BHOPAL : भारत को अपने स्वार्थ के लिए नहीं, दुनिया के कल्याण के लिए जीना है : भागवत

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BHOPAL : भारत को अपने स्वार्थ के लिए नहीं, दुनिया के कल्याण के लिए जीना है : भागवत

BHOPAL. भोपाल में आयोजित विश्व संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हमारे देश के अस्तित्व का प्रयोजन दुनिया को धर्म देना है। विश्व के कल्याण की इच्छा रखने वाले ऋषियों के तप से हमारे राष्ट्र का जन्म हुआ। स्वामी विवेकानंद ने बताया कि भारत को अपने स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि दुनिया के लिए जीना है। विदेश में रह रहे हिंदुओं का दायित्व है कि वे भारतीय संस्कृति से मिली अच्छाइयों को वहां के लोगों दें।





'सनातन धर्म का हो उत्थान'





सरसंघचालक ने कहा कि महर्षि अरविंद ने कहा था, सनातन धर्म का उत्थान हो यही भगवान की इच्छा है। सेलुलर जेल में साक्षात वासुदेव ने मुझे ये बताया है। सनातन धर्म के उत्थान की पूर्व शर्त है हिंदू राष्ट्र यानी हिंदुस्थान का उत्थान। महर्षि अरविंद ने जब ये कहा था तब किसी को नहीं पता था कि संघ की स्थापना होने वाली है और स्वयंसेवक विभिन्न देशों में जाएंगे और वहां हिंदू संस्कृति के विस्तार के लिए कार्य करेंगे।





'हमारा धर्म प्राण राष्ट्र है'





सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि हमारा धर्म प्राण राष्ट्र है। सबको जोड़ने वाले सत्य को हमने पाया। सारा विश्व एक ही है इसलिए वास्तविक सुख के विचार को सभी देशों में पहुंचना हमारा धर्म है। इसलिए ऋषियों ने हमको आदेश दिया कि सारे विश्व का मानव जीवन की शिक्षा हमसे पाए, ऐसा हमारा जीवन होना चाहिए।





'डॉ. हेडगेवार का दृष्टिकोण वृहद था'





सरसंघचालक डॉ. भागवत ने बताया कि संघ स्थापना के 5 साल पहले नागपुर में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन के व्यवस्था प्रमुख की जिम्मेदारी डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार देख रहे थे। अधिवेशन की अध्यक्षता महात्मा गांधी कर रहे थे। तब डॉ. हेडगेवार ने दो प्रस्ताव दिए, एक गौवंश हत्या बंद और दूसरा भारत की पूर्ण स्वतंत्रता को कांग्रेस अपना ध्येय घोषित करे। उसी में ये भी घोषित किया जाए कि स्वतंत्र भारत पूंजी के चंगुल से दुनिया के देशों की मुक्तता करेगा। डॉक्टर साहब का दृष्टिकोण वृहद था।





लक्ष्मण राव भिड़े ने कहा था-'इस तरुण पीढ़ी को संघ का कार्य आगे ले जाना है'





संघ प्रमुख ने बताया कि विश्व विभाग का इस तरह का पहला शिक्षा वर्ग 1992 में बेंगलुरू में हुआ। उस समय विश्व विभाग के संयोजक लक्ष्मण राव भिड़े ने उद्घाटन भाषण में कहा था कि इस तरुण पीढ़ी को संघ का कार्य आगे ले जाना है। संघ की शाखा पद्धति मनुष्य को सदाचारी बनाती है, ये सिद्ध हो गया है। सरसंघचालक ने कहा कि हिंदू स्वयंसेवक संघ से प्रेरित होकर अनेक देशों में वहां के लोगों इसी पद्धति से अपने समाज जागरण के प्रयास प्रारंभ किए हैं। उन्होंने कहा कि भारत के नागरिक जहां रह रहे हैं, वहां वे उस देश की सेवा कर रहे हैं।





शिक्षार्थियों ने किया शारीरिक प्रदर्शन





प्रकट कार्यक्रम के समापन में स्वयंसेवकों और सेविकाओं ने शारीरिक शिक्षण के तहत सामूहिक समता, व्यायाम योग, दंड योग, बैठे योग, ध्वज योग, यष्टी (कल्लारी युद्ध विद्या में प्रयोग होने वाली), सामूहिक गीत और घोष की विविध रचनाओं का प्रदर्शन किया। इस मौके पर विभिन्न देशों के शिक्षार्थियों ने अपने अनुभव कथन भी सुनाए।





शिक्षा वर्ग में 15 देशों से आए 60 प्रतिभागियों ने लिया प्रशिक्षण





दुनियाभर में हिन्दू संस्कृति के लिए काम करने वाले विविध संगठनों के स्वयंसेवकों एवं मातृशक्ति के शिक्षा वर्ग कुछ दिनों से भोपाल में चल रहा था। पुरुषों के शिक्षा वर्ग में 15 देशों से आए लगभग 60 प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। वहीं, विश्व समिति शिक्षा वर्ग (द्वितीय वर्ष) में 13 देशों से आईं 31 सेविकाओं प्रशिक्षण प्राप्त किया। इन दोनों वर्गों के आयोजन में उत्तमचंद इसरानी स्मृति न्यास की सक्रिय सहभागिता रही।



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