महाराजा छत्रसाल : तलवार के साथ कलम के धनी एक पराक्रमी योद्धा

author-image
Arun Singh
एडिट
New Update
महाराजा छत्रसाल : तलवार के साथ कलम के धनी एक पराक्रमी योद्धा

panna. इतिहास में ऐसे कई नाम हैं जिनकी गौरव गाथा को वह स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं। ऐसे नामों में सबसे प्रमुख एक नाम बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल (Maharaja Chhatrasal) का भी है। भारतीय इतिहासकारों ने बहुमुखी प्रतिभा के धनी इस अप्रतिम योद्धा के व्यक्तित्व को जनमानस के सामने लाने में कोताही की है, न्याय नहीं किया। यही वजह है कि जीवन भर मुगलों से संघर्ष करते हुए विजय पताका फहराने वाले महापराक्रमी योद्धा को इतिहास में वह स्थान नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिए।



22 साल की उम्र में मुगलों से लोहा लिया



छत्रसाल मध्ययुग के भारतीय इतिहास का वह नाम है जिसकी बहादुरी, रणकौशल और बुद्धिमत्ता से मुगल बादशाह औरंगजेब भी खौफ खाते थे। तलवार के साथ-साथ कलम के भी धनी रहे इस पराक्रमी योद्धा को गुरिल्ला युद्ध (Guerrilla War) में महारत हासिल थी। उन्होंने पन्ना (Panna) के जंगलों में एक छोटी सेना खड़ी की और मुगलों के अन्याय व अत्याचार के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंका। महज 22 साल की उम्र में छत्रसाल ने 5 घुड़सवारों व 25 पैदल सैनिकों की टुकड़ी के साथ मुगलों की सुसज्जित सेना से लोहा लिया और उनको पराजित किया।



बुंदेलों के बारे में कहा जाता है कि बुंदेला अपनी आन पर मरते थे और शान से जीते थे। बुंदेल वंश (Bundela Dynasty) में ही एक वीर और प्रतापी योद्धा हुए चंपतराय, जिन्होंने तत्कालीन मुगल सत्ता (Mughal Raj) के दमनकारी चक्र का बुंदेलखंड (Bundelkhand) में विरोध का स्वर बुलंद किया। छत्रसाल इन्हीं के पुत्र थे, जिनका जन्म जेष्ठ सुदी तीज संवत 1706 में मुगलों से संघर्ष के दौरान ही मोर पहाड़ी में तोप, तलवार और रक्त प्रवाह के बीच हुआ था। छत्रसाल की माता का नाम लालकुंवरी था। चंपतराय की मृत्यु के बाद छत्रसाल ने जंगलों में रहकर फौज तैयार कर पन्ना राज की स्थापना की। पन्ना राज्य में कुल 14 राजाओं ने शासन किया। बुंदेल केसरी के नाम से विख्यात महाराजा छत्रसाल के विशाल साम्राज्य बावत यह पंक्तियां कही जाती हैं 



इत यमुना, उत नर्मदा, इत चंबल, उत टोंस। 

छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस।।



स्वतंत्र राज्य स्थापना हेतु छत्रपति शिवाजी ने दी थी प्रेरणा



उस समय मुगलों से लोहा लेने वाले शासकों में छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati Shivaji) का नाम प्रमुख है। राष्ट्रीयता के आकाश में छत्रपति का सितारा चमचमा रहा था। सन 1668 में छत्रसाल व छत्रपति शिवाजी की भेंट होती है। इन दो पराक्रमी योद्धाओं की जब मुलाकात हुई, तो छत्रपति शिवाजी उनसे काफी प्रभावित हुए क्योंकि छत्रसाल अपनी मातृभूमि के लिए मुगलों से लड़ना चाहते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज ने छत्रसाल के पराक्रम व संकल्प शक्ति को देखकर उन्हें स्वतंत्र राज्य की स्थापना की मंत्रणा दी। शिवाजी से स्वराज का मंत्र लेकर छत्रसाल 1670 में वापस अपनी मातृभूमि लौट आए। उस समय बुंदेलखंड के हालात ठीक नहीं थे, ज्यादातर राजा मुगलों से बैर नहीं रखना चाहते थे। जाहिर है कि छत्रसाल को कहीं से मदद व साथ नहीं मिला। लेकिन छत्रसाल पीछे नहीं हटे, उन्होंने मुगलों के खिलाफ अपना अभियान जारी रखा।



