Bhopal. देश के 15 वें राष्ट्रपति के लिए वोटिंग चल रही है। पार्लियामेंट (Parliament ) के साथ ही सभी राज्यों की विधानसभाओं (state legislatures) में भी वोट डाले जा रहे हैं। वोट डालने के लिए सांसद-विधायकों (MP-MLAs) ट्रेनिंग भी दी गई है, ताकि कोई भी नया-पुराना सांसद या विधायक पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की तरह उलझन में न फंस जाए और वोट डालने के बाद किसी को अपना मतपत्र (ballot paper) न फाड़ना पड़े।
असल में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ऐसी अजीबोगरीब स्थिति बन गई थी, जब उस गलती को सुधारने का तरीका अच्छे-अच्छे संविधान विशेषज्ञों को भी नहीं मिला था। आश्चर्य की बात यह है कि गलती करने वाले सपा प्रमुख् मुलायम सिंह यादव थे, जो केद्रीय मंत्री के साथ - साथ यूपी के सीएम भी रह चुके थे। संसदीय अनुभव के साथ ही राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने का भी उन्हें कई बार का अनुभव था। मगर उन्होंने भी ऐसी गलती कर डाली, जिसको सुधार को भी पास उस गलती का कोई तोड़ नहीं बचा था। यह वाकया देश के 13 वें राष्ट्रपति (13th President) के चुनाव से जुड़ा है, जब यूपीए की ओर से प्रणब मुखर्जी और बीजेपी की ओर से पीए संगमा प्रत्याशी थे। अपने वादे और राजनीतिक समझौते के तहत मुलायम सिंह यादव यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी (Pranab mukharji)के समर्थन में वोट डालने मतदान केंद्र पर गए थे। उन्हें बैलेट पेपर (Ballot Paper) दिया गया, लेकिन न जाने किस उधेड़बुन में मुलायम सिंह यादव ने यूपीए उम्मीदवार मुखर्जी की बजाए बीजेपी के उम्मीदवार पीएम संगमा के नाम के आगे मुहर लगा दी। जैसे ही वे अपना वोट मतपेटी में डालने वाले थे कि उन्हें सहसा अपनी भूुल का अहसास हो गया। वे तत्काल चुनाव अधिकारी के लौटे और नया मतपत्र मांग लिया। इतना ही नहीं, चुनाव अधिकारी को अपनी गलती की जानकाी देते-देते उन्होंने वहीं खड़े-खड़े अपना बैलेट पेपर खुद भी फाड़ डाला।
चुनाव अधिकारी ने भी यादव को दूसरा बैलेट पेपर दे दिया और मुलायम सिंह यादव ने उस पर प्रणब मुखर्जी के लिए मुहर भी लगी दी, लेकिन बीजेपी नेता और संगमा के पोलिंग एजेंट सतपाल जैन ने जानकारी मिलते ही इसका विरोध कर दिया। जैन ने चुनाव अधिकारी और पर्यवेक्षक को लिखित शिकायत कर दी। राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी संगमा ने भी इस संबंध में चुनाव आयोग को शिकायत दर्ज कराई गई। इसके चलते मुलायम को दूसरा मतपत्र नहीं मिल सका और वे चाहकर भी वोट नहीं डाल सके। यह घटना सभी सांसद-विधायकों के लिए एक सबक है तो सभी राजनीतिक दल राष्ट्रपति चुनाव के दौरान वोट डालने की ट्रेनिंग देते समय इस घटना का जिक्र जरूर करते हैं।
मुलायम को इसलिए नहीं मिला दूसरा मतपत्र
अपनी शिकायत में बीजेपी के चुनाव एजेंट जैन ने मुलायम सिंह का पहला मत ही वैध मानने की मांग की। जैन ने नियमों का हवाला देते हुए लिखा कि मतपत्र पर स्याही गिर जाने या किसी वजह से चिपककर फट जाने की स्थिति में ही दूसरा मतपत्र दिया जाता है। मुलायम के मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह ने मतपत्र पर अपनी पसंद के उम्मीदवार के लिए वोट कर दिया था इसलिए उन्हें दूसरा मतपत्र नहीं दिया जाना चाहिए था. ऐसी स्थिति में तो बिल्कुल नहीं, जबकि उन्होंने मतपत्र स्वयं फाड़ा हो। आयोग ने भी इसे सही माना और मुलायम अपना वोट नहीं डाल सके। हालांकि प्रणब मुखर्जी अपने प्रतिद्वंद्वी संगमा से दोगुने वोट लेकर जीत गए।
राष्ट्रपति रमण की देन है देश का मिसाइल पॉवर
देश में मिसाइल मैन पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को माना जाता है, देश को मिसाइल पॉवर देने का श्रेय भी उन्हीं को दिया जाता है, लेकिन इसके श्रेय के हकदार हैं देश के आठवें राष्ट्रपति आर वेंकटरमण। असल में रमण ने राष्ट्रपति बनने के पहले बतौर केंद्रीय रक्षा मंत्री ऐसा काम किया कि देश को मिसाइल पॉवर मिल गया। भारत में मिसाइल प्रोग्राम को शुरू करने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। असल में रक्षा मंत्री बनते ही उन्होंने महान वैज्ञानिक एपीजे कलाम का तबादला स्पेस प्रोग्राम से मिसाइल प्रोग्राम में कर दिया। साथ ही पूरे मिसाइल प्रोग्राम को वो एक जगह पर लाए और उसे इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवेलपमेंट प्रोग्राम नाम दिया। बाद में वे भारत के उपराष्ट्रपति और फिर आया राष्ट्रपति भी बने। हालांकि यह सर्वोच्च् पद उन्हें बिना मेहनत के नहीं मिला। हुआ यूं कि राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने विपक्ष का उम्मीदवार बनने से मना कर दिया।इससे रमण का रास्ता साफ था, लेकिन वामपंथी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज वीआर कृष्ण अय्यर को मैदान में उतार दिया। हालांकि वे कमजोर प्रत्याशी साबित हुए और वेंकटरमन को जहां 7 लाख 40 हजार 148 वोट मिले तो अय्यर को महज 2 लाख 81 हजार 550 वोट ही मिले। रमण ने 4 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया और इनमें से तीन वीपी सिंह, चंद्र शेखर और पीवी नरसिम्हा राव को शपथ भी दिलाई।
शो मैन के लिए जब प्रेसिडेंट ने तोड़ा प्रोटोकॉल
भारत के राष्ट्रपति का प्रोटोकॉल बहुत स्ट्रांग माना जाता है और राष्ट्रपति भी प्रोटोकॉल को लेकर बेहद सख्त होते हैं. लेकिन आर वेंकटरमन इस मामले में अलग थे। एक वक्त ऐसा भी आया था,जब उन्होंने राजकपूर के लिए प्रोटोकॉल तोड़ दिया था। तब उनका ये कदम बड़ा मशहूर हुआ। असल में तब 1988 में राजकपूर को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जाना था. तब राजकपूर की तबीयत ठीक नहीं थी। बावजूद इसके वे अवॉर्ड लेने दिल्ली आ गए. जब अवॉर्ड लेने पहुंचे तो राजकपूर ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ व्हील चेयर पर बैठे थे।अपने नाम का ऐलान होने पर वे कुर्सी से उठने की कोशिश करने लगे लेकिन वे उठ न सके। तत्कालीन राष्ट्रपति वेंकटरमन ने तुरंत स्थिति को पहचान लिया और खुद चलकर उन्हें अवॉर्ड देने पहुंच गए।