भोपाल (राहुल शर्मा). मध्य प्रदेश सरकार का डिजिटाइजेशन इस बार किसानों के लिए आफत बन गया। 8 से 10 जनवरी के बीज किसानों के लिए आफत बनकर आई बारिश और ओलावृष्टि से प्रदेशभर में फसलों को भारी नुकसान हुआ। 72 घंटे में इसका सर्वे कर किसानों को 25 जनवरी से 25% बीमा की राशि और राहत राशि देने के निर्देश थे, लेकिन एक ऐप की वजह से किसानों को मिलने वाली करोड़ों की राहत और बीमा राशि अटक गई।
इसलिए अटकी राशि: दरअसल, गिरदावरी रिपोर्ट के बिना किसानों को फसल बीमा या राहत राशि नहीं मिल सकती और पटवारियों को सारा (स्मार्ट एप्लीकेशन फॉर रेवेन्यू एडमिनिस्ट्रेशन) मोबाइल ऐप के जरिए गिरदावरी दर्ज करने में बहुत देरी हो रही थी। यही कारण है कि जल्द से जल्द राहत राशि और बीमा राशि की 25% राशि देने के निर्देश के बाद भी किसानों के हाथ अब भी खाली है। फसल को नुकसान हुए 22 दिन से ज्यादा का समय बीत चुका है, पर किसानों को अब तक एक फूटी कौड़ी नहीं मिली।
क्या है गिरदावरी रिपोर्ट: यह खेती से संबंधित एक प्रक्रिया है, जो साल में दो बार रबी और खरीफ की फसल के दौरान होती है। गिरदावरी प्रक्रिया को पटवारी करता है। इसमें खेत की जानकारी को राजस्व विभाग में दर्ज की जाती है, जैसे कितने रकबे में कितनी और कौन सी फसल की बुआई होनी है। पटवारी अपने क्षेत्र के किसानों के पास जाकर जानकारी जुटाकर गिरदावरी रिपोर्ट तैयार करते हैं। इससे यह जानकारी मिलती है कि किस किसान ने कितने रकबे में कौन सी फसल लगाई है। इस रिपोर्ट के बिना बीमा राशि, प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान की भरपाई, बैंक लोन या कृषि से जुड़ी अन्य योजनाओं का लाभ किसानों को नहीं मिल सकता।
सारा खेल सारा ऐप का: मध्य प्रदेश में पहले पटवारियों द्वारा खेत से संबंधित जानकारी को कागज पर नोट किया जाता था। पटवारी एक खेत में खड़ा होकर जहां तक उसकी नजर जाती थी, नक्शे के आधार पर उतने रकबे और उसकी फसल गिरदावरी रिपोर्ट में दर्ज कर देता था। इसमें कई बार गलतियां भी हो जाती थी। इसके बाद सारा (स्मार्ट एप्लीकेशन फॉर रेवेन्यू एडमिनिस्ट्रेशन) मोबाइल ऐप के जरिए ये काम होने लगा।
करीब 3 साल से पटवारी रबी और खरीफ सीजन में फसल गिरदावरी रिपोर्ट दर्ज करने के लिए इस ऐप का उपयोग कर रहे हैं। इस ऐप से फसल तभी दर्ज हो सकती है, जब पटवारी मौके पर जाकर उसी रकबे में खड़ा हो। इससे पटवारी को एक-एक रकबे के जितने बटांकन हैं, हरेक बटांकन पर जाना पड़ रहा था, जिससे गिरदावरी रिपोर्ट दर्ज करने में काफी समय लग रहा था। यह समस्या 3 साल से है, पर इस बार अतिवृष्टि और ओलावृष्टि ने काफी तबाही मचाई। गिरदावरी रिपोर्ट का काम पहले से ही धीमा था, जिसके कारण रिपोर्ट अटक गई। किसानों को मुआवजा मिलने की प्रक्रिया में हो रही देरी को देखते हुए शासन ने 20 जनवरी के बाद गिरदावरी रिपोर्ट दर्ज करने के नियमों में नरमी बरती, लेकिन तब तक सरकार ने जो किसानों को राहत देने के लिए समय निर्धारित किया था, वह निकल गया।
सर्वे रिपोर्ट महत्वपूर्ण: सीएम और कृषि मंत्री ने अधिकारियों को तत्काल नजरिया सर्वे से फसल नुकसान का सर्वे करने के लिए कहा था। यह हुआ भी, पर इससे किसानों को राहत राशि नहीं मिलने वाली, इसके लिए सर्वे की रिपोर्ट जरूरी है, जो गिरदावरी के बिना नहीं हो सकती। गुना के कृषि उपसंचालक अशोक उपाध्याय ने कहा कि नजरिया सर्वे अलग होता है, पर जब मुआवजा देने की बात होती है तो हर किसान का डिटेल सर्वे होता है। वहीं मुरैना के कृषि उपसंचालक एबी सड़ैया ने बताया कि जिले में 17 गांव में 154 हेक्टेयर फसल प्रभावित हुई थी, जिसकी सर्वे रिपोर्ट तैयार कर भोपाल भेजी जा चुकी है।
देरी का यह भी एक कारण: आपको जानकर आश्चर्य होगा कि किसानों को बीमा की 25% और राहत राशि मिलने में हो रही देरी के पीछे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की एक अजीबोगरीब चाहत भी है। एक अधिकारी ने खुद इस बात को स्वीकार किया है। ग्वालियर कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह का कहना है कि डबरा से राहत राशि के 2 बिल बन गए थे, लेकिन उन्हें इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि सीएम वन क्लिक में पूरी राशि प्रदेश के किसानों को एक साथ भेजना चाहते हैं, इसलिए सभी बिलों को एक साथ भेजा जाएगा। ग्वालियर कलेक्टर के अनुसार ग्वालियर में 10 हजार हेक्टेयर पर 23 करोड़ की फसल का नुकसान हुआ है, जिसमें 15 हजार से ज्यादा किसान प्रभावित हुए हैं।
सीएम के किए वादे और उसकी हकीकत: ओलावृष्टि के बाद प्रदेश में हुए फसल नुकसान को देखने सीएम शिवराज सिंह चौहान ने दौरा किया। अपने दौरे में मुंगावली पहुंचे सीएम शिवराज ने किसानों से क्या-क्या वादे किए और उन वादों की जमीनी हकीकत क्या है, अब हम आपको वह बताते हैं...
