इंदौर. प्लॉट के इंतजार में बूढ़े हो गए, कुछ लोग स्वर्गवासी हो गए। कलेक्टर की जनसुनवाई में जब नवभारत हाउसिंग सोसाइटी का मामला उठा तो अफसर हैरान रह गए। 1800 सदस्यों को 30 साल से प्लॉट का इंतजार है। नवभारत हाउसिंग सोसाइटी के सदस्य बड़ी संख्या में न्याय की आस में कलेक्टर की जनसुनवाई में पहुंचे थे।
सिर्फ 250 सदस्यों को मिले प्लॉट
1990 में बनी नवभारत हाउसिंग सोसाइटी के पास किसी जमाने में इतनी जमीन थी कि सारे सदस्यों को प्लॉट मिलने के बाद भी बच जाती। लेकिन कुछ पदाधिकारियों का हील-हवाला, कुछ नीयत में खोट का नतीजा ये निकला कि बमुश्किल 250 सदस्यों को प्लॉट मिलने के बाद संस्था विवादों में उलझती चली गई। लोगों के प्लॉट और लाखों रुपए उलझ गए।
2005 के बाद घुसे माफिया
इधर सदस्य प्लॉट के लिए लड़ रहे थे, तो उधर संस्था ने करीब चार हेक्टेयर जमीन एक रियल एस्टेट कंपनी को बेच दी। उसके बाद शुरू हुआ पुराने सदस्यों को हटाने और नए सदस्यों को जोड़ने का खेल। नतीजा ये हुआ कि पुराने सदस्य तो देखते रह गए और दो हजार नए सदस्य बना दिए गए। इसमें पर्दे के पीछे शहर के कुछ माफियाओं का हाथ रहा।
मतदाता सूची से बना दिए सदस्य
जमीन के जादूगरों का कमाल देखिए। दो हजार सदस्य भौतिक रूप से तो मिले नहीं, तो एक मतदाता सूची उठाई और उसमें से दो हजार नाम उठाकर हाउसिंग सोसाइटी में जोड़ दिए। जिनके नाम जोड़े, उन्हें खुद नहीं पता चला कि वे किसी सोसाइटी के सदस्य बना दिए गए हैं।
70-80 सदस्यों की हो चुकी है मौत
असली पीड़ित अपनी पीड़ा लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचे। उन्होंने बताया 30 साल हो गए हैं लड़ते-लड़ते। कई सदस्य बूढ़े हो गए हैं, और करीब 70-80 सदस्यों की मौत हो चुकी है लेकिन प्लॉट नहीं मिले। करीब 300 सदस्यों ने तो निराशा में खुद ही सदस्यता सरेंडर कर दी।
निरस्त होगी रजिस्ट्री
डिप्टी रजिस्ट्रार गजभिए ने कहा कि जिस कंपनी को संस्था की जमीन बेच दी गई है वो रजिस्ट्री निरस्त करने की करवाई की जाएगी। अपर कलेक्टर अभय बेड़ेकर ने कहा कि हाउसिंग सोसाइटी के मामले लगातार सुलझाए जा रहे हैं। नवभारत सोसाइटी के मामले की पड़ताल भी हो रही है। सदस्यता सूची अपडेट हो रही है।