नहीं रहे नईदुनिया को बेजोड़ बनाने वाले महेंद्र सेठिया

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Praveen Sharma
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नहीं रहे नईदुनिया को बेजोड़ बनाने वाले महेंद्र सेठिया

Bhopal. नईदुनिया इंदौर के आधार स्तंभ और इंदौर प्रेस क्लब के संस्थापक वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र सेठिया का गुरूवार 18 अगस्त को इंदौर में  निधन हो गया। 73 वर्षीय सेठिया लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके पिताजी स्व. बसंतीलाल सेठिया ने स्व.लाभचंद छजलानी के साथ नईदुनिया समाचार पत्र समूह की स्थापना की थी। अंतिम संस्कार 19 अगस्त को सुबह नौ बजे रीजनल पार्क मुक्तिधाम में होगा। उनके निधन पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शोक व्यक्त किया है। 





नईदुनिया को बेजोड़ और हिंदी का शब्दकोश का दर्जा दिलाने में महेंद्र सेठिया का भी अहम योगदान रहा है। बीते एक दशक से स्व. सेठिया शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय थे। इंदौर के सबसे प्रतिष्ठित स्कूल शिशु कुंज का संचालन वे कर रहे थे। इंदौर प्रेस क्लब के संस्थापक सदस्यों में भी स्व. सेठिया शामिल हैं। वहीं मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के भी वे सदस्य रहे हैं। लंबे समय तक अपनी भाषा, शब्दावली, प्रिंटिंग, ले आउट के साथ ही भाषायी और ग्रामीण पत्रकारिता के क्षेत्र में नईदुनिया समाचार पत्र का अव्वल स्थान रहा है। इस समाचार पत्र को इस मुकाम पर पहुंचाने वालों में महेंद्र सेठिया को हमेशा याद किया जाएगा। खासकर समाचार चयन और ले आउट को लेकर उनकी समझ बेजोड़ थी। हिंदी के शब्दों के प्रति भी सेठिया कभी समझौता नहीं करते थे। हिंदी के प्रति उनके योगदान पूरे प्रदेश और देश में सम्मान दिया जाता रहा। नईदुनिया समाचार पत्र समूह का संचालन दूसरे ग्रुप में शामिल होने के बाद 2012 से स्व. सेठिया शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय थे। शिक्षा जगत में भी उन्होंने अपनी सक्रियता और समर्पण से शिशु कुंज स्कूल को टॉप 5 शैक्षणिक संस्थानों में शुमार कराया है। स्व. सेठिया को हिंदी पत्रकारिता को दिए गए योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा।





कुशल प्रशासक, बाहर सभी के भाईसाहब





अपने लोगों के बीच महेंद्र भैया और भाईसाहब के नाम से पहचान रखने वाले सेठिया नईदुनिया से करीब 22 साल की उम्र से ही जुड़़ गए थे और 40 साल से भी ज्यादा उससे जुडे़ रहे। वह जिस काल में नईदुनिया में रहे वह राहुल बारपुते, राजेंद्र माथुर का दौर था। अभय छजलानी के साथ इन सभी की चौकड़ी में सबसे जूनियर लेकिन सबसे उर्जावान महेंद्र सेठिया सदस्य थे। उनके साथ करीब 30 साल तक काम करने वाले नई दुनिया के तत्कालीन संयुक्त संपादक भानु चौबे बताते हैं कि वह कुशल प्रशासक थे, काम के बदले शाबासी देना और गलत काम पर डांटना नहीं भूलते थे। दफ्तर के बाहर वह सभी के मित्र, भाईसाहब थे। उनके एक हाथ से की गई मदद कभी दूसरे को भी पता नहीं चलती थी। वे अपने रॉयल अंदाज के लिए जाने जाते थे। अपने संस्थान के साथियों की समस्याएं जानने और उनके निराकरण के लिए इतने तत्पर रहते थे कि नईदुनिया की कैंटीन में पत्रकार साथियों के साथ चाय पीते थे। वहीं वह अखबार की दुनिया पर चर्चा करते थे। वह लगातार संगठनों और लोगों से मिलने में यकीन करते थे।





लीवर की समस्या से परेशान थे





कुछ माह से सेठिया लीवर संबंधी समस्या से परेशान थे। इसके चलते खाना.पीना काफी कम था। इससे वे दुबले हो गए थे। वैसे उन्हें खाने का काफी शौक रहा है। सेठिया के परिवार में पुत्र विनीत सेठिया, पुत्री मेहा, पत्नी विजया सेठिया और भाई प्रेम सेठिया हैं।





पत्रकारिता में किए नए प्रयोग





सेठिया ने नईदुनिया में रहते हुए इसका अलग बिजनेस अखबार भाव.ताव शुरू किया था। गुना से भी एक अलग एडिशन नईदुनिया का शुरू किया था। खेल हलचल पत्रिका भी निकाली। बाद में उन्होंने इंदौर के टॉप स्कूल में शामिल शिशुकुंज स्कूल की भी स्थापना की। वे हमेशा अपने प्रयोग के लिए पहचाने जाते थे। साथ ही अखबार और खबरों की विश्वनीयता व भाषा की शुद्धता के प्रति वे सदैव सजग रहे। हेडिंग में एक गलती भी उन्हें स्वीकार्य नहीं थी और इस गलती की वजह से पूरा अखबार दोबारा छपवा दिया करते थे।





पत्रकार साथियों के लिए हमेशा तैयार





इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी कहते हैं कि उन्हें हमेशा पत्रकारों की मदद के लिए एक कदम आगे खडा देखा है, इंदौर में मैच हो औऱ् पत्रकार साथियों को टिकट लगे तो उन्हें ही याद किया जाता था। नए पत्रकारों को आगे बढाने में वह हमेशा लगे रहते थे। इसलिए एक समय नईदुनिया को पूरे देश में पत्रकारिता की नर्सरी कहा जाता था।





एमपीसीए में कई पदों पर काम किया





सेठिया हिसाब रखने में काफी माहिर थे, इसलिए वह कई बार एमपीसीए की वित्त कमेटी में सदस्य रहे। मैनेजिंग कमेटी में भी सदस्य रहे। वह माधवराज सिंधिया के काफी करीबी थे। जब सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया एमपीसीए में आए तो वह सेठिया को बड़े भाई के रूप में ही मानते थे।



 



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