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भोपाल. शिवराज सरकार ने दो दिन चिंतन बैठक आयोजित की। दो दिन पूरी सरकार पचमढ़ी की वादियों में कैद रही। इससे हासिल क्या हुआ, ये समझने में थोड़ा वक्त लगेगा। पर इतना जरूर है कि इस चिंतन बैठक से इंस्पायर होकर अब कमलनाथ भी अपनी कैबिनेट के साथ बैठक कर रहे हैं। माफ कीजिएगा कैबिनेट नहीं पूर्व कैबिनेट। यानि वो नेता जो कभी कमलनाथ सरकार में मंत्री हुआ करते थे। उन सभी के साथ कमलनाथ की लंबी-चौड़ी बैठक चल रही है। इन दिनों एमपी कांग्रेस का हाल कुछ ऐसा है कि कमलनाथ जब भी कोई कदम उठाते हैं। उसे उनके एक पद छोड़ने के संकेत के बहाने से देखा जाता है। लेकिन इस बार माजरा सिर्फ एक पद छोड़ने का नहीं है।
कमलनाथ को कई ऐसे समीकरण भी साधने हैं, जो प्रदेश में कांग्रेस को बिखरने से रोक सकें। अब तक कांग्रेस में पसरे असंतोष को लेकर बतौर अध्यक्ष कमलनाथ की जितनी किरकिरी हो चुकी है। उसे भी ठीक करने की मजबूरी है, क्योंकि अभी तो कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने ही दस जनपथ का रुख किया है। डर है जो रास्ता अरुण यादव ने दिखाया है, वो कहीं दूसरे नेताओं को रास न आ जाए। लिहाजा बैठक सिर्फ रूठों को मनाने की नहीं है। उनको वाजिब जगह देने की भी है, जो कांग्रेस फिलहाल कमलनाथ और दिग्विजय सिंह तक ही सिमटी हुई नजर आ रही है। उस कांग्रेस को अब इस दायरे से बाहर निकालना है। ताकि जीत मिले या न मिले लेकिन आलाकमान की नजरों में कम से कम हालात बेहतर नजर आ सकें।
इस बैठक में कई शिकवे शिकायत सुने और सुनाए जा रहे होंगे। शायद, उनमें से अधिकांश के निशाने पर कमलनाथ ही हों। जिनके जीतू पटवारी, अरुण यादव के साथ मनमुटाव के किस्से पिछले दिनों काफी सुर्खियों में भी रहे। पूर्व कैबिनेट की इस बैठक के पीछे वजह भी यही मानी जा रही है कि अब दोबारा हर क्षेत्र के क्षत्रप को ताकतवर बनाने पर जोर होगा। हालांकि बैठक पुराने कैबिनेट के साथियों के साथ है, लिहाजा ये माना जा रहा है कि कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ सकते हैं। इसलिए ये बैठक हो रही है। लेकिन इस बैठक में अजय सिंह और अरुण यादव को भी न्यौता दिया गया है, जिससे ये साफ लगता है कि बात सिर्फ पद छोड़ने की नहीं है। अब ये मजबूरी सिर पर आन ही पड़ी है कि सारी लगाम अपने हाथ में कस कर रखने की जगह उस क्षेत्र के घोड़े की लगाम, उसी क्षेत्र के दिग्गज के हाथों में सौंप दी जाए।
एक पुरानी कहावत है जिसका काम उसी को साजे। यानि, काम तो उसी से बनेगा जिसके बस की बात होगी। ये बात समझते समझते कमलनाथ ने काफी देर कर दी। अब देर से आएं हैं, पर कितना दुरुस्त आए हैं। इसका अंदाजा तो कांग्रेस के आगे के हालात देखकर ही लगेगा। फिलहाल नए सिरे से मध्यप्रदेश के हर अंचल को एक नया कांग्रेसी संभालता नजर आ सकता है। गुटबाजी, मनमुटाव और अपने ईगो को परे रखकर कांग्रेस फिर से महाकौशल, मालवा, निमाड़, बुंदेलखंड और मध्य क्षेत्र की कमान अपने अलग-अलग वरिष्ठ नेताओं को सौंप सकती है। इसे आप कांग्रेस की नई रणनीति भी कह सकते हैं या फिर कांग्रेस और कमलनाथ की मजबूरी भी। क्योंकि, अब अगर पावर को डिसेंट्रलाइज नहीं किया तो ये संभव है कि आने वाले चुनाव कांग्रेस के लिए ज्यादा बुरे नतीजे लेकर आएं। इस बीच आप की धमक भी मध्यप्रदेश में सुनाई दे सकती है। अंदरखाने की खबरें ये भी हैं कि कांग्रेस के कई बड़े नेता, जो बीजेपी में ज्यादा ठौर नहीं देखते हैं, वो आप के आंगन में झाड़ू बुहारने की कोशिश करते नजर आएं, इस डैमेज से पहले ही कमलनाथ कंट्रोल पर एक्शन के लेने के मूड में नजर आ रहे हैं। ये बैठक इसी कंट्रोल का आगाज हो सकती है।
