लोकगायिका मालिनी अवस्थी बोलीं- बदलाव के साथ अच्छे साहित्य-विचार का स्वागत, भौंडापन कतई स्वीकार्य नहीं

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The Sootr CG
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लोकगायिका मालिनी अवस्थी बोलीं- बदलाव के साथ अच्छे साहित्य-विचार का स्वागत, भौंडापन कतई स्वीकार्य नहीं

BHOPAL. लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने 30 सितंबर को भोपाल के रवींद्र भवन में पारंपरिक गीत गाये। वे 'विश्व रंग पुस्तक यात्रा' कार्यक्रम के समापन समारोह में पहुंचीं थीं। उनको सुनने के लिए हजरों की संख्या में श्रोतागण उपस्थित हुए। इस मौके पर 'द सूत्र' ने उनसे विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की-



सवाल- लोक संगीत और किताबें जीवन पर कितना प्रभाव डालती हैं?



किताब पढ़ने से दृश्य की विजुअलाइजेशन की क्षमता बढ़ती है। लोकगीतों में वो कथाएं मिलतीं हैं, जो उस गाथा से संबंधित महाकाव्यों में भी नहीं मिलती। जैसे एक लोकगीत है 'सीता खड़ी पछिताये, कि लव कुश वनमें जन्म लियो'। लेकिन इसका जिक्र राम कथा पर लिखीं गईं किताबों में नहीं है। लेकिन लोकगीत में सीता मां की इस पीड़ा को भी व्यक्त किया गया है। इसलिए दृष्टि में लोकगीत किताबों से भी व्यापक हो जाते हैं। लोकगीतों का जुड़ाव व्यक्ति के जीवन से होता है। वहीं किताबों से जीवन संभलता है।



लोक गायन में बदलाव को कैसे देखतीं हैं?



बदलाव को नकारात्मक रूप में नहीं देखना चाहिए। आज से 100 साल पहले खड़ी बोली नहीं थी, आंचलिक बोलियां ही थीं। लेकिन आज साहित्य इस भाषा में लिखा जा रहा है। इसलिए यदि कोई बदलाव के साथ अच्छा साहित्य और विचार लोकगीतों में लाता है तो मैं इसके साथ हूं। लेकिन यदि भौंडापन बस है तो उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती।



'विश्व रंग पुस्तक यात्रा' को आप कैसे देखतीं हैं? 



पुस्तक यात्रा के इस समापन आयोजन में भाग लेने के लिए आई हूं। इसलिए मैं बहुत आनंदित हूं। 'विश्व रंग पुस्तक यात्रा' ये अनोखी परिकल्पना थी, जो आज सफलता पूर्वक संपंन हो रही है। किताबों का जीवन में बहुत महत्व है। मैं लोकगीत गायका हूं। एक लोकगीत पर पूरी की पूरी किताब लिखी जा सकती है। इस तरह की पहल समाज को बनाने का काम करती है।



कौन हैं मालिनी अवस्थी ?



लखनऊ में जन्मी मालिनी अवस्थी का संगीत के प्रति बचपन से ही लगाव था। जीवन को संगीतमय बनाने के लिए उन्होंने भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय लखनऊ से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। गायिकी में निखार और व्यावहारिक पहलुओं के मार्गदर्शन के लिए मूर्धन्य गायिका गिरिजा देवी की शागिर्द बनीं। तालीम और अभ्यास की पूंजी लेकर मालिनी ने जब सार्वजनिक सभाओं में दस्तक दी तो उनकी मीठी, मधुर और ठेठ मिट्टी की सौंधी गंध से महकती गायिकी ने हजारों श्रोताओं को उनका मुरीद बना लिया। भारत के अनेक लोक उत्सवों और कुंभ-मेलों के आमंत्रण मिले। एनडीटीवी इमेजिन रियलिटी शो 'जूनून' के जरिए मालिनी अवस्थी की गायिकी का ठेठ पारंपरिक अंदाज सरहद पार के मुल्कों को भी रास आया है। भारत सरकार के पद्मश्री अलंकरण के साथ ही संगीत नाटक अकादेमी दिल्ली और मध्यप्रदेश सरकार के राष्ट्रीय अहिल्या बाई सम्मान से भी उन्हें विभूषित किया जा चुका है।

 


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