बक्सवाहा पार्ट 2: स्पॉट वैरिफिकेशन रिपोर्ट बदली, लिखा- ना जानवर हैं, ना बाघ कॉरिडोर

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बक्सवाहा पार्ट 2: स्पॉट वैरिफिकेशन रिपोर्ट बदली, लिखा- ना जानवर हैं, ना बाघ कॉरिडोर

हरीश दिवेकर, भोपाल। बक्सवाहा की हीरा खदान से जुड़ी द सूत्र की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट की पहली कड़ी में हमने आपको बताया था कि किस तरह से फॉरेस्ट, प्रदूषण विभाग और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट्स को केंद्र सरकार को भेजे गए प्रस्ताव में शामिल ही नहीं किया गया। तो आखिरकार ऐसी कौन सी रिपोर्ट थी जिसके आधार पर एस्सेल ग्रुप के प्रस्ताव को सरकार ने हरी झंडी देकर केंद्र सरकार तक पहुंचा दिया?

दो अफसर, दोनों की रिपोर्ट अलग-अलग

दरअसल, 2019 में ये पूरा खेल हुआ। तत्कालीन डीएफओ ओपी उचाड़िया की 2016 में दी गई रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में फेंककर सरकार ने एक बार फिर खदान को लीज पर देने की प्रक्रिया शुरू कर दी। नए सिरे से टेंडर निकाला। बिड़ला समूह को ये टेंडर मिला। टेंडर पास होने के बाद जो प्रक्रियाएं होती हैं, वो नए सिरे से शुरू की गईं। इसलिए नवंबर 2020 में नए सिरे स्पॉट वैरिफिकेशन हुआ। इस बार स्पॉट वैरिफिकेशन किया, तत्कालीन डीएफओ संजीव झा ने। सरकार ने संजीव झा से मनचाही रिपोर्ट तैयार करवाई, क्योंकि झा ने जो रिपोर्ट दी, वो ओपी उचाड़िया की रिपोर्ट से ठीक उलट है। संजीव झा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि यहां ना तो कोई वन्य प्राणी हैं और ना ही बाघों का कॉरिडोर। सवाल ये है कि तीन साल के दौरान ऐसा क्या हुआ कि बक्सवाहा के जंगल से सारे जानवर भाग गए? कोई हंगामा न हो, इसलिए सरकार ने इस रिपोर्ट को भी बाहर नहीं आने दिया। आखिरकार झा की इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर राज्य सरकार ने प्रस्ताव सीधे केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय को अनुमति के लिए भेज दिया।

डीएफओ संजीव झा ने खुद को ऐसे बचा लिया

द सूत्र ने संजीव झा से उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो उन्होंने साफ कहा कि आला अधिकारियों ने उन्हें इस मसले पर बातचीत करने के लिए मना किया है। संजीव झा की इस रिपोर्ट को आधार पर बनाकर सरकार ने प्रस्ताव केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेज दिया है, लेकिन यहां झा ने भी एक चालाकी की है। स्पॉट रिपोर्ट में तो लिखा है कि बक्सवाह के जंगलों में कोई वन्य प्राणी नहीं है, लेकिन सरकार को की गई अनुशंसा में एक टिप्पणी लिख दी कि पर्यावरण के विशेषज्ञों से इसकी तहकीकात करना ज्यादा ठीक होगा। यानी सरकार ने झा से मर्जी की रिपोर्ट बनवाई, लेकिन संजीव झा ने अपनी कलम फंसने नहीं दी है। इसका साफ मतलब है कि झा को इस बात का अंदेशा था कि यदि मामला फंसता है तो उसमें वो भी कहीं लपेटे में ना आ जाएं।

अगला खुलासा: कैसे लगे फाइल को पंख!

द सूत्र के पास संजीव झा की रिपोर्ट मौजूद है। साथ ही अगली कड़ी में सरकारी तंत्र के एक और खेल को बताएंगे कि कैसे बिड़ला ग्रुप को हीरा खदान को आवंटित करने प्रस्ताव को तैयार करने के लिए फाइलों को पंख लग गए! कैसे महीनों का काम घंटों में किया गया?

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