Bhopal. मध्य प्रदेश में नगर निगम के महापौर, नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष अब सीधे जनता चुनेगी। सरकार OBC आरक्षण को लेकर फंसे पेंच के बीच नगरीय निकायों के चुनाव एक बार फिर प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने के लिए अध्यादेश (Ordinance) लेकर आ रही है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने 13 मई को देर शाम इसका ड्राफ्ट तैयार कर कानून विभाग को भेज दिया है। मध्यप्रदेश में 2015 तक महापौर-अध्यक्ष के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होते रहे हैं।
प्रत्यक्ष प्रणाली से होंगे महापौर के चुनाव | नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द सिह बोले-सरकार ला रही है अध्यादेश नगरपालिका,नगर परिषद के अध्यक्ष भी जनता चुनेगी|पुराने नियम बदले जाएगे |सरकार ने निर्वाचन आयोग को भी दी सूचना एक शहर का एक ही महापौर होगा| @bhupendrasingho @CMMadhyaPradesh pic.twitter.com/mO4zLdnloK
— TheSootr (@TheSootr) May 14, 2022
कमलनाथ ने भी लिया था फैसला
यह पहली बार नहीं हुआ। इससे पहले कमलनाथ सरकार ने अप्रत्यक्ष प्रणाली (पार्षदों को महापौर चुनने का अधिकार) से चुनाव कराने का निर्णय लिया था। जैसे ही शिवराज चौथी बार सत्ता में आए, उन्होंने कमलनाथ सरकार के इस फैसले को एक अध्यादेश के जरिए पलट दिया था, लेकिन इसे विधानसभा में डेढ़ साल तक पेश नहीं किया था। इससे कमलनाथ सरकार के समय बनाई गई यह व्यवस्था आज भी प्रभावी है।
नगरीय विकास एवं आवास विभाग के अधिकारियों ने बताया कि मौजूदा व्यवस्था में नगर निगम के महापौर और नगर पालिका व नगर परिषद के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से ही होगा। पहले महापौर और पार्षद के लिए अलग-अलग वोटिंग होती थी, लेकिन कांग्रेस ने इस व्यवस्था को बदल दिया। विपक्ष में रहते हुए BJP ने इसका काफी विरोध किया, पर तत्कालीन राज्यपाल ने संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए अध्यादेश और फिर विधेयक को अनुमति दे दी थी। यही वजह है कि अप्रत्यक्ष प्रणाली से नगर पालिका आलीराजपुर और नगर परिषद लखनादौन का चुनाव कराया जा चुका है।
अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने चिट्ठी भेज चुकी सरकार
अध्यादेश की समयसीमा खत्म समाप्त होने से पहले मध्य प्रदेश नगर पालिक विधि (संशोधन) विधेयक 2021 को शिवराज सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र में पेश नहीं किया था। जबकि, प्रस्तावित विधेयक को कैबिनेट से मंजूरी दे दी गई थी। पिछले साल आयोग को लिखे पत्र में सरकार ने इसका हवाला दिया था कि विधेयक को विधानसभा से मंजूरी नहीं मिलने के कारण अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराए जाएं।
विधायकों के दबाव में लिया था फैसला
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, शिवराज ने नगरीय निकाय चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का फैसला विधायकों के दबाव में लिया था। यही वजह है कि प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने के अध्यादेश को डेढ़ साल तक विधानसभा में पारित नहीं कराया। दरअसल, सीधे महापौर चुने जाने से स्थानीय राजनीति में उनका कद विधायक से ज्यादा हो जाता है। यदि पार्षद से मेयर चुने जाते हैं तो उसमें विधायकों की भूमिका अहम रहती है और मेयर उनके दबाव में रहते हैं।
BJP चाहती है जनता चुने मेयर-अध्यक्ष
BJP सूत्रों ने बताया कि संगठन की मंशा हमेशा मेयर और अध्यक्षों को सीधे जनता द्वारा चुने जाने की रही है। शहर की सरकार में कब्जा करने का यह सबसे आसान रास्ता दिखाई देता है। भले ही पार्षदों की संख्या किसी निकाय में कम हो, लेकिन मेयर या अध्यक्ष बीजेपी का होना चाहिए। पार्टी इस पर फोकस करती है। यही वजह है कि प्रदेश की लगभग सभी नगर निगमों में बीजेपी के महापौर रहे हैं।
जानकार मानते हैं कि महापौर-अध्यक्ष अगर पार्षदों में से चुना जाता है तो इस प्रक्रिया में हॉर्स ट्रेडिंग (खरीद-फरोख्त) की संभावना ज्यादा रहती है। दोनों पदों को हासिल करने के लिए मोटी रकम का लेन-देन या फिर सेटिंग होती थी। लेकिन प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होने पर इसकी संभावना कम रह जाएगी।