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Indore. मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लि. (MPPKVVCL) ने अपने यहां हुए लाखों-करोड़ों के कथित घपले की जो जांच शुरू की थी वो अब जांच बैठाने वालों के लिए जिंदा सर्प की तरह गले में लिपट गई है। मामले में जहां कई जगह घपले पकड़ में आ रहे हैं, वहीं कुछ मामलों में जांच बैठाने वाले अफसर भी लपेटे में आ रहे हैं। जांच के दायरे में आए कुछ पीड़ित अफसर ठोस तर्कों के साथ न केवल जांच पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं बल्कि एक-दो ने तो अपने बचाव में ऐसी ऑडियो सीडी लगा दी हैं, जिसमें अफसर और अन्य कंपनी प्रतिनिधि के बीच 'लेनदेन' की बातचीत है। अब कंपनी के कर्ता-धर्ता शांति और संतुलन की ऐसी राह तलाश रहे हैं जिसमें जांच पूरी भी हो जाए और ज्यादा नुकसान भी न हो। चूँकि घपले का हल्ला भोपाल और दिल्ली तक हो गया है लिहाजा जांच को एकदम "घड़ी" भी नहीं कर सकते। हौले-हौले खिसका रहे हैं अभी तो।
इस योजना में बताया जा रहा है घोटाला
केंद्र सरकार ( Central Government) के उर्जा मंत्रालय ने शहरी क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम (IPDS) लागू की थी। इसमें पूरे कंपनी क्षेत्र के लिए 530 करोड़ रुपए मंजूर हुए थे जिसमें अकेले इदौर जिले को 230 करोड़ मिले थे। इससे बिजली कंपनी द्वारा पोल, केबल, कंडक्टर आदि को दुरुस्त करने जैसे काम होना थे। इस काम के लिए निजी क्षेत्र की कंपनियों को टेंडर दिए गए थे। इन्हीं में से एक क्षेमा पावर कंपनी भी थी। प्रोजेक्ट तो तीन-चार साल तक चलता रहा लेकिन करीब डेढ़ साल पहले अचानक इसमें घपलों की हलचल सुनाई देने लगी। शिकवा-शिकायतों का दौर चला तो बिजली कंपनी के उच्च अधिकारियों ने सारे काम की जांच के लिए कमेटी बना दी। काम से 'जाने-अनजाने' में जुड़े रहे 27 वर्तमान और पूर्व अफसरों को भी जांच के दायरे में लेकर नोटिस दिए गए हैं। मामले में एडवोकेट अभिजीत पांडेय ने मेहनत कर दस्तावेज जुटाए और उन्होंने ही मामले का भंडाफोड़ कर कई स्तरों पर शिकायत की तब जांच शुरू हुई। पहले तो अफसर इसे दबाने में लगे थे।
यह आरोप लगे हैं
-काम हुआ नहीं और बिल पास हो गए।
-योजना की सामग्री निजी ठेकेदारों को बेच दी गई।
-अधूरे काम का पूरा भुगतान कर दिया
-जो कॉलोनी बिजली कंपनी के अधीन नहीं वहां भी बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए काम कर दिया। ऐसा कई शहरों में हुआ।
इन सवालों से आ रही है जाँच पर आँच
-जांच के जवाब में कुछ अफसरों की ऑडियो सीडी लगा दी गई है। एक में अफसर और कंपनी वाले के बीच कमीशन की बातचीत हो रही है। दूसरी सीडी में एक अफसर दूसरे से निजी काम के लिए रुपए की मांग कर रहे हैं। आरोप है कि अफसरी की आड़ में रुपया लौटाया नहीं गया (हालांकि 'द सूत्र' इन सीडी की पुष्टि नहीं करता)।
-जिन 27 अफसरों को घेरे में लिया गया है उनमें से कई ऐसे भी हैं जिनके पास काम का सीधा प्रभार भी नहीं था। अब वे जांच अफसरों से ही सवाल कर रहे हैं कि जब काम की जिम्मेदारी नहीं दी थी तो घपले का जिम्मेदार कैसे मान रहे हैं।
-कुछ छोटे अफसरों की जांच इसलिए हो रही है क्योंकि उन्होंने कंपनी के बिल पास किए। आरोप लगा है कि आपके पास बिल पास करने के अधिकार नहीं थे। अब जांच अधिकारी पर
सवाल हो रहे हैं कि अनधिकृत व्यक्ति के हस्ताक्षर देखकर बिल रोके क्यों नहीं । मतलब आप भी बराबरी के दोषी हैं। -काम तो तीन--तीन कंपनियों ने किया, सिर्फ उसकी जांच क्यों बैठी जिसकी सीडी लीक हुई।
सेवानिवृत भी घिरे, अफसरों में फूट
जिन 27 अफसरों को जांच के दायरे में लिया गया है उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो रिटायर होकर घर बैठ गए थे, उन्हें भी नोटिस देकर जवाब मांगा जा रहा है। वे भी कंपनी के मुख्यालय में आवा-जाही कर रहे हैं। मामले में छोटे-बड़े अफसरों में भी द्वंद्व छिड़ गया है। कई छोटे अफसरों ने कह दिया है कि हमने तो बड़ों के कहने पर बिल पर हस्ताक्षर किए। मामले में ईओडब्ल्यू ने
भी जांच शुरू की थी।