हरीश दिवेकर । भोपाल. छतरपुर की बक्सवाहा हीरा खदान इंटरनेशल मुद्दा बन गया है। बक्सवाहा के जंगल को बचाने के लिए जो लोग आंदोलन कर रहे हैं, क्या वो सही हैं या फिर सरकार...! दोनों के अपने दावे हैं। इस मामले को लेकर कोर्ट में याचिकाएं भी लगी हैं, जिन पर सुनवाई चल रही है। जमीनी हकीकत क्या है? द सूत्र ने जब इसकी पड़ताल की तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। सरकार ने बक्सवाहा खदान आवंटन की प्रक्रिया को पूरी करने के लिए इससे जुड़ी कई रिपोर्ट्स ही दबा लीं। लेकिन इन रिपोर्ट की कापी द सूत्र के पास मौजूद हैं।
ढाई लाख पेड़ काटे जाएंगे
बक्सवाहा हीरा खदान का टेंडर बिड़ला ग्रुप के एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्री लिमिटेड कंपनी को मिला है। खदान आवंटित करने की सारी प्रक्रिया राज्य सरकार ने पूरी कर ली है और इस प्रस्ताव को मंजूरी के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेज दिया है। बक्सवाहा की हीरा खदान का विरोध इसलिए हो रहा है कि यहां मौजूद हैं ढाई लाख पेड़, जिन्हें माइनिंग के लिए काटा जाएगा। यहां के लोग इन्हें कटने नहीं देना चाहते। उनका मानना है कि इससे पर्यावरण को खतरा है। उधर, सरकार को बक्सवाहा के जंगल के नीचे दफन साढ़े तीन करोड़ कैरेट हीरे का भंडार नजर आ रहा है। इसकी अनुमानित कीमत करीब 60 हजार करोड़ रुपए है।
पहली रिपोर्ट: खनन की मंजूरी खतरनाक
10 दिसंबर 2019 को तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने ये प्रोजेक्ट बिड़ला ग्रुप की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्री लिमिटेड कंपनी को 50 साल की लीज पर दे दिया था। एस्सेल कंपनी को लीज पर देने से पहले फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की एक ऐसी रिपोर्ट थी जो बताती है कि यहां खदान को मंजूरी देना कितना खतरनाक है। छतरपुर के तत्कालीन डीएफओ ओपी उचाड़िया ने 2016 में बक्सवाहा को लेकर स्पॉट वैरिफिकेशन रिपोर्ट तैयार करवाई थी। उचाड़िया की ये रिपोर्ट सरकार तक भी गई। जिसमें साफ लिखा है कि जंगल की जिस जमीन पर हीरा खदान को मंजूरी दी जा रही है, उस एरिया में वन्य प्राणी पाए जाते हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व में रहने वाले टाइगर इस क्षेत्र का इस्तेमाल आवाजाही के लिए करते हैं। उचाड़िया रिटायर हो चुके हैं। इस रिपोर्ट की कॉपी द सूत्र के पास उपलब्ध है।
...और दबा ली रिपोर्ट
जब ये रिपोर्ट सामने आई तो वन विभाग की तरफ से खदान की मंजूरी का सवाल पैदा नहीं होता था, लेकिन सरकार ने ये रिपोर्ट दबा ली। दूसरी तरफ मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी बक्सवाहा में एक सर्वे किया था। इसकी रिपोर्ट बताती है कि यहां महुआ के पेड़ बहुतायत में हैं। फॉरेस्ट एक्ट के शेड्यूल 1 में आने वाले जानवर मसलन चिंकारा, चौसिंगा, भालू, तेंदुआ, गोह (मॉनीटर लिजार्ड), गिद्ध और मोर भी यहां पाए जाते हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की इस सर्वे रिपोर्ट को भी सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। तीसरी रिपोर्ट ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की है, जिसमें कहा गया है कि बक्सवाहा में पाषाण और मानव इतिहास के पहले की रॉक पेंटिंग्स हैं।
केंद्र को सही जानकारी ही नहीं दी
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से भेजे गए प्रस्ताव इन तीनों रिपोर्ट्स का जिक्र नहीं है। कहने का मतलब साफ है कि सरकार ने बक्सवाहा खदान से जुड़ी जितनी अहम रिपोर्ट्स थीं, उन्हें दरकिनार कर दिया और प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। लेकिन सवाल है कि प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया किस आधार पर शुरू की गई? कोई ना कोई सरकारी दस्तावेज तो होगा ही। द सूत्र ने उन्हीं दस्तावेजों को ढूंढ निकाला है और इससे पता चल रही है सरकार की साजिश...।
बक्सवाहा पर लगातार खुलासे
हीरा खदान के मामले में सिर्फ रिपोर्ट छिपाने का खेल ही नहीं चला। लापरवाहियां और नियमों की धज्जियां उड़ाने के काम खुलेआम चलते रहे। बक्सवाहा की हीरा खदान से जुड़ी हमारी स्पेशल रिपोर्ट की अगली कड़ी में कल फिर पढ़िए एक नई लापरवाही के बारे में....