SATNA. मैहर का शाब्दिक अर्थ है मां का हार। पूरे भारत में शक्तिपीठों में सतना का मैहर मंदिर मां शारदा का अकेला मंदिर है। आल्हा और ऊदल दोनों भाइयों ने मिलकर सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर को ढूंढा था। आल्हा ने यहां 12 साल तक मां की तपस्या की थी। आल्हा मां को शारदा माई कहकर बुलाते थे, इसलिए उनका नाम शारदा माई हो गया। मां शारदा का ये पावन धाम मध्य प्रदेश के त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। मां का दर्शन करने के लिए भक्तों को मंदिर की 1000 से ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मान्यता है कि शाम की आरती होने के बाद जब मंदिर के कपाट बंद हो जाते है, मंदिर में कोई भी नहीं होता, तब भी मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाजें आती हैं।
मैहर में सती का हार गिरा था
हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, दक्ष प्रजापति ने एक बहुत बड़े महायज्ञ का आयोजन किया था। इस आयोजन में उन्होंने सभी को बुलाया था, लेकिन अपनी बेटी सती और दामाद शिव को नहीं। सती इस यज्ञ के आयोजन में जाना चाहती थीं। उन्होंने ये बात शिव से बताई। शिव ने यह कहकर जाने से मना किया कि किसी के भी कार्यक्रम में बिना बुलाए नहीं जाया जाता है, लेकिन सती जिद पर अड़ी रहीं और कहा कि अपने घर के कार्यक्रम में जाने के लिए किसी न्योते की जरूरत नहीं है। जिद कर सती यज्ञ में चली गईं। उन्होंने वहां पर सती जब वहां पर पहुंची तो उन्हें देखकर प्रजापति दक्ष काफी क्रोधित हुए। प्रजापति ने शिव और सती का काफी अपमान किया और ये अपमान सती बरदाश्त नहीं कर पाईं। सती ने खुद को यज्ञकुंड में अपने आप को भस्म कर लिया।
जब शिव को इस बात का पता चला तो उन्हें क्रोध आ गया। उन्होंने प्रजापति को दंड देने के लिए वीरभद्र से कहा। सती के जलते शरीर को उठाकर वे भटकने लगे। भगवान विष्णु ने उन्हें शांत करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के जलते शरीर को खंडित कर दिया। इस क्रम में सती के शरीर के अंग कई स्थानों पर गिरे। उन स्थानों पर देवी के शक्तिपीठ स्थापित हो गए। उन्हीं 51 शक्तिपीठों में एक शक्तिपीठ मां शारदा का मंदिर है। यहां पर सती का हार गिरा था।
मंदिर के हैं कई चमत्कार
ऐसा कहा जाता है कि मां शारदा मंदिर में कई चमत्कार होते हैं। मान्यता है कि मां शारदा के दर्शन करने के बाद व्यक्ति के सारे दुख दूर हो जाते हैं और सारी कामनाएं पूरी हेाती हैं। माना जाता है कि जब मंदिर के दरवाजे बंद हो जाते है। सभी पुजारी और भक्त पहाड़ के नीचे चले आते हैं। मंदिर में कोई भी नहीं रहता है तो वहां पर आल्हा और ऊदल अदृश्य रूप में माता की पूजा करने के लिए आते हैं। आल्हा और ऊदल दोनों भाई थे और मां शारदा के परम भक्त थे। मां शारदा को विद्या, बुद्धि और कला की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है। जो भी लोग किसी एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं वो यहां आकर मां की पूजा करते हैं।
मंदिर के पट खुलने से पहले हो जाता है मां का श्रृंगार
मान्यता है कि आज भी रात में 12 बजे के बाद देवी की पूजा के लिए अदृश्य रूप में शारदा देवी मंदिर में आते है, उस वक्त मंदिर के दरवाजे बंद रहते है। आल्हा और ऊदल मां शारदा ने अमरता का वरदान दिया था। आल्हा मां शारदा मंदिर में आते हैं, उस वक्त मंदिर के दरवाजे बंद रहते है। हालांकि, आज तक कोई भी आल्हा को देख नहीं सका है। यह भी मान्यता है कि जो भी रात में इस मंदिर में आल्हा को देखने के लिए ठहरा, उसकी मृत्यु हो गई। मंदिर के पुजारी भी यहां रात में नहीं ठहरते। पुजारी बताते हैं कि मंदिर को खोलने का समय सुबह चार बजे का है। तभी मंदिर में प्रवेश किया जाता है। वह बताते हैं कि अक्सर ही मंदिर के दृश्य को देखकर लगता है जैसे कोई कपाट खुलने से पहले ही वहां से चला गया हो।