(भिंड इनपुट: मनोज जैन)
BHOPAL: लाखो बच्चों में कुपोषण और देश में सबसे ज्यादा शिशु मृत्यु का 'कलंक' झेल रहे मध्य प्रदेश के पास इन समस्याओं से लड़ने के ग्रोथ मेसरिंग इंस्ट्रूमेंट्स -जैसे इन्फेंटोमीटर, स्टैंडियोमीटर, शिशु वजन मशीन (साल्टर), माता एवं शिशु वजन मशीन (डिजिटल) - ही नहीं है। इसका खुलासा द सूत्र की पड़ताल में हुआ। भोपाल, जबलपुर और भिंड की कुछ आंगनबाड़ी केंद्रों का जायजा लिया गया तो स्थिति चौंकाने मिली। द सूत्र ने जितने भी सेंटर्स को विजिट किया, इनमे शामिल एक भी केंद्र ऐसा नहीं था जिसके पास सभी उपकरण हो और सही हालत में हो। किसी केंद्र पर वजन जांचने की मशीन नहीं है तो कहीं मौजूद उपकरण टूटे हुए है या खराब पड़े हुए हैं। अब इस हाल में मध्य प्रदेश का कुपोषण कैसे और कब दूर होगा... ये सरकार के सामने बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। ये सब तब हैं जब मध्य प्रदेश में 10 लाख 32 हजार 166 बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं। द सूत्र के इस ग्राउंड रिपोर्ट में जानिये कैसे अधिकारी-कर्मचारियों के मनमानी पूर्ण रवैये के कारण करोड़ों का भारीभरकम बजट खर्च करने के बाद भी राज्य के माथे से कुपोषण का कलंक नहीं मिट पा रहा है।
ग्रोथ मेसरिंग इंस्ट्रूमेंट्स की महिला एवं बाल स्वास्थ्य में महत्ता: कुपोषण के मापक
दरअसल, आंगनबाड़ी केंद्रों को इन्फेंटोमीटर, स्टैंडियोमीटर, शिशु वजन मशीन (साल्टर), माता एवं शिशु वजन मशीन (डिजिटल) जैसे ग्रोथ मॉनिटरिंग उपकरण पोषण अभियान के तहत दिए जातें हैं। जब भी कोई गर्भवती या नवजात बच्चा अगर केंद्र पहुंचते हैं तो पहला काम उसका वजन को ग्रोथ चार्ट (वृद्धि निगरानी प्रपत्र) में दर्ज करना होता है। रजिस्टर में बच्चों के नाम के आगे उसका वजन दर्ज कर देखा जाता है कि बच्चा किस श्रेणी में आ रहा है। उसके आधार पर ही उसे पोषण आहार, टीकाकरण व चिकित्सा उपलब्ध कराया जाता है। इस तरह से कोई बच्चा कुपोषित है या नहीं , ये पता चलता है आंगनबाड़ियों में वजन और लंबाई की जांच करने के लिए उपकरण से। लेकिन मध्य प्रदेश में तो सब कुछ राम भरोसे चल रहा है।
केंद्रों को उपलब्ध ढाई लाख मशीनों में से करीब डेढ़ लाख मशीनें ख़राब
- बाल स्वास्थ्य को मापने और रिकॉर्ड रखने के लिए इतने जरुरी डेढ़ लाख उपकरण खराब हैं। पता हो की मध्य प्रदेश में कुल 97135 आंगनबाड़ी केंद्र हैं।
केस स्टडी
भोपाल
- आंगनबाड़ी केंद्र 783: भोपाल के 6 नंबर स्टॉप, शिवजी नगर में अंकुर स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स के पास स्थित आंगनबाड़ी केंद्र 783 में जब द सूत्र की टीम पहुंची तो वहां बिजली गुल थी। बच्चों की लम्बाई नापने वाली मशीन टूट चुकी है। इसमें बच्चों की लम्बाई दर्ज़ करने में दिक्कत होती है। साथ ही बच्चों के वजन वाली डिजिटल मशीन नहीं है। आपको बतादें कि ये आंगनबाड़ी केंद्र ख़ास इसलिए है क्यूंकि इसे भोपाल कलेक्टर अविनाश लवानिया ने अडॉप्ट एन आंगनबाड़ी योजना के तहत गोद लिया है। पर कलेक्टर साहब ने आज तक यहाँ का दौरा नहीं किया है। इस केंद्र में कुल 150 हितग्राही है... जिसमें से 30 बच्चे रोज़ आतें हैं। महिला एवं बाल विकास की वेबसाइट के अनुसार इस केंद्र में 5 से 20 पीले/मध्यम कुपोषित/ कम वजन के बच्चे हैं और 1 अति कुपोषित बच्चा है। जबकि कार्यकर्ताओं ने बताया कि इस केंद्र में एक बच्चा अति-कुपोषित है और 5 बच्चे MEM हैं।
भिंड
- द सूत्र की टीम ने न केवल राजधानी भोपाल बल्कि बाकी शहरों में भी आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति देखी....भिंड में जिलाधीश कार्यालय से 100 मीटर की दूरी पर स्थित आंगनवाड़ी क्रमांक 21 /1 में माताओं एवं शिशुओं के वजन मापने के लिए डिजिटल मशीन तो है पर वह काम ही नहीं करती है। इस आंगनबाड़ी में 78 बच्चें रेजिस्टरड हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता वीरबाला सक्सेना से जब ये पूछा गया कि मशीन है या नहीं तो पहले तो वह कुछ नहीं बोले फिर बताया कि मशीन तो है पर किसी काम की नहीं।
अधिकारीयों का गैरज़िम्मेदाराना रवैया, नहीं दे रहे कोई जवाब
अब इस मामले में द सूत्र ने महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों से जानना चाहा कि डेढ़ लाख मशीनें खराब है.. इसकी मॉनिटरिंग अथॉरिटी कौन है? जो लोग जिम्मेदार है क्या उन पर कोई एक्शन लिया जाएगा? महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने इस मामले पर बात करने से ही इंकार कर दिया और अधिकारियों का रवैया देखिए कि ये कहा कि इस मामले में प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी से बात की जाए!
2 अगस्त 2022 तक सप्लाई होने थे उपकरण पर नहीं हुए
ऐसा नहीं हैं कि विभाग को इन खराब इंस्ट्रूमेंट्स के बारे में पता ना हो...विभाग इस बारे में भली भांति जानता हैं...और शिकायतें मिलने के बाद जुलाई में जारी आदेश अनुसार 2 अगस्त 2022 तक इन उपकरणों की सप्लाई भी आंगनबाड़ी केंद्रों को हो जानी चाहिए थी....पर ऐसा हुआ नहीं।
प्रदेश में 10 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषित
- प्रदेश में शून्य से लेकर 5 वर्ष की उम्र के 65 लाख दो हजार से ज्यादा बच्चे हैं।
वर्ष 2030 तक देश को करना है कुपोषण मुक्त
2030 तक भारत को कुपोषण से मुक्त करना है। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा कुल 17 गोल तय किये गए हैं जिन्हें 2030 तक हासिल किया जाना है। दूसरे देशों के साथ भारत ने भी 2015 में गोल को अचीव करने का संकल्प लिया है। इन सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स के तहत 2020 से इस टारगेट को पूरा करने का काम शुरू हुआ है। अगर मध्य प्रदेश में ऐसा कुछ नजर नहीं आता कि सरकार गंभीरता से इसपर काम कर रही है।
एक बड़ी पुरानी कहावत और मैनेजमेंट थ्योरी भी ये कहती है कि यदि आपको कोई जंग जीतना हो तो सबसे पहले आपके पास बेहतर टीम होना चाहिए और टीम के पास पर्याप्त संसाधन। तब कहीं जाकर जंग को जीता जा सकता है। और टीम को संसाधन देने का काम टीम लीडर का होना चाहिए। इस मामले में तो सरकार ही टीम लीडर है जिसका इस तरफ ध्यान ही नहीं है। अब जिस मप्र में 10 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हो... 6 लाख से ज्यादा बच्चे अति कुपोषित कैटेगरी में हो.. 2 लाख से ज्यादा बच्चे ठिगनेपन और 13 लाख से ज्यादा बच्चे दुबलेपन का शिकार हो.. . उस मप्र में बच्चों के वजन, ऊंचाई मापने के उपकरण ही खराब पड़े है.. और इसपर अधिकारियों का तुर्रा ऐसा जैसे वो मप्र की जनता पर एहसान जता रहे हो। ये अधिकारी भूल जाते हैं कि इनके घर का चूल्हा जनता के टैक्स के पैसों से ही जलता है। ये अधिकारी भूल जाते हैं कि इनके दफ्तरों के एसी कमरों का बिजली बिल जनता भरती है। ये अधिकारी ये भी भूल जाते हैं कि इनके परिवार जिन सरकारी गाड़ियों में घूमते है उसका तेल जनता अपने टैक्स से पैसे से भरती है। और जनता को ये क्या दे रहे हैं? कुपोषण का दंश! जिस जनता के पैसों से योजनाएं संचालित हो रही है उन्हीं योजनाओं की हकीकत ऐसी है कि अधिकारी मुंह छुपाने के लिए अलावा कुछ नहीं कर सकते। सवाल तो सरकार पर है जो ऐसे अधिकारियों को झेल रही है। ऐसा ही हाल रहा तो भूल जाइए 2030 में कुपोषण मुक्त भारत का सपना!