Bhopal: ये बात सच है कि एक मरीज़ का इलाज डॉक्टर करता है, मगर उस मरीज़ की देखभाल नर्स करती है। नर्स ही होती है जो मरीज़ और डॉक्टर के बीच एक मजबूत कड़ी का काम करती है। कोविड-19 के वक़्त अगर नर्सेज का साथ नहीं होता तो कई मामलों में शायद डॉक्टर्स भी हाथ खड़े कर देते। दुनियाभर की नर्सेज के सेवा, शक्ति, साहस और समर्पण के इसी जज़्बे को सलाम करने के लिए 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। यह दिवस आधुनिक नर्सिंग की जननी फ्लोरेंस नाइटिंगल की स्मृति में मनाया जाता है। वे क्रीमियन युद्ध के दौरान कांस्टेंटिनोपल में घायल सैनिकों के बैरकों में उनकी देखभाल करने के लिए लालटेन लेकर जाती थीं। जिसकी वजह से उन्हें 'लेडी विद द लैंप' बुलाया जाने लगा...यानि जीवन के प्रति आशा की किरण। द सूत्र की टीम आज अपने दर्शकों एवं पाठकों को ऐसी ही कुछ 'लेडी विद द लैंप' यानी उन नर्सेज से रूबरू करा रहा है, जिन्होंने ड्यूटी को अपने परिवार, माता-पिता, एवं बच्चो तक से ऊपर रख और खुद की जान जोखिम में डालकर कोविड-19 संक्रमितों की सेवा की और उनको मौत के मुंह से निकाल लाईं। साथ ही वे नर्सेज भी जो माँ की तरह निस्वार्थ भाव से गंभीर रूप से बीमार नवजातों की सेवा कर रहीं है और उनकी ज़िन्दगी में जीवन का उजाला भर रहीं हैं।
जेपी अस्पताल की नर्स सिमी एस कुमार
- कोविड-19 का वक़्त डरावना था
भोपाल के सरकारी जेपी अस्पताल में कार्यरत नर्स सिमी एस कुमार बताती हैं वे पिछले ढाई सालों - 2020 - से हॉस्पिटल के कोविड केयर सेंटर में कोरोना मरीज़ों के इलाज़ के लिए स्पेशल ड्यूटी पर तैनात है। अपने नर्सिंग प्रोफेशन के बारे में सिमी का कहना है कि किसी भी मरीज के लिए अस्पताल में दवा से भी ज्यादा असर वह नर्स द्वारा की जा रही उसकी सेवा का होता है। कोरोनाकाल में कई बार मरीज़ डरे हुए होते थे की वे जीवित भी रह पाएंगे या नहीं? ऐसे वक़्त में कोरोना प्रोटोकॉल के कारण उनका परिवार भी उनसे नहीं मिल पाता था। तब हम उनके परिवार की तरह उनके खाने से लेकर उनके नहाने-धोने एवं दवाओं का ध्यान रखते थे एवं साथ ही उनको कोरोना से लड़ने का एक मानसिक जज्बा भी देते थे। कोरोनाकाल काफी मुश्किल था, फर्स्ट एवं सेकंड -कोरोना की दोनों वेव्स के दौरान हमने कई-कई घंटे PPE किट में लगातार बिना रुके काम किया। वो बताती है कैसे जब वो कोरोना सैंपलिंग के लिए अलग-अलग जगहों पर जाती थी और उनको डरा कर भगा दिया जाता था। पर उन्होंने अपना काम नहीं रोका।
- परिवार और अस्पताल में ड्यूटी को प्राथमिकता
सिमी के परिवार में उनके दो छोटे बच्चे हैं -एक 8-वर्षीय बेटी है एवं एक 4-वर्षीय छोटा बेटा, साथ में माता-पिता और दोनों ही डाईबेटिस के पेशेंट हैं। बेटी को सेरिब्रल पाल्सी नामक बीमारी होने से उसकी देखभाल करने की जिम्मेदारी भी सिमी को निभानी होती है। वो बताती है नर्स की नौकरी में सेवा भाव का ऐसा जुनून था कि जब खुद का परिवार और अस्पताल में ड्यूटी करने एवं कोरोना पीड़ितों की सेवा के बीच एक चुनने का वक़्त आया तो स्वार्थ त्याग कर परमार्थ को चुनने में हिचक नहीं किया। कई बार वो अपने बच्चों से काफी वक़्त तक नहीं मिल पाती थी क्योंकि लम्बे घंटों तक काम करना होता था। कई बार इमरजेंसी के वक़्त स्टाफ एवं संसाधन की कमी होते हुए भी मरीज़ की जान बचाने पर फोकस किया। उन्होंने बताया कि मरीजों की सेवा करते-करते सिर्फ वो ही नहीं, बल्कि उनका पूरा परिवार संक्रमित हो गया था एवं बेटी को अस्पताल में भी एडमिट करवाना पड़ा था। परन्तु ठीक होकर उन्होंने फिरसे अपना काम जारी रखा और आगे भी निर्भीक होकर करती रहेंगी।
- एक ही मकसद है कि मरीज़ों की यथा संभव सेवा करना
नर्स सिमी से जब पूछा गया कि “एक नर्स के तौर पर आपके लिए कौन-सी बात सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है?” तो उनका एक ही जवाब था, मरीज़ों की बढ़िया-से-बढ़िया सेवा करना। हम निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा में दिन रात लगे हैं, ताकि हमारे पेशेंट्स स्वस्थ होजाएं। उन्होंने बताया कि जब मरीज स्वस्थ होकर अपने घर जाता है, तो उन्हें सबसे ज्यादा खुशी होती है।
- मेडिकल फील्ड में नर्सेज के अहमियत डॉक्टर्स से भी ज्यादा: राजेश श्रीवास्तव,सिविल सर्जन, जेपी अस्पताल
जेपी अस्पताल के सिविल सर्जन डॉक्टर राजेश श्रीवास्तव भी नर्स सिमी के निश्छल सेवाभाव और अपनी ड्यूटी के प्रति ईमादारी की तारीफ़ करते हैं। उनका कहना है कि नर्सेज के बिना चिकित्सा व्यवस्था का सुचारू रूप से संचालन बिलकुल भी संभव नहीं है। मेडिकल फील्ड में नर्स डॉक्टर से भी ज्यादा जरूरी स्तम्भ हैं।
SNCU में बेसहारा नौनिहालों की माँ बन जीवन में उजाला बिखेरतीं 18 'लेडी विद द लैंप'
- बिलकुल इसी तरह जेपी हॉस्पिटल के SNCU में कार्यरत है 18 नर्सेज की एक टीम जो उन मासूमों का माँ की तरह ख़याल रख रहीं है जो जन्म के बाद इतने कमजोर होते हैं कि उन्हें अपनी माँ से दूर गहन स्वास्थ्य इकाई में रहना पड़ता है या फिर वे बच्चे जिनको जन्म देने के बाद लावारिस हालत में फेंक दिया जाता है। ऐसे लावारिस मासूम कई बार इतनी खराब परिस्थितियों में होते हैं कि अगर ये नर्सेज अपनी सेवा से उनका पूरा ध्यान ना रखें तो इन नवजातों की सांसें बचना मुश्किल हो। SNCU की स्टाफ नर्सें गंभीर रूप से बीमार इन नवजातों का ध्यान रखती हैं और उन्हें समय से नहलाती हैं-धुलाती हैं, उनके खाने का ध्यान रख उन्हें समय पर सुलाती हैं - बिलकुल उनकी माँ की तरह।