धरती फाड़कर प्रकट हुए थे महाकाल, यहां हैं अष्टमुखी महादेव, जानें MP के 7 मंदिर

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Atul Tiwari
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धरती फाड़कर प्रकट हुए थे महाकाल, यहां हैं अष्टमुखी महादेव, जानें MP के 7 मंदिर

भोपाल. आज यानी 1 मार्च को देश में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है। मध्य प्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग (महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर) के अलावा कई प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं, उनकी अपनी कहानियां भी हैं। महाशिवरात्रि पर्व के मौके पर हम आपको प्रदेश के 7 मंदिरों के बारे में बता जा रहे हैं...  





1. महाकालेश्वर: पुराणों के अनुसार, अवंतिका नगरी (उज्जैन) भगवान शिव को बहुत प्रिय थी। एक समय अवंतिका में एक ब्राह्मण रहता था। उनके चार बेटे थे। दूषण राक्षस ने अवंतिका में आतंक मचाया हुआ था। राक्षस के आतंक से बचने के लिए ब्राह्मण ने भगवान शिव की आराधना की। ब्राह्मण की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव धरती फाड़कर महाकाल के रूप में यहां प्रकट हुए और राक्षस का वध करके नगर की रक्षा की। भक्तों ने भगवान शिव से उसी स्थान पर हमेशा रहने की प्रार्थना की। भक्तों के आग्रह पर भगवान शिव अवंतिका में ही महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।





Mahakaal





बाबा महाकाल की एक अन्य कथा ये भी मिलती है कि प्राचीन काल में उज्जियनी में राजा चंद्रसेन का शासन था। वे परम शिवभक्त थे। एक दिन 5 साल का गोप बालक श्रीकर अपनी मां के साथ वहां से गुजर रहा था, जब राजा शिव पूजन कर रहे थे। उस पूजन को देखकर श्रीकर को काफी आश्चर्य हुआ। वो खुद उसी प्रकार की सामग्रियों से शिव पूजा करने के लिए लालायित हो उठा। सामग्री ना जुट पाने पर उसने रास्ते से पत्थर उठा लिया और घर लाकर उसे शिव रूप में स्थापित कर पुष्प-चंदन से उसकी पूजा करने लगा। 





मां श्रीकर को भोजन के लिए बुलाने आई, लेकिन उसने पूछा नहीं छोड़ी। आखिर में मां ने झल्लाकर पत्थर का वो टुकड़ा उठाकर फेंक दिया। इससे दुखी होकर श्रीकर भगवान शिव को पुकारता हुआ रोने लगा। ऐसा रोया कि बेहोश होकर गिर गया। बालक की अपने प्रति ये भक्ति और प्रेम देखकर भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए। बालक जैसे ही होश में आया, उसने अपनी आंखें खोलीं तो देखा ही सामने बहुत ही भव्य और अतिविशाल स्वर्ण और रत्नों से बना मंदिर बन चुका है। उस मंदिर के अंदर प्रकाशपूर्ण, तेजस्वी, ज्योतिर्लिंग मौजूद है। बच्चा आनंद से विभोर होकर भगवान शिव की स्तुति करने लगा। मां को जब ये खबर मिली, तब दौड़कर उसने बेटे को गले से लगा लिया। राजा चंद्रसेन ने भी वहां पहुंचकर उस बच्चे की भक्ति की बड़ी सराहना की। धीरे-धीरे वहां बड़ी भीड़ जुट गई। इतने में उस स्थान पर हनुमान जी प्रकट हुए और कहा कि भगवान शंकर शीघ्र फल देने वाले देवताओं में सर्वप्रथम हैं। बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने इसे ऐसा फल प्रदान किया है, जो बड़े-बड़े ऋषि-मुनि करोड़ों जन्मों की तपस्या से भी प्राप्त नहीं कर पाते। इस गोप बालक की 8वीं पीढ़ी में धर्मात्मा नंद गोप का जन्म होगा। द्वापर युग में भगवान विष्णु कृष्णावतार लेकर उनके यहां लीलाएं करेंगे। इतना कहकर हनुमान अंतर्ध्यान हो गए। 





