देव श्रीमाली,Gwalior. चुनावी बिगुल बज गया है। भारतीय जनता पार्टी जहाँ नगर निगम पर अपना 55 साल पुराना कब्जा बनाये रखने के लिए मशक्कत कर रही है वहीँ कांग्रेस मेयर पद पर कभी न जीत पाने का कलंक को दूर करने का । इससे जुड़ा एक और रोचक और उल्लेखनीय पहलू है। इस पहलू को सिंधिया राज परिवार धोने को आतुर है और जय विलास पैलेस से जुड़ा है। एक ओर जहां यह एक इतिहास है कि यहाँ पचपन साल से कोई कांग्रेसी मेयर नही बन पाया वही एक यह भी तथ्य है कि स्वतंत्रता पश्चात से अभी तक जयविलास समर्थक एक भी नेता मेयर की गद्दी पर नहीं बैठ सका . इसलिए इस बार केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख दांव पर है कि वे अपने किसी समर्थक को जिताकर इस इतिहास को पलट पाते हैं या नहीं ।
पहले कांग्रेस का दबदबा था
देश आज़ाद होने का बाद से कांग्रेस के मेयर बनने लगे। पहले मेयर राजा पंचम सिंह pancham singh के बाद भार्गव और फिर रघुनाथ राव पापरीकर raghunath rao paprikar सब कांग्रेस के नेता थे। हालाँकि स्वतंत्रता के पश्चात् राज्यों का विलय होते ही यहाँ के निवृतमान राजा जीवाजी राव सिंधिया ने तो राजनीति में सक्रिय न रहने का फैसला कर लिया था लेकिन उनकी महारानी विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस में शामिल हो गयीं थीं। हालांकि कांग्रेस में उनका बड़ा रसूख था लेकिन मेयर पद पर कभी उनके समर्थक को टिकिट नहीं मिल सका बल्कि तब स्वतंत्रता की विरासत वाले कांग्रेस नेताओं का ही दबदबा था और वे ही मेयर बनते रहे।
पहला गैर भाजपाई मेयर
नारायण कृष्ण शेजवलकर पहले गैर भाजपाई मेयर बने थे लेकिन वे भी महल के समर्थक नहीं थे बल्कि वे ही राजमाता को कांग्रेस में शामिल कराने की रणनीति के सूत्रधार थे।
सिंधिया का कब्जा लेकिन मेयर नहीं बना सके
1977 में निर्दलीय जीतकर संसद में पहुंचे माधव राव सिंधिया कांग्रेस में शामिल हो गए और 1980 के बाद से ग्वालियर - चम्बल की राजनीति पर महल और सिंधिया का कब्जा हो गया जो विगत दो वर्ष पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया jyotiraditya scindia के कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा में शामिल होने तक जारी रहा। इस दौरान माधव राव स्वयं चार बार ग्वालियर से सांसद भी रहे और पार्षद से लेकर मेयर तक के टिकिटों का फैसला वे अपने महल जयविलास पैलेस में बैठकर ही करते रहे लेकिन मेयर एक बार भी नहीं जीता। इस दौरान भाजपा के श्रीमती अरुणा सेन्या ,पूरन सिंह पलैया ,दो बार विवेक नारायण शेजवलकर vivek narayan shejwalkar और एक बार श्रीमती समीक्षा गुप्ता मेयर बनी और कांग्रेस से लड़े सिंधिया समर्थक डॉ श्रीमती पिपरिया ,गोविन्द दास अग्रवाल ,श्रीमती उमा सेंगर और डॉ दर्शन सिंह को करारी हार का सामना करना पड़ा।
अब टूट सकता है ये इतिहास
अब सिंधिया परिवार और मेयर पद से जुड़ा इतिहास टूट सकता है। इसकी बजह ये है कि इस बार सिंधिया उसी दल भाजपा में है जो मेयर पद को लेकर ग्वालियर में अपराजेय बनी हुई है इसलिए उस दल का का मेयर बनने का मिथक तो टूटने की संभावना है जिसमें सिंधिया हो लेकिन महल का समर्थक मेयर बने इस मिथक को टूटने के लिए सिंधिया को अपने खालिस समर्थक को टिकिट दिलांने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। अभी तक की स्थिति ये है कि भाजपा यहाँ अपने कैडर से ही उम्मीदवार देती रही है और वह जीतता भी रहा है ऐसे मिशन किसी सिंधिया समर्थक को टिकिट मिल पायेगा ऐसा नहीं लगता। हाँ, अगर विवाद बढ़ता है तो भाजपा शीर्ष नेतृत्व कोई बीच का रास्ता निकाल सकता है मसलन इस पद के लिए माया सिंह को टिकिट दे दिया जाए।
माया सिंह भाजपा की वरिष्ठ नेता है। वे और उनके पति ध्यानेन्द्र सिंह दोनों विधायक और मंत्री रह चुके है। माया सिंह राज्यसभा सदस्य और भाजपा के संघठन में राष्ट्रीय पदाधिकारी रह चुकी है। वे दिवंगत माधव राव सिंधिया की मामी यानी राजमाता विजयाराजे सिंधिया की भाभी लगती है। इस नाते वे ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी हुई। वे जयविलास के ही एक हिस्से में बने क्वार्टर में रहती है। भाजपा उनका नाम आगे बढ़ाकर विवाद को कम कर सकती है क्योंकि उन्हें लगता है कि भले ही वे असहमत हो लेकिन माया सिंह के नाम पर सिंधिया विरोध नहीं कर सकेंगे।