BHOPAL: 3562 लोगों पर 1 एलोपैथी डॉक्टर, 8.5 करोड़ की जनता के लिए सिर्फ 42,911 बिस्तर, विशेषज्ञों के 80% पद खाली

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Ruchi Verma
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BHOPAL: 3562 लोगों पर 1 एलोपैथी डॉक्टर, 8.5 करोड़ की जनता के लिए सिर्फ 42,911 बिस्तर, विशेषज्ञों के 80% पद खाली

Bhopal: 'सफेद कोट में नायक’ - यह वर्ष 2022 की डॉक्टर्स डे की थीम है। ये बिलकुल सही बात है कि कोविड-19 से लड़ाई में सफेद कोट वाले सूरमा साबित हुए हैं। लेकिन एक पहलू ये भी है कि भारत में सफेद कोट के ये नायक रोल मॉडल या प्रेरणास्रोत बनने की दौड़ में अभी भी काफी पीछे छूटे हुए हैं क्योंकि अनुमान के मुताबिक भारत में  हर साल 50 लाख लोगों की जान  चिकित्सीय लापरवाही की वजह से चली जाती है। आंकड़े बताते हैं कि देश में करीब 14 लाख डॉक्टरों की कमी है और इस समय 7 हजार पेशेंट्स पर एक डॉक्टर है। कमोवेश यही हालात मप्र के है क्योंकि राज्य में 1 एलोपैथिक डॉक्टर पर करीब 3562 लोगों के इलाज का बोझ हैं! साथ ही 8 करोड़ की प्रदेश कि जनता के लिए सिर्फ सरकारी अस्पतालों में करीब 42,911 बिस्तर ही मौजूद हैं। डॉक्टर्स डे पर देखिए मप्र की स्वास्थ्य सेवाओं के हालात बताती द सूत्र की ये रिपोर्ट:



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MP में सिर्फ 24 हजार एलोपैथी डॉक्टर्स, 4 गुना कम



मप्र मेडिकल काउंसिल ने पिछले साल दिसंबर में री-वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू थी। यह पता लगाने के लिए कि मप्र में वास्तव में कितने डॉक्टर्स है। जो आंकड़ा सामने आया वो ये कि प्रदेश में मेडिकल काउंसिल के साथ पहले से रजिस्टर्ड हर पैथी के जो 55 हजार डॉक्टर्स है उसमें से सिर्फ 24 हजार एलोपैथिक डॉक्टर्स है। मेडिकल काउंसिल के मुताबिक कई डॉक्टर्स पढ़ाई के बाद दूसरे राज्यों में चले गए कुछ का निधन हो चुका है। 24 हजार के हिसाब से देखे तो MP की साढ़े आठ करोड़ की आबादी है और इस हिसाब से 3562 लोगों के लिए सिर्फ एक एलोपैथी डॉक्टर। जबकि WHO के नॉर्म्स है कि प्रति एक हजार आबादी पर एक एलोपैथिक डॉक्टर होना चाहिए। यानी मप्र में डॉक्टरों की संख्या तय नॉर्म्स से 4 गुना कम है।



पूरे हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को देखें तो मध्य प्रदेश स्वास्थ्य विभाग की 2021-2022 की रिपोर्ट के मुताबिक:




  • मप्र में विशेषज्ञों के 3615 पदों में से 2949 खाली है


  • चिकित्सा अधिकारी के 5099 पदों में से 1090 खाली है

  • डेंटिस्ट के 185 पदों में से 119 पद ही भरे हुए है और 66 खाली है

  • सरकारी मेडिकल कालेजों में फैकल्टी के स्वीकृत पदों में से 40% खाली है

  • जिला अस्पतालों में सिर्फ 1 से 3 रेडियोलाजिस्ट ही हैं

  • प्रदेश की साढ़े आठ करोड़ की जनता कि लिए सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में सिर्फ 42,911 बिस्तर ही मौजूद है




  • आखिरकार डॉक्टरों की कमी की वजह क्या है?

    दरअसल प्रदेश में जो डॉक्टर तैयार होते हैं, उनमें करीब 40 प्रतिशत डिग्री लेकर दूसरे राज्यों में चले जाते हैं। इसकी वजह है कि मध्य प्रदेश में प्राइवेट अस्पताल हो या फिर सरकारी अस्पताल, दोनों जगहों पर बाकी राज्यों की तुलना में वेतन की कमी है। सरकार स्वास्थ्य सेवा पर भारी भरकम खर्च करती है। साल 2021-2022 में सरकार ने स्वास्थ्य के लिए करीब 9,578.77 करोड़ रु. के बजट का प्रावधान किया है। इसके बाद भी वेतन-विसंगतियों को दूर नहीं कर पा रही है। और खामियाजा प्रदेश की जनता भुगत रही है। 


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