दस जनपथ का पथ जब से कांग्रेस के असंतुष्टों के लिए आसानी से खुल रहा है प्रदेश कांग्रेस में हलचल तेज हो रही है। अरुण यादव का दिल्ली फेरा हुआ उसके बाद कमलनाथ ने उन्हें मनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। बैठक से पहले कमलनाथ उन्हें अपने साथ सलकनपुर की यात्रा पर भी ले गए। खबर है कि कमलनाथ ने खुद फोन कर अरुण यादव को इस यात्रा के लिए बुलाया और फिर दोनों घंटों बात भी करते रहे। बातें क्या हुईं, वाजिब सी बात है कि वो हेलीकॉप्टर के शोर में दब कर रह ही गई होंगी। पर अब बैठक में रूठों को मनाने की कवायद के तहत अरुण यादव का वर्चस्व दोबारा निमाड़ के क्षेत्र में कायम हो सकता है।
वैसे भी कांग्रेस पहले से क्षत्रपों की राजनीति के लिए जानी जाती रही है। जहां एक-एक दिग्गज अपने-अपने क्षेत्र की कमान संभालकर कंधे से कंधे मिलाकर काम करता था। हालांकि बाद में गुटबाजी के चलते ये व्यवस्था ढह गई। अब जब कांग्रेस के बड़े नेताओं पर दूसरे दलों की नजर है, तब पार्टी को फिर अपने दिग्गजों की याद आई है। इसलिए कह सकते हैं कि पार्टी अब फिर रीस्ट्रक्चरिंग पर फोकस कर रही है। सियासी गलियारों में जब से ये खबर है कि बीजेपी अरुण यादव पर डोरे डालना शुरू कर चुकी है। आप भी बड़े नेताओं पर नजर गढ़ाए बैठी है। तब कांग्रेस के लिए ये कदम उठाना लाजमी भी हो जाता है। जिसके तहत अरुण यादव को निमाड़ के अलावा विंध्य में अजय सिंह, मालवा का जिम्मा कांतिलाल भूरिया, मध्यक्षेत्र का जिम्मा दिग्विजय सिंह और कमलनाथ खुद महाकौशल की कमान संभालते नजर आ सकते हैं। हो सकता है पुराने पैटर्न पर लौटकर कांग्रेस एक बार फिर दम दिखाने में कामयाब हो जाए।
हालांकि चंबल के क्षेत्र में कांग्रेस की पकड़ कैसे कसेगी ये सवाल अभी बाकी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पाला बदलने के बाद कांग्रेस ग्वालियर चंबल में अब तक कोई मजबूत नेता नहीं तलाश सकी है। सिंधिया के साए तले कोई नेता उस ऊंचाई तक पनप भी नहीं सका था। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और सिंधिया की तिकड़ी ने ही चुनाव में अपना कमाल दिखाया था। अब बारी 2023 के चुनाव में किस्मत आजमाने की है। ऐसे में चंबल से कांग्रेस को नए चेहरे की तलाश तेजी से शुरू करनी होगी।
किसी पॉलिटिकल एक्सपर्ट की, जो बताए कि सिंधिया का विकल्प कौन-कौन हो सकते हैं। ये बात तो हुई पुराने दिग्गजों को वाजिब स्थान देने की। लेकिन समय के साथ नए नेताओं की दूसरी पंक्ति भी नेतृत्व का दावा जताने लगी है।
इस वक्त प्रदेश कांग्रेस ऐसे दोराहे पर खड़ी नजर आती है, जहां या तो उसे पुराने नेताओं को तवज्जो देनी है, या फिर नई लीडरशिप को आगे बढ़ने देना है। या फिर कांग्रेस को वो तराजू बनना है, जो दो अलग-अलग उम्र के नेताओं में संतुलन बना सके। क्षत्रपों को उनके हिस्से की ताकत देकर कांग्रेस एक तबके को तो साध सकती है। युवा नेताओं को साधने का रास्ता शायद नेता प्रतिपक्ष के पद के रास्ते से गुजरे। हो सकता है कि पूर्व कैबिनेट की इस बैठक में कमलनाथ विधानसभा में अपना वारिस घोषित कर दें। फिलहाल नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में बाला बच्चन, डॉ. गोविंद सिंह और विजयलक्ष्मी साधौ का नाम सबसे आगे है। पार्टी 2023 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आदिवासी या पिछड़ा वर्ग में से नेता प्रतिपक्ष चुनने के मूड में है। इस लिहाज से युवा विधायकों में कमलेश्वर पटेल और जीतू पटवारी के नाम की भी चर्चा है। देखना ये कि इस बैठक में कांग्रेस के मंथन से क्या वाकई ऐसा अमृत निकल पाएगा, जो कमजोर हो रही पार्टी की जड़ों में नई जान फूंक दे।