BHOPAL. देश में आजादी के अमृत महोत्सव की धूम है। लेकिन कुछ मसले ऐसे हैं जो दिलो-दिमाग को झंझोड़ देते हैं। बच्चे देश का भविष्य माने जाते हैं लेकिन इन मासूमों पर किसी की नजर लग गई है। हाल ही में संसद में पेश हुई रिपोर्ट चौंकाती है लेकिन साथ में गहरी चिंता में भी डालती है। मासूमों की गुमशुदगी के मामले में मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) का नंबर पूरे देश में पहला है। तीन सालों में करीब 47 हजार नाबालिग बच्चे-बच्चियां (minor children and girls) यहां से गुमशुदा (missing) हो चुके हैं। हैरानी की बात ये भी है कि इनमें 80 फीसदी नाबालिग लाड़लियां शामिल हैं। सवाल पैदा होता है कि बच्चों के लापता होने में मध्यप्रदेश आखिर साफ्ट टारगेट क्यों बना हुआ है।
यह कहती है रिपोर्ट : रोजाना 43 बच्चे हो रहे लापता
- साल 2018 में प्रदेश में 15320 बच्चे गुमशुदा हुए।
मानव तस्करी की आशंका
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक इन अपहरण के मामलों में मानव तस्करी की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। जो बच्चे लापता होते हैं वे ग्रामीण क्षेत्र के होते हैं। प्रदेश में आदिवासी (tribal) क्षेत्रों में गुमशुदगी के प्रकरण ज्यादा दर्ज होते हैं। लापता बच्चे गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, बंगाल जैसे राज्यों में ज्यादा पाए जाते हैं। कई लड़के-लड़कियां आपस में शादी भी कर लेते हैं। मानव तस्करी के खिलाफ लंबे समय से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत दुबे कहते हैं कि प्रदेश में हजारों मामले मानव तस्करी से जुड़े हैं लेकिन पुलिस उनको गुमशुदा मानती है। प्रकरण भी मानव तस्करी की जगह गुमशुदा का बनाया जाता है। मंडला, डिंडौरी, बालाघाट, खंडवा, सिवनी, हरदा और बैतूल वे जिले हैं जहां पर लगातार बच्चों की गुमशुदगी सामने आ रही है। सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन है कि जो बच्चे चार माह तक बरामद न हों उन सभी मामलों को मानव तस्करी माना जाए। प्रदेश में इस गाइड लाइन का सही तरीके से पालन नहीं हो रहा। गुमशुदा के मामले सीआईडी दर्ज करती है और मानव तस्करी के महिला अपराध शाखा लेकिन दोनों विभागों में आपसी समन्वय की कमी है।
मानव तस्करी के मामलों से बचती है पुलिस
पुलिस बच्चों के लापता होने पर गुमशुदगी का मामला दर्ज करती है। यानी उसे मानव तस्करी मानने से इनकार करती है। यही कारण है कि मानव तस्करी के मामले उंगलियों पर गिनने लायक होते हैं जबकि गुमशुदगी के मामलों इतनी बड़ी संख्या में दर्ज हो रहे हैं। गृह मंत्रालय की मानव तस्करी से संबंधित रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में 2018 में सिर्फ 42 मामले दर्ज किए गए। 2019 में मानव तस्करी के 49 मामले और 2020 में 54 मामले दर्ज किए गए।
पुलिस आधुनिकीकरण के लिए खर्च हुई राशि
प्रदेश में पुलिस आधुनिकीकरण के लिए सरकार बड़ी राशि खर्च कर रही है। चार साल में सरकार पुलिस आधुनिकीकरण के लिए सौ करोड़ से ज्यादा का फंड खर्च कर चुकी है। प्रदेश के साथ साथ केंद्र सरकार भी पुलिस सुधार के लिए लगातार फंड भेज रही है। सरकार इन मामलों को रोकने के लिए तकनीक का सहारा भी ले रही है। इसके बाद भी आंकड़ों में सुधार दिखाई नहीं दे रहा।
- 2018-19 में सरकार ने प्रदेश को 38 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं।