतदान से ही यह पद हासिल किया था।
इस बार ग्वालियर महापौर की सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित है। महापौर पद के लिए प्रमुख उम्मदवारों में बीजेपी से सुमन शर्मा, मीना सचान ,समीक्षा गुप्ता, डॉ.अंजली रायजादा,डॉ वीरा लोहिया और पूर्व मंत्री माया सिंह का नाम प्रमुख है। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद उनकी समर्थक रमा पाल भी दावेदारी जता रहीं हैं। कांग्रेस में पार्टी के प्रदेश कोषाध्यक्ष एवं एपेक्स बैंक के पूर्व चेयरमैन अशोक सिंह की पत्नी राजेश सिंह, रश्मि पंवार के नाम आगे हैं। एक नाम शहर काँग्रेस के जिला अध्यक्ष डॉ. देवेंद्र शर्मा की पत्नी डॉ.रीमा शर्मा का भी सामने आ रहा है।
मुरैना नगर निगम में महापौर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। पिछली बार शहर के महापौर के लिए पूर्व सांसद अशोक अर्गल जीते थे। पूरी संभावना है कि पार्टी इस बार भी उन्हीं पर दांव लगा सकती है।
जबलपुरः कांग्रेस से जगत बहादुर सिंह, गौरव भनोत, दिनेश यादव प्रमुख दावेदार, बीजेपी में अभिलाष पांडे, श्रीराम शुक्ला, कमलेश अग्रवाल का नाम आगे
पिछला महापौरः स्वाति गोडबोले (बीजेपी)
जबलपुर संभाग में कुल दो नगर निगम जबलपुर और कटनी हैं। जबलपुर में महापौर की सीट अनारक्षित है, वहीं कटनी में महिला के लिए अनारक्षित है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों पिछड़े वर्ग को संतुष्ट करने के प्रयास में लगी है।
कांग्रेसः जबलपुर महापौर पद के लिए कांग्रेस में प्रमुखता से जगत बहादुर सिंह अन्नू का नाम सामने आ रहा है। वे वर्तमान में शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं। इसके अलावा वे 2004-2009 में पार्षद भी रहे हैं। इनकी पत्नी यामिनी सिंह भी पूर्व पार्षद हैं। शहर अध्यक्ष बनने से पहले से ही इनका लक्ष्य महापौर का चुनाव फाइट करना रहा है। वे राजनीति के अलावा सामाजिक और धार्मिक कार्यों में सक्रिय हैं। हर साल विशेष ट्रेन से लोगों को वैष्णो देवी के दर्शन करवाते हैं। कांग्रेस में इनके अलावा गौरव भनोत भी दावेदारों की लिस्ट में शामिल हैं। ये पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोत के छोटे भाई हैं और पार्षद भी रहे हैं। ये मिलनसार और कार्यकर्ताओं की पसंद माने जाते हैं। कांग्रेस में तीसरा नाम दिनेश यादव का सामने आ रहा है। ये साढ़े ग्यारह साल शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं। इसके अलावा नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। ये शहर में जनहित के मुद्दे उठाते रहते हैं।
बीजेपीः जबलपुर बीजेपी में महापौर पद के लिए दावेदारी में अभिलाष पांडे का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। ये युवा मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष हैं। इन्हें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की निकटता हासिल है। ये जनता के बीच खासतौर से युवाओं के बीच ज्यादा सक्रिय रहते हैं। बीजेपी से श्रीराम शुक्ला भी दावेदार बताए जा रहे हैं। ये तीन बार पार्षद और नगर निगम परिषद में अध्यक्ष भी रह चुके हैं। ये जनता के बीच सक्रिय रहते हैं और छवि साफ-सुथरी है। इनके अलावा बीजेपी से पूर्व में तीन बार पार्षद रहे चुके कमलेश अग्रवाल भी महापौर पद की दावेदारी के लिए इच्छुक बताए जा रहे हैं।
कटनी: कांग्रेस से श्रेया खंडेलवाल, रजनी सोनी, राजकुमारी जैन दावेदार, बीजेपी से अलका जैन, सुभद्रा सोनी, प्रीति सूरी का नाम शामिल
पिछला महापौरः शशांक श्रीवास्तव (बीजेपी)
कटनी नगर निगम में महापौर की सीट अनारक्षित महिला है। यहां कांग्रेस में श्रेया खंडेलवाल प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं। इसकी वजह इनकी सामाजिक कार्यों के अलावा एनएसयूआई और युवा कांग्रेस के आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी है। इनकी साफ-सुथरी छवि है। इनके अलावा रजनी अशोक सोनी भी दावेदारों की सूची में शामिल हैं। वे पूर्व पार्षद व कांग्रेस कमेटी की महासचिव हैं। वे ओबीसी वर्ग से हैं। कांग्रेस से राजकुमारी जैन भी उम्मीदवार बताई जा रहीं हैं।वे भी पूर्व पार्षद हैं और नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष मिथिलेश जैन की पत्नी हैं और जनता के बीच सक्रिय रहती हैं।
बीजेपीः कटनी में बीजेपी की ओर से महापौर पद के लिए अलका जैन का नाम प्रमुखता से सामने आ रहा है। वे राजस्थान के पूर्व राज्यपाल निर्मल चंद जैन की बेटी हैं। इनके आरएसएस से अच्छे संबंध हैं। वे पूर्व विधायक और मंत्री रही हैं। इनकी साफ छवि है। इनके अलावा बीजेपी से सुभद्रा सोनी भी दावेदारी जता रहीं हैं। वे पूर्व पार्षद रही हैं और ओबीसी वर्ग से आती हैं। वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीतकर बीजेपी में शामिल हुई थीं। बीजेपी की पूर्व पार्षद व जिला मंत्री प्रीति संजीव सूरी भी दावेदारों की कतार में शामिल हैं।
रीवा में कांग्रेस से कई दावेदार, बीजेपी वैश्य या सिंधी वर्ग के दावेदार पर लगाएगी दांव
पिछला महापौर- ममता गुप्ता (बीजेपी)
रीवा संभाग में आने वाली तीनों नगर निगम (रीवा, सतना, सिंगरौली) में महापौर के पद अब अनारक्षित श्रेणी में हैं। रीवा और सिंगरौली पूर्व से ही अनारक्षित थे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ओबीसी के खाते में रही सतना की महापौर सीट भी अनारक्षित हो गई है। प्रशासन ने निगम चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। इसके साथ ही कांग्रेस और बीजेपी के दावेदारों के नाम भी उभरकर सामने आने लगे हैं।
रीवा में 1994 में अप्रत्यक्ष प्रणाली से हुए चुनाव में कांग्रेस का महापौर निर्वाचित हुआ था। इसके बाद से यहां लगातार बीजेपी जीत रही है। कांग्रेस से जिन दावेदारों के नाम उभरकर सामने आ रहे हैं, उनमें निगम में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय मिश्र बाबा, तीन बीर पार्षद रहे लखन खंडेलवाल हैं। नगर निगम रीवा में कमिश्नर रह चुके आईएफएस एसपीएस तिवारी ने हाल ही में कांग्रेस की सदस्यता ली है। वे कांग्रेस के पर्यावरण प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए हैं। पारंपरिक कांग्रेसी घराने के एसपीएस तिवारी भी महापौर पद के लिए गंभीर दावेदारों की फेहरिस्त में शामिल हैं।
सत्ताधारी दल बीजेपी में एक अनार सौ बीमार जैसी स्थिति है। लेकिन सक्रियता की दृष्टि से देखें तो तीन बार पार्षद रह चुके व्येंकटेश पांडेय, पूर्व महापौर वीरेन्द्र गुप्त व कैलाश कोटवानी के नाम प्रमुखता से उभरकर सामने आ रहे हैं। चूंकि रीवा लोकसभा के सदस्य व विधायक दोनों ब्राह्मण हैं लिहाजा महापौर का प्रत्याशी वैश्य या सिंधी वर्ग से आएगा, इसकी प्रबल संभावना जताई जा रही है।
सतना: बीजेपी से लक्ष्मी यादव, योगेश ताम्रकार, पुष्कर सिंह प्रबल दावेदार, कांग्रेस से संध्या कुशवाहा, अजय सोनी, मनीष तिवारी दौड़ में
पिछला महापौरः ममता पांडेय (बीजेपी)
सतना नगर निगम में भी महापौर का पद अब अनारक्षित है, लेकिन फिर भी दावेदार पिछड़े वर्ग से ज्यादा हैं। बीजेपी अपने वादे के अनुसार यहां से पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार उतार सकती है। ऐसी स्थिति में पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य रह चुके लक्ष्मी यादव, प्रदेश उपाध्यक्ष योगेश ताम्रकार प्रबल दावेदार के रूप में आगे हैं। पूर्व महापौर पुष्कर सिंह तोमर को टिकट नहीं मिली तो वे बसपा से लड़ेंगे ऐसा लगभग तय माना जा रहा है। कांग्रेस के दावेदारों में सबसे प्रबल नाम विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा की पत्नी संध्या का है। एकेएस प्राइवेट यूनिवर्सिटी के संचालक अजय सोनी भी अपनी सोशल नेटवर्किंग और धनबल के दम पर महापौर टिकट के दावेदारों में शामिल हैं। कांग्रेस के आक्रामक नेता और पूर्व में महापौर के चुनाव के चुनाव में कड़ी टक्कर दे चुके मनीष तिवारी एक बार फिर जोरआजमाइश के लिए तैयार हैं।
इनके अलावा राजदीप सिंह मोनू का नाम अप्रत्याशित रूप से सामने आ रहा है। सतना का प्रथम नागरिक बनने के लिए धर्मेश चतुर्वेदी और अनिल अग्रहरि शिवा का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। ये टिकट के लिए किसी भी पार्टी का दामन थाम सकते हैं, यदि नहीं मिला तो निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरेंगे। सतना में महापौर के चुनाव में बीजेपी का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। वर्तमान में विधानसभा सीट कांग्रेस के खाते में है।
सिंगरौली में बीजेपी से शिवेन्द्र सिंह, गिरीश द्विवेदी प्रबल दावेदार, कांग्रेस से रामअशोक शर्मा, अरविंद चंदेल का नाम
पिछला महापौरः प्रेमवती खैरवार (बीजेपी)
प्रदेश की ऊर्जाधानी सिंगरौली नगर निगम की बात की जाए तो जब से यह जिला सीधी से अलग जिला घोषित हुआ तब से भाजपामय है। सिंगरौली नगरनिगम की अनारक्षित सीट से इस बार भी महापौर पद के लिए शिवेन्द्र बहादुर सिंह की दावेदारी प्रबल है। इनके पिता संविद शासन में मंत्री रह चुके हैं। संगठन समर्पित गिरीश द्विवेदी के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं जैसी स्थिति है। सिंगरौली से लंबे समय तक प्रतिनिधित्व कर चुक स्वर्गीय रामचरित के बेटे अंगद वर्मा की भी दावेदारी है। इनके बेटे सुभाष वर्मा देवसर से विधायक हैं। कांग्रेस से महापौर पद की दावेदारी में अजय सिंह राहुल और उनके बहनोई वीपी सिंह के समर्थकों के बीच मुकाबला तय माना जा रहा है। वीपी सिंह राम अशोक शर्मा को लड़ाना चाहेंगे, जबकि अरविंद सिंह चंदेल राहुल की स्वाभाविक पसंद हैं। पूर्व महापौर रेणु शाह एकबार फिर उम्मीदवारी के लिए जोर आजमाइश करेंगी।
(भोपाल से अरुण तिवारी, इंदौर से ललित उपमन्यु, जबलपुर से राजीव उपाध्याय, ग्वालियर से देव श्रीमाली का इनपुट)