छत्रसाल के राज्य में नहीं था कोई भेदभाव



महाराजा छत्रसाल हर जाति और वर्ग के लोगों को बराबर महत्व देते थे। किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करते थे। उनकी सेना में मुसलमान भी थे और हिंदुओं की विभिन्न जातियों के लोग कंधे से कंधा मिलाकर मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ते थे। छत्रसाल ने अपने वीर सेनानियों को बिना किसी भेदभाव के जागीरें प्रदान की। उन्होंने बुंदेलखंड के बड़े भू-भाग को मुगलों की दासता से मुक्त कराया। स्वयं कष्ट उठाकर वे प्रजा के प्रति समर्पित रहे और सही अर्थों में प्रजापालक बने। उनके द्वारा दी गई यह शिक्षा आज भी प्रासंगिक है- 



रैयत सब राजी रहे, ताजी रहे सिपाह। 

छत्रसाल तिन राज्य को, बाल न बांको जाए।।



52 लड़ाइयां लड़ी, किसी में नहीं हुई हार



अपने जीवन काल में छत्रसाल 52 लड़ाइयां लड़ी और किसी भी लड़ाई में उनकी हार नहीं हुई। प्रणामी संप्रदाय के धर्मोपदेशक पंडित खेमराज शर्मा बताते हैं कि लड़ाई में विजय हासिल होने पर चोपड़ा मंदिर के आसपास चोपड़ा का निर्माण कराया जाता रहा है। इस तरह 52 लड़ाइयों की जीत पर यहां 52 चौपड़ों का निर्माण हुआ, जिनमें कई चोपड़ा आज भी मौजूद हैं। श्री शर्मा बताते हैं कि छत्रसाल तलवार और कलम दोनों के धनी थे, इतिहासकार भले ही उनके अनूठे व्यक्तित्व के प्रति न्याय नहीं कर पाए लेकिन साहित्यकार हमेशा उनसे प्रेरणा पाते रहे हैं। उन्होंने उस समय प्रचलित लगभग सभी छंदों में काव्य का सृजन किया है।



महामति प्राणनाथ जी से मिला था आशीर्वाद



प्रणामी धर्म के प्रणेता महामति प्राणनाथ जी से जब छत्रसाल की भेंट हुई, तो उन्होंने छत्रसाल के पराक्रम व प्रतिभा को पहचाना और अपना आशीर्वाद प्रदान किया। पन्ना शहर के निकट खेजड़ा मंदिर के पास महामति प्राणनाथ जी ने छत्रसाल को एक चमत्कारी तलवार भी भेंट की थी, उन्हीं के कहने पर छत्रसाल ने पन्ना को अपनी राजधानी बनाया। उन्होंने छत्रसाल को वरदान दिया था कि "हीरे हमेशा आपके राज्य में पाए जाएंगे"। प्राणनाथ जी ने ही छत्रसाल को महाराजा की उपाधि प्रदान की थी। विदुषी श्रीमती कृष्णा शर्मा बताती हैं कि प्रणामी मंदिरों में पांच आरती होती हैं तथा आरती के पहले छत्रसाल का जयकारा होता है। हर मंदिर में यह परंपरा आज भी कायम है। 

 


Bundelkhandas Mughal Raj Bundela Dynasty Guerrilla War Maharaja Chhatrasal Panna Chhatrapati Shivaji छत्रपति शिवाजी बुंदेलखंडस मुगल राज बुंदेल वंश गुरिल्ला युद्ध महाराजा छत्रसाल पन्ना