CM की कुर्सी के कई दावेदार, क्या बरकरार रहेगा शिव का राज? पढ़िए स्पेशल रिपोर्ट

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Aashish Vishwakarma
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CM की कुर्सी के कई दावेदार, क्या बरकरार रहेगा शिव का राज?  पढ़िए स्पेशल रिपोर्ट

भोपाल. पांच राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद अब बीजेपी की नजर आगामी राज्यों के विधानसभा चुनावों पर है। इस फेहरिस्त में मध्यप्रदेश में होने वाले 2023 विधानसभा चुनाव भी हैं। चार राज्यों में मिली जीत से उत्साहित बीजेपी ने एमपी में फिर से कमल खिलाने की तैयारी शुरु कर दी है। इसी के चलते संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधी सभा की बैठक अहमदाबाद में हुई, जिसमें कई अहम फैसले लिए गए। इन फैसलों में प्रदेश के संगठन महामंत्री को संघ में वापस भेजना भी शामिल है, जिसे एमपी चुनावों की रूपरेखा के तौर पर देखा जा रहा है। सुहास भगत की संघ में वापसी इस बात का इशारा है कि संघ की निगाहें अब एमपी की ओर हैं। माना जा रहा है कि अब संघ और पार्टी संगठन दोनों प्रदेश में चुनाव से पहले बड़े बदलाव के साथ ही संगठन में कसावट लाने की कवायद तेज करने वाले हैं। जिसके निशाने पर सीएम की कुर्सी भी होगी। ऐसे एक नहीं कई कारण हैं, जिनकी वजह से शिवराज के सीएम बने रहने पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। 



सीएम का चेहरा बदलने की कवायद तेज: सीएम शिवराज की चौथी पारी पहले जितनी आसान नहीं रही है। हर बार उनकी कुर्सी पर संकट मंडराता नजर आता है। पांच राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद शिवराज का विरोधी खेमा एक बार फिर सक्रिय नजर आ रहा है। अंदरखानों में फिर ये मांग उठ रही है कि सीएम का चेहरा बदला जाना चाहिए। ये मांग आज की नहीं है, उस समय से है, जब कांग्रेस को हटा कर बीजेपी ने सत्ता में फिर से वापसी की थी। तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के अपने समर्थक विधायकों के साथ दल बदलने पर बीजेपी की सत्ता में तो वापसी हुई। लेकिन ये जरूर कहा जाने लगा कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार की वजह सीएम शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ पनपी एंटी एकंबेंसी थी। सत्ता में दोबारा वापसी का सेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया के सिर सजा, चर्चा तो उस वक्त भी यही थी कि चौथी पारी में केंद्रीय नेतृत्व शिवराज सिंह चौहान को कुर्सी देने के मूड में ही नहीं था। लेकिन सरकार बनते ही सिर पर खड़े कोरोना ने कुछ सोचने का वक्त नहीं दिया। आनन-फानन में चौहान को ही फिर कमान सौंपनी पड़ी। उसके बाद पश्चिम बंगाल का चुनाव और फिर पांच राज्य, जिसमें सबसे अहम था यूपी चुनाव। जिसकी तैयारी में आलाकमान व्यस्त रहा। जिस वजह से शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी बचती चली गई। हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों से पहले भी बीजेपी ने उत्तराखंड में सीएम का चेहरा बदला था।  गुजरात में तो सीएम के साथ पूरा मंत्रिमंडल ही बदला गया। जिसके बाद से ये एमपी में भी बदलाव की संभावनाओं को बल मिलने लगा है। 



कई दावेदार दौड़ में, किसके सिर सजेगा ताज: हर बार शिवराज के दिल्ली दौरे के साथ राजनीतिक सुगबुगाहटें बढ़ जाती हैं। सबसे बड़ा सवाल ये है कि शिवराज की जगह कौन? इसके जवाब में कई नाम सामने आते हैं। जो कहीं ना कहीं मजबूती से अपनी दावेदारी पेश करते रहे हैं। 

नरेंद्र सिंह तोमर - पार्टी के कुशल रणनीतिकार माने जाने वाले 64 साल के नरेंद्र सिंह तोमर अटल बिहारी बाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी तक के भरोसेमंद रहे हैं। केंद्र में कृषि जैसे अहम मंत्रालय की कमान संभाल रहे हैं। सीएम पद के लिए सबसे पहला नाम नरेन्द्र सिंह तोमर का ही सामने आ रहा है। 

प्रहलाद पटेल - बुंदेलखंड के कद्दावर नेता प्रहलाद पटेल भी सीएम पद की दौड़ में शामिल हैं। बुंदेलखंड के अलावा प्रहलाद पटेल की महाकौशल में भी अच्छी पकड़ है। केंद्रीय राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल ओबीसी वर्ग का भी बड़ा चेहरा हैं। इस वर्ग में वो गहरी पैठ रखते हैं।  

ज्योतिरादित्य सिंधिया- बीजेपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया की उम्र भले ही दो साल हो। लेकिन बीजेपी में वो अपना करिश्मा दिखा चुके हैं। उपचुनाव में उनके अधिकांश समर्थकों की जीत के बाद से प्रदेश में उनका दबदबा नजर आने लगा है। उनके सियासी तजुर्बे और जीत के पोस्टर बॉय वाली इमेज का फायदा बीजेपी बिलकुल उठाना चाहेगी।

वीडी शर्मा - अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष तक पहुंचने का सफर वीडी शर्मा ने पूरी ऊर्जा और मेहनत के साथ पूरा किया है। उन्हें प्रदेश का बड़ा ब्राह्मण चेहरा माना जाता है। वी.डी. शर्मा मुख्यमंत्री पद के लिए संघ की पहली पसंद भी माने जा रहे हैं। 

नरोत्तम मिश्रा - नरोत्तम मिश्रा सीएम पद की दौड़ में सबसे अव्वल माने जा रहे थे। अमित शाह से उनकी नजदीकियां जगजाहिर हैं। ग्वालियर चंबल में भी उनकी गहरी पैठ है। इसके अलावा वो कई मौकों पर पार्टी के संकट मोचक बनकर भी उभरे। हालांकि पिछले कुछ समय से वो गिनती में कुछ पीछे जरूर हो गए हैं। लेकिन संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता।

राकेश सिंह - जिले से संसद तक का सफर तय करने वाले राकेश सिंह बतौर बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष भी लंबा समय बिता चुके हैं। अपनी हाजिरजवाबी, जमीन से जुड़े नेता की छवि और संघर्षशील होने का गुण उन्हें इस पद के करीब लाता है। लगातार दो बार कांग्रेस के दिग्गज नेता विवेक तन्खा को मात देकर वो अपनी पकड़ भी लगातार साबित कर चुके हैं। लोकसभा के चीफ व्हिप रहे राकेश सिंह ओबीसी वर्ग का भी बड़ा चेहरा हैं।



कर्नाटक, गुजरात और उत्तराखंड में सीएम का चेहरा बदलकर बीजेपी ये साबित कर चुकी है कि पार्टी सख्त फैसले लेने से चूकेगी नहीं। फिलहाल बीजेपी गुजरात की चुनावी तैयारियों में व्यस्त हैं। इसके बाद आलाकमान एमपी में ही एक्टिव होंगा, फिर सत्ता संगठन में बड़े बदलाव हुए तो कोई ताज्जुब नहीं होगा।


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