वादा-1: 18 जनवरी तक सर्वे पूरा, पंचायत में चस्पा होगी सूची: शिवराज ने मंच से घोषणा की थी कि 18 जनवरी तक सर्वे पूरा होकर पंचायत में सर्वे की सूची लगाई जाएगी। हकीकत यह है कि कृषि मंत्री कमल पटेल की विधानसभा हरदा में ही हीलाहवाली हुई। इसके बाद भारतीय किसान संघ ने आंदोलन की चेतावनी दी। किसान नेता केदार सिरोही का आरोप है कि हरदा विधानसभा की किसी भी पंचायत में सर्वे की सूची लगाई ही नहीं की गई।
वादा-2: 25 जनवरी के बाद राहत राशि देने कर देंगे शुरू: शिवराज ने यह भी घोषणा की थी कि सर्वे सूची की आपत्ति का समाधान 25 जनवरी तक कर राहत राशि देना शुरू कर देंगे। 50% से ज्यादा जो नुकसान हुआ, उस पर किसानों को 30 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर राशि देंगे। इधर, हरदा जिले के टेमगांव के किसान गणेश पटेल का कहना है कि हरदा जिला आपदा जिला घोषित होने के बाद भी कोई राशि अब तक किसानों को नहीं मिली।
वादा-3: जनवरी के महीने में ही पिछले साल के बीमे की राशि देंगे: शिवराज ने कहा था कि उन्होंने बीमा कंपनी को अल्टीमेटम दिया है कि किसानों के लिए मुश्किल की घड़ी है। जनवरी में ही पिछले साल के बीमे की राशि किसानों को हर हाल में दें। जबकि यह राशि किसानों को अब तक नहीं मिली है। किसान नेता केदार सिरोही ने कहा कि सरकार किसानों को मूर्ख बनाने में लगी है, पिछले साल की बीमा राशि के लिए हर बार सिर्फ तारीख पर तारीख दे रही है।
25% बीमा राशि तुरंत: ओलावृष्टि और अतिवृष्टि से हुए फसल नुकसान के बाद कृषि मंत्री कमल पटेल ने भोपाल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था- ‘अधिकारियों को 24 घंटे के अंदर सर्वे कर 72 घंटे में बीमा कंपनी को सूचित करने के लिए कहा है। 72 घंटे बाद जैसे ही इसे अधिसूचित कर देते हैं तो बीमा कंपनी से 25% राशि तुरंत देकर किसानों को राहत देने का काम किया जाएगा।’ लेकिन ऐसा 22 दिन बाद भी नहीं हो सका। किसान जागृति संगठन के संस्थापक इरफान जाफरी ने कहा कि सीएम के हाथ में था 72 घंटे के अंदर किसानों को राहत राशि देना, पर उन्होंने वो किया नहीं। अधिकारी ऑफिस में बैठकर रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। पेंसिल से पंचानामा बनाया जा रहा है, ताकि बाद में सरकार की मंशानुसार उसे कम ज्यादा किया जा सके।
साहब! प्रदेश का किसान रो रहा है...: एक ओर प्रदेश का किसान खून-पसीने की फसल चौपट होने के बाद बिलख-बिलखकर रो रहा है। उसकी पीड़ा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह राहत राशि पाने के लिए जनप्रतिनिधि और अधिकारी के पैरों तक में गिरकर गिड़गिड़ा रहा है। दूसरी ओर, अधिकारियों के पास इस मुद्दे पर बात करने की फुर्सत नहीं है। अतिवृष्टि और ओलावृष्टि से हुए फसल के नुकसान की रिपोर्ट तैयार करने का जिम्मा राजस्व विभाग का है। इनकी रिपोर्ट के बिना किसानों को ना तो बीमा की राशि मिल सकती है और ना ही राहत राशि। द सूत्र ने फसल नुकसान की रिपोर्ट सबमिट में हो रही देरी के संबंध में जब राजस्व विभाग के सचिव चंद्रशेखर वालिम्बे से संपर्क किया तो उन्होंने सवाल सुनते ही फोन काट दिया। इसके बाद ना तो फोन रिसीव किया और न ही मैसेज का जवाब दिया। यहां द सूत्र वालिम्बे को बताना चाहता है कि ये किसी की व्यक्तिगत समस्या नहीं, प्रदेश के हजारों हजार किसान की पीड़ा है, जिसका आपको जवाब देना ही होगा। यह आपकी ड्यूटी है और आप इस तरह का रवैया अपनाकर बच नहीं सकते।
(इनपुट: ग्वालियर से मनोज चौबे, गुना से नवीन मोदी और मुरैना से गिरिराज शर्मा)