अंकुश मौर्य, BHOPAL. मध्यप्रदेश के मेडिकल कॉलेजों से संबंद्ध अस्पतालों में कैंसर पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए लीनियर एक्सीलेटर मशीन लगाने की योजना कागजों में ही चल रही है। कैबिनेट में प्रस्ताव पास होने के बावजूद सरकार का दावा जमीन पर फेल नजर आता है। कम कीमत में रेडिएशन थेरेपी के जरिए कैंसर पीड़ितों के इलाज की योजना 4 साल से लंबित है। अगस्त 2018 में शिवराज सरकार पहली बार प्रस्ताव लेकर आई थी। लेकिन प्रस्ताव को कैबिनेट तक पहुंचने में साढ़े तीन साल का वक्त बीत गया। जनवरी 2022 में कैबिनेट ने भोपाल, रीवा और इंदौर में पीपीपी मोड में लीनियर एक्सीलेटर लगाने का प्रस्ताव पास किया। लेकिन 7 महीने में मशीनें लगाने की एजेंसी ही तय नहीं हो पाई है। चिकित्सा शिक्षा विभाग टेंडर प्रक्रिया में ही उलझा हुआ है।
हर स्टेज में जरूरी है रेडिएशन थैरेपी
रेडिएशन थेरेपी या रेडियोथेरेपी को आम बोलचाल की भाषा में सिकाई कहा जाता है। इस थेरेपी का उपयोग कैंसर से पीड़ित मरीजों के लिए हर स्टेज में किया जा सकता है। विशेषज्ञ जरूरत के अनुसार रेडिएशन के जरिए कैंसर कोशिकाओं का इलाज करते हैं। प्राथमिक स्टेज से लेकर एडवांस स्टेज के कैंसर पीड़ित मरीजों के लिए सिकाई जरूरी होती है।
एमपी के सरकारी अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था ही नहीं
भोपाल एम्स को छोड़ दिया जाए तो मध्यप्रदेश के किसी भी सरकारी अस्पताल में रेडियोथैरेपी की एडवांस तकनीक यानी लीनियर एक्सीलेटर से इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। भोपाल और जबलपुर में कोबाल्ट मशीनों के जरिए रेडियोथेरेपी दी जाती थी। भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध हमीदिया अस्पताल में बीते तीन साल से कोबाल्ट मशीन बंद पड़ी है।
हर साल 55 फीसदी कैंसर मरीजों की मौत
लोकसभा में एक सवाल के जवाब में पेश किए गए आंकड़े चौंकाने वाले हैं। साल 2018 से 2020 तक तीन सालों में प्रदेश में कैंसर के करीब 2 लाख 27 हजार 776 मरीज मिले, इनमें से 55 फीसदी यानी 1 लाख 25 हजार 640 कैंसर के मरीजों की मौत हो गई।
साल मरीज मौतें
2018 73957 40798
2019 75911 41876
2020 77888 42966
कुल 227756 125640
80 फीसदी कैंसर पीड़ितों को होती है सिकाई की जरूरत
प्राइवेट अस्पतालों में रेडियोथेरेपी का खर्च 1.5 से लेकर 2 लाख रुपए तक आता है। कैंसर विशेषज्ञ डॉ. ओपी सिंह के मुताबिक 80 फीसदी मरीजों को सिकाई की जरूरत होती है। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर कैंसर पीड़ित समय पर इलाज नहीं करा पाता। यही वजह है कि कैंसर पीड़ितों की मौत के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं।
टेंडर प्रक्रिया में ही उलझी लीनियर एक्सीलेटर
कैबिनेट में रीवा, भोपाल और इंदौर में लीनियर एक्सीलेटर लगाने का प्रस्ताव पास होने के बाद मशीनें लगाने की जिम्मेदारी चिकित्सा शिक्षा विभाग की थी। लेकिन विभाग ने टेंडर के नियम और शर्तें बनाने में ही 6 महीने का समय गुजार दिया। जिसके बाद अब मामला मध्यप्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विस कार्पोरेशन के पास लंबित है। कार्पोरेशन के एमडी डॉ. सुदाम खाड़े के मुताबिक टेंडर प्रक्रिया चल रही है। जल्द ही एजेंसी तय कर दी जाएगी। बता दें कि तीन मेडिकल कॉलेजों में लीनियर एक्सीलेटर मशीन पीपीपी मोड पर लगाई जानी है। प्राइवेट फर्म मशीन लगाने और संचालन का काम करेगी।
8 महीने तो बंकर बनाने में लगेंगे
लीनियर एक्सीलेटर मशीन, बंकरनुमा इमारत में लगाई जाती है। जिसे बनाने में ही 6 से 8 महीने का वक्त लगेगा। एमडी डॉ. सुदाम खाड़े के मुताबिक टेंडर लेने वाली फर्म ही बंकर बनाएगी और उसके बाद मशीन इंस्टाल करेगी। यानी आज से भी काम अपनी सही रफ्तार से चले तो 1 साल बाद ही मरीजों को रेडियोथेरेपी की सुविधा मिल पाएगी।
क्यों जरुरी है लीनियर एक्सीलेटर
चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कोबाल्ट मशीन से कैंसर ट्यूमर के क्षेत्र से एक-दो सेंटीमीटर अधिक क्षेत्र में रेडिएशन दिया जाता है, जिसके कारण स्वस्थ कोशिकाएं भी प्रभावित होती हैं। मरीज को कमजोरी, खून की कमी, सूजन जैसी समस्या होती है। कई मरीज इलाज अधूरा छोड़ देते हैं, जबकि लीनियर एक्सीलेटर कैंसर उपचार के लिए आधुनिक तकनीक का उपकरण है।
लीनियर एक्सीलरेटर से ऐसे होता है इलाज
लीनियर एक्सीलरेटर से सीधे कैंसर ट्यूमर वाले हिस्से पर रेडिएशन डाला जाता है, जो दूसरे सेल को खत्म करने के बजाय केवल कैंसर सेल को खत्म करता है। इसमें दूसरी मशीनों के मुकाबले ज्यादा रेडिएशन निकलता है। इसी कारण इसे चलाने के दौरान रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट का होना जरूरी है।
ट्रेनिंग के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल भेजा जाता है
कैबिनेट प्रस्ताव में कहा गया कि मेडिकल स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग के लिए अभी प्राइवेट हॉस्पिटल में भेजा जाता है। इन मशीनों को खरीदने में 105 करोड़ और संचालन में 146 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। इसे देखते हुए प्रस्तावित किया है कि उपकरण खरीदने, संचालन और संधारण का काम प्राइवेट संस्था करेगी। ये संस्था सुबह 8 से शाम 5 बजे तक कॉलेज द्वारा भेजे जाने वाले मरीजों का इलाज प्राथमिकता से करेगी। इसका खर्च मेडिकल कॉलेज वहन करेगा। संस्था हर महीने मरीजों की संख्या के आधार पर बिल बनाकर मेडिकल कॉलेज को भेजेगी। वहां से पेमेंट किया जाएगा।