महाकाल के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक ऊपर एक अन्य कक्ष में ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर की मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।





2. मंदसौर के पशुपतिनाथ: ऐसी मान्यता है कि विश्व में केवल मंदसौर में ही एक मात्र अष्टमुखी शिवलिंग हैं। मंदसौर अति प्राचीन दशपुर नगरी है, लेकिन भूतभावन के नगर में प्रकट होने के बाद यह स्थल विश्वप्रसिद्ध हो गया। शिवना नदी की गोद में भगवान पशुपतिनाथ कब समाए और किस काल में प्रतिमा निर्माण हुआ, यह आज भी रहस्य है। जब से शिवना तट पर अष्टमुखी भगवान की प्रतिमा विराजित हुई, तब से यह स्थान धार्मिक स्थल के रूप में पहचाने जाने लगा। प्रतिमा के ऊपर के चार मुख शिव के बाल्यकाल, युवावस्था, अधेड़ावस्था, वृद्धावस्था को दिखाते हैं। 







Pashupatinath



मंदसौर का पशुपतिनाथ मंदिर शिवना नदी के तट पर है। बारिश में उफान पर आईं शिवना, शिव का जलाभिषेक करती हैं।







19 जून 1940 को शिवना नदी से इस अष्टमुखी शिवलिंग को निकाला गया। 21 साल तक भगवान पशुपतिनाथ की प्रतिमा नदी तट पर ही रखी रही। बताया जाता है कि शिवलिंग को सबसे पहले कालूजी धोबी के बेटी उदाजी ने शिवना में देखा था। लोगों का कहना है कि उदाजी धोबी इसी मूर्ति पर कपड़े धोते थे। उन्हें सपना आया कि जिस पत्थर पर वह कपड़े धोते हैं, वे स्वयं भगवान पशुपतिनाथ है। उदाजी ने बताया था कि उस स्थान की खुदाई करने के बाद भगवान की अष्टमुखी प्रतिमा मिली थी। शिवलिंग के आठों मुखों का नामकरण भगवान शिव के अष्ट तत्व के अनुसार किए गए हैं, 1- शर्व, 2- भव, 3- रुद्र, 4- उग्र, 5- भीम, 6- पशुपति, 7- ईशान और 8 महादेव। 





इतिहासकारों की माने तो इस शिवलिंग का निर्माण विक्रम संवत 575 ई. के आसपास सम्राट यशोधर्मन के काल में हुआ होगा, जिसे संभवत: मूर्तिभंजकों से बचाने के लिए इसे शिवना नदी में बहा दिया गया होगा। कलाकार ने प्रतिमा के ऊपर के चार मुख पूरी तरह बना दिए थे, जबकि नीचे के चार मुख निर्माणाधीन थे। मंदसौर के पशुपतिनाथ की तुलना काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ से की जाती है





3. ओंकारेश्वर: ये ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के खंडवा में है। यह नर्मदा नदी के बीच मान्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। यह द्वीप पवित्र प्रतीक ॐ के आकार में बना है। यहां दो मंदिर स्थित हैं, ओंकारेश्वर और ममलेश्वर। नर्मदा क्षेत्र में ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। मान्यता है कि कोई भी  भले ही सारे तीर्थ कर ले, लेकिन जब तक वह ओंकारेश्वर में सभी तीर्थों का जल लाकर नहीं चढ़ाता तो उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं। ओंकारेश्वर में नर्मदा जी का भी विशेष महत्व है। ममलेश्वर मंदिर अहिल्याबाई होल्कर का बनवाया हुआ है। यात्री चाहे तो पहले ममलेश्वर का दर्शन करके तब नर्मदा पार होकर ओंकारेश्वर जाए, लेकिन नियम पहले ओंकारेश्वर का दर्शन करके लौटते समय ममलेश्वर दर्शन का ही है।





