Bhopal.
द सूत्र का सूत्र वाक्य है कि हम सवाल उठाते हैं पालकी नहीं..हम केवल भगवान से डरते हैं किसी और से नहीं..और इस टैग लाइन को द सूत्र में काम करने वाला हर शख्स जीता है। ये केवल हवा हवाई बातें नहीं बल्कि आज जो खबर हम बताने जा रहे हैं वो इस बात का ठोस सबूत है। रायसेन जिले के खाद्य और आपूर्ति विभाग के प्रभारी विवेक रंगारी ने अपने पद का दुरूपयोग किया है..जब द सूत्र को ये पता चला तो द सूत्र की टीम ने इस खबर को कवर किया..इस दौरान रिपोर्टर राहुल शर्मा को विवेक रंगारी ने 50 हजार रु. रिश्वत की पेशकश की.. वो भी इसलिए कि द सूत्र इस खबर को प्रसारित ना करें..। पूरा घटनाक्रम हम आपको बताएंगे, पर पहले यह जानिए कि आखिर रिश्वत का आफर दिया ही क्यों जा रहा था। दरअसल द सूत्र की टीम को विवेक रंगारी के खिलाफ दो शिकायतें मिली थी। पहली तो ये कि विवेक रंगारी ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए पत्नी के नाम से सिलवानी में वेयर हाउस बनवाया है और दूसरी ये कि रंगारी ने अपनी पर्सनल गाड़ी जो पत्नी के नाम पर ही है, को दफ्तर में अटैच कर ली.. दोनों मामले सिविल सेवा आचरण के नियम के खिलाफ है.. इन दोनों मामलों की पड़ताल द सूत्र ने की।
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सिलवानी के पास पत्नी के नाम पर वेयरहाउस
रायसेन जिले के सिलवानी के कीरतपुर गांव में मेन रोड पर ही कनक वेयरहाउस है। ये वो वेयरहाउस है जो रायसेन के खाद्य आपूर्ति विभाग के जिला प्रबंधक विवेक रंगारी की पत्नी सपना के नाम से दस्तावेजों में दर्ज है। बकायदा खसरे के दस्तावेज में सपना विवेक रंगारी नाम लिखा हुआ है। जब द सूत्र की टीम वेयरहाउस में दाखिल हुई तो ये 80 फीसदी तक भरा हुआ था और पिछले डेढ़ साल से खाली ही नहीं हुआ। इस बारे में ही विवेक रंगारी से उनका पक्ष जानना चाहते थे, लेकिन रंगारी ने कैमरे के सामने तो कुछ नहीं कहा लेकिन खुफिया कैमरे में कहते नजर आए कि बकायदा इसकी परमिशन कलेक्टर और फिर विभाग से ली गई है।
पत्नी के नाम गाड़ी को खुद के विभाग में किया अटैच
इसके बाद दूसरी शिकायत थी कि रंगारी ने अपनी इस गाड़ी जिसका नंबर है.. MP04 CW 0610 है वो खाद्य एवं आपूर्ति निगम में ही अटैच कर दी है.. ये गाड़ी भी पत्नी के नाम से खरीदी गई है.. जबकि नियम ये कहता है कि.. सरकारी विभाग में टैक्सी परमिट गाड़ियां ही अटैच करने की पात्रता है, जिनकी नंबर प्लेट पीले रंग की होती है.. लेकिन इस गाड़ी की नंबर प्लेट तो सफेद है.. पांच साल पहले रंगारी ने ये गाड़ी खरीदी थी.. और पांच साल से ये विभाग में अटैच है.. इस तरह से रंगारी ने विभाग के पैसों से ही गाड़ी का लोन चुका दिया.. इस बारे में रंगारी ने कहा कि ये गाड़ी ट्रैवल एजेंसी के जरिए अटैच की गई है।
कर्मचारी के हाथों 500 के नोट की गड्डी देने की कोशिश
द सूत्र की टीम इन्हीं मुद्दों को लेकर विवेक रंगारी का पक्ष जानने मंगलवार 31 मई को रायसेन स्थित उनके दफ्तर पहुंची थी। पर रंगारी ने ऑन कैमरा अपना पक्ष देने से इंकार कर दिया। इसके बाद बार बार उन्होंने रिपोर्टर से पूछा कि क्या चाहते हैं...ये बताएं...द सूत्र ने कहा कि केवल पक्ष जानना चाहते हैं और कुछ नहीं जानना चाहते। इसके बाद द सूत्र की टीम ने कहा कि ठीक है यदि आप ऑन कैमरा अपना पक्ष नहीं रखना चाहते तो हम चलते हैं... इसके बाद रंगारी ने कहा कि बैठ जाइए.. पांच दस मिनट वेट कीजिए। रंगारी फिर कैबिन से बाहर निकल गए.. कुछ देर बाद लौटे.. और उन्होंने कहा कि शिवम से मिल लीजिए.. शिवम रंगारी के दफ्तर का कर्मचारी है... कैबिन के बाहर शिवम मिला.... शिवम ने द सूत्र से पूछा कि क्या चाहते हो... आप जो चाहते हो उसका पूरा सम्मान रखा जाएगा। द सूत्र ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया.. इसके बाद शिवम ने कहा कि इंतजार करें... कुछ देर बाद शिवम लौटा और उसके हाथ में था सफेद कलर का लिफाफा और शिवम ने बगैर किसी लाग लपेट के ये लिफाफा द सूत्र संवाददाता राहुल शर्मा के हाथ थमा दिया। शिवम ने ये भी कहा कि इसमें 50 हजार है। द सूत्र संवाददाता राहुल शर्मा ने लिफाफा लिया और उसे खोला ताकि सबूत सामने आए कि रिश्वत की पेशकश की गई है.. और ये पूरा लेन देन कैमरे में कैद हो जाए.. इसके बाद राहुल शर्मा ने लिफाफा शिवम को सौंप दिया और कहा कि वो विवेक रंगारी से बात करेंगे.. विवेक रंगारी से कहा कि द सूत्र इस तरह से खबर रूकवाने के लिए रिश्वत का लेन देन नहीं करता.. लेकिन रंगारी कहते नजर आए कि ये अधिकार के रूप में देना चाह रहे हैं। इसके बाद भी रंगारी की बातें जब द सूत्र ने नहीं मानी और सीधे दफ्तर से टीम बाहर निकल आई... क्योंकि खबर के साथ विश्वासघात करना द सूत्र का सूत्र वाक्य नहीं है।
सिविल सेवा आचरण अधिनियम 1965 का है उल्लंघन
अब सवाल है कि एक सरकारी अधिकारी क्या इस तरह से अपने पद का दुरूपयोग कर वेयरहाउस बना सकता है या फिर गाड़ी अटैच कर सकता है.. इस मामले में द सूत्र ने बात की रिटायर्ड आईएएस अधिकारी मुकेश वार्ष्णेय से..उनका साफ कहना है कि सिविल सेवा आचरण अधिनियम 1965 के नियम 4 के बिंदु 3 का खुला उल्लंघन है.. क्योंकि विवेक रंगारी के वेयरहाउस में एफसीआई का गेहूं भरा है जो सीधा सीधा सिविल सेवा नियम का उल्लंघन है। दूसरी तरफ विवेक रंगारी ने जो गाड़ी अटैच की वो तो सीधा सीधा नियमों का उल्लंघन है।
मंत्री की अनुशंसा पर भी कार्रवाई नहीं
इस मामले में द सूत्र ने नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष प्रद्युम्न सिंह लोधी से बातचीत की तो पहले तो वो वेयरहाउस को जायज ठहराते नजर आए लेकिन द सूत्र ने कुछ नैतिक सवाल किए तो कहा कि शिकायत मिल जाएगी तो कार्रवाई करेंगे। वैसे आपको बता दें कि विवेक रंगारी के खिलाफ पहले भी गड़बड़ी की शिकायतें हुई है और तत्कालीन खाद्य मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने भी कार्रवाई की अनुशंसा की थी..लेकिन हुआ कुछ नहीं। शिकायत 7 बिंदुओं पर की गई थी, जिनमें होशंगाबाद, रायसेन और झाबुआ में रहते हुए रंगारी पर गंभीर वित्तीय आरोप लगाए गए थे।
द सूत्र के सवाल....
1.जिस शख्स पर लापरवाही और गड़बड़ी के आरोप है उसे जिला प्रबंधक का प्रभार देने की क्या जरूरत है?
2. रंगारी की गाड़ी विभाग में अटैच कैसे हुई, किसने टेंडर पास किया?
3. टैक्सी परमिट की गाड़ी नहीं है तो बिल कैसे पास होते रहे?
4. वेयरहाउस के लिए भले ही परमिशन ली गई, पर वेयरहाउस को भरने और उठाव करते समय रंगारी फैसले लेते वक्त निष्पक्ष कैसे हो सकते हैं?
5. मंत्री की अनुशंसा के बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
क्या सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को प्राइवेट कारोबार करने की इजाजत दे दी!
सबसे बड़ी बात ये है कि नान के अध्यक्ष प्रद्युम्न सिंह लोधी कहते है कि कोई भी वेयरहाउस खोल सकता है, चाहे वो सरकारी कर्मचारी ही क्यों ना हो.. तो फिर सीएमएचओ को तो अस्पताल खोल लेना चाहिए..जिला शिक्षा अधिकारी को स्कूल खोल लेना चाहिए, पीडब्लूडी का अधिकारी खुद ही ठेकेदार बन जाए..क्या यह व्यवस्था सही होगी। एमपी वाकई में अजब—गजब ही है।