4. चौरागढ़: कहा जाता है कि भगवान शिव ने सबसे पहले ने नादिया गांव में अपना नंदी छोड़ा था, जिससे भ्रमित होकर भस्मासुर उनको तलाशने  लिए यहां पहुंचा। इसके बाद भगवान शंकर चौरागढ़ पर्वत पर पहुंचे। यहां चौरा बाबा पहले से भगवान की तपस्या में लीन थे। भगवान शिव ने चौराबाबा को दर्शन देकर अपना त्रिशूल उनके पास छोड़ दिया। इसके बाद से चौराबाबा ने त्रिशूल की पूजा करना शुरू कर दिा। इसके बाद शिवरात्रि पर यहां त्रिशूल चढ़ाने की परंपरा बन गई। कहा जाता है कि चौरागढ़ में त्रिशूल चढ़ाने से मनोकामना पूर्ण होती है। महाशिवरात्रि पर यहां हजारों की तादाद में त्रिशूल चढ़ाए जाते हैं। एक किंवदंती यह भी है कि भस्मासुर से बचने के लिए भोलेनाथ ने चौरागढ़ की पहाड़ियों की शरण ली थी। यह मंदिर करीब 4200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।





यहां पर महाशिवरात्रि को मेला लगता है। 154 साल से चल रहे इस मेले में महाराष्ट्र (खासकर विदर्भ) के लोग प्रमुख रूप से पहुंचते हैं। कहते हैं पार्वती जी का मायका विदर्भ का था। इसलिए विदर्भ के लोग पार्वती जी को अपनी बहन और भगवान शंकर को अपना जीजा, भगवान गणेश को भांजा मानते हैं। 





5. जटाशंकर: ये मंदिर छतरपुर से 50 किलोमीटर दूर है। ये मंदिर गुफा में स्थित है। इस मंदिर पर तीन छोटे-छोटे जल कुंड हैं, जिनका जल कभी खत्म नहीं होता। विशेष बात यह है कि इन कुंडों के पानी का तापमान हमेशा मौसम के विपरीत होता है। ठंड में इनका पानी गर्म और गर्मी में ठंडा होता है। इन कुंडों का पानी कभी खराब भी नहीं होता। लोगों का मानना है कि यहां के पानी से स्नान करने से कई बीमारियां खत्म हो जाती हैं। यही कारण है कि जो भी श्रद्धालु यहां आता है, वह कुंड के पानी से स्नान जरूर करता है। लोग यहां के जल को अपने साथ घर भी ले जाते हैं





6. भोजपुर: भोजेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 30 किमी दूर भोजपुर गांव में है। इसे भोजपुर मंदिर भी कहते हैं। मंदिर बेतवा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वतमालाओं के बीच एक पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर का निर्माण और इसके शिवलिंग की स्थापना धार के परमार राजा भोज ने करवाई थी। उनके नाम पर ही इसे भोजपुर या भोजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। इसे उत्तर भारत का सोमनाथ भी कहा जाता है। इस मंदिर का शिवलिंग भारत के मन्दिरों में सबसे बड़ा है। यहां शिवलिंग की ऊंचाई करीब 22 फीट है। इस मंदिर का निर्माण कभी पूर्ण नहीं हो पाया। मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर एक ही रात में निर्मित होना था, लेकिन इसकी छत का काम पूरा होने के पहले ही सुबह हो गई, इसलिए काम अधूरा रह गया। 





7. कंदरिया महादेव मंदिर: ये मंदिर अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए जाना-जाता है। कंदरिया महादेव मंदिर मप्र के खजुराहो गांव में स्थित है। कंदारिया अर्थ गुफा होता है। इस मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है। खजुराहो के मंदिरों को करीब 1000 ईसवी में चंदेल शासकों ने बनवाया था। कंदरिया महादेव का निर्माण चंदेल शासक धंग ने करवाया था। यहां के मंदिर नागर शैली का उत्कृष्ट नमूना माने जाते हैं। मंदिरों में रतिक्रिया की कई मूर्तियां बनी हुई हैं, जिन्हें देